....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
दोहे--श्याम के----
=====
धर्म हेतु करते रहें ,काव्य साधना कर्म,
जग को दिखलाते रहें, शुभ कर्मों का मर्म |
श्याम जो सुत हो एक ही,पर हो साधु स्वभाव,
कुल आनंदित रहे ज्यों, चाँद-चांदनी भाव |
नारी सम्मति हो जहां, आँगन पावन होय,
कार्य सकल निष्फल वहां, जहां न आदर सोय|
हितकारी भोजन करें,खाएं जो ऋतु योग्य,
कम खाएं पैदल चलें, रहें स्वस्थ आरोग्य |
अपने लिए कमाय औ, केवल खुद ही खाय,
श्याम पापमय अन्न है, जो न साधु को जाय |
काव्य स्वयं का हो लिखा, माला निज गुंथ पाय,
चन्दन जो निज कर घिसा, अति ही शोभा पाय|
आयु कर्म धन विद्वता, कुल शोभा अनुसार,
उचित वेश धारण करें, वाणी बुद्धि विचार |
दोहे--श्याम के----
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धर्म हेतु करते रहें ,काव्य साधना कर्म,
जग को दिखलाते रहें, शुभ कर्मों का मर्म |
श्याम जो सुत हो एक ही,पर हो साधु स्वभाव,
कुल आनंदित रहे ज्यों, चाँद-चांदनी भाव |
नारी सम्मति हो जहां, आँगन पावन होय,
कार्य सकल निष्फल वहां, जहां न आदर सोय|
हितकारी भोजन करें,खाएं जो ऋतु योग्य,
कम खाएं पैदल चलें, रहें स्वस्थ आरोग्य |
अपने लिए कमाय औ, केवल खुद ही खाय,
श्याम पापमय अन्न है, जो न साधु को जाय |
काव्य स्वयं का हो लिखा, माला निज गुंथ पाय,
चन्दन जो निज कर घिसा, अति ही शोभा पाय|
आयु कर्म धन विद्वता, कुल शोभा अनुसार,
उचित वेश धारण करें, वाणी बुद्धि विचार |
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