....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
मेरी चारधाम यात्रा
भाग एक---
उत्तर
भारत में हिमालय स्थित चारधाम यमुनोत्री, गंगोत्री,
केदारनाथ व बद्रीनाथ भारतवर्ष के एवं हिन्दुओं के प्राचीनतम
तथा पवित्रतम तीर्थस्थल हैं | हर किसी हिन्दू व
भारतीय की जीवन में एक बार बदरीनाथधाम जाने की इच्छा मोक्ष की इच्छा के समान है | वास्तव
में तो यह यात्रा माँ गंगा के चहुँ और की परिक्रमित यात्रा ही है | गौमुख ग्लेशियर से भागीरथी और
गंगोत्री एक ओर से नीलकंठ भागीरथ ग्लेशियर से अलकनंदा और
उसकी पृष्ठभूमि में नर-नारायण पर्वत के मध्य बद्रीनाथ, उसी के दूसरे
पृष्ठ से शतपथ ग्लेशियर से मंदाकिनी
और केदारनाथ, और सामने कालिंदी पर्वत की बंदरपूंछ
चोटी के पश्चिमी अंत में फैले चंपासर ग्लेसियर से –यमुनोत्री- यमुना |
अतः प्रोग्राम बनते ही मैं व सुषमाजी तुरंत ही
बेंगलोर से लखनऊ आगये| लखनऊ से सत्यप्रकाश गुप्ता जी व पदमा जी, श्री
कृष्ण कुमार सिन्हा एवं उनकी पत्नी तथा आगरा से डा राकेश गुप्ता, सुधा
गुप्ता व उनका पुत्र राजुल ट्रेन द्वारा १७-५-२०१८ को हरिद्वार पहुंचे जहां से हम
नौ लोगों को चार्मिंग यात्रा वालों के १० दिन के टूर पैकेज द्वारा चारधाम यात्रा
को प्रस्थान करना था|
प्रथम दिन---दिनांक
१७-५-१८ को होटल में विश्राम के बाद हम सभी हर की पौड़ी हरद्वार पर गंगा आरती
में सम्मिलित हुए |
हर की पौड़ी या हरि
की पौड़ी का ब्रह्म कुंड हरिद्वार का मुख्य घाट है जहां गंगा पर्वतों
को छोड़कर मैदान में उतरती है | समुद्रमंथन से प्राप्त अमृतकुम्भ से कुछ बूंदे
यहाँ भी गिरी थीं, अतः यह स्थान भी मोक्ष का द्वार मानाजाता है | यही कनखल में दक्ष
के यज्ञ स्थल है जिसमें शिवपत्नी सती ने आत्मदाह किया था | शाम को प्रतिदिन
गंगा आरती का सुप्रसिद्ध व मनोहारी कार्यक्रम होता है | हरिद्वार
को माया नगरी और कुंभ नगरी भी कहा जाता हैं |
चित्र १-हर की पौड़ी ---
चित्र २ ---गंगा आरती
दूसरे दिन – हरिद्वार से बारकोट ----
१८-५-१८ की प्रातः हम
१२ सीटर टेम्पो ट्रेवेलर से हरिद्वार से मसूरी एवं केम्पटीफाल होते हुए बारकोट के
लिए रवाना हुए जो हरिद्वार से २१० किमी है १३५२ मी ऊंचाई पर है जहां से यमुनोत्री
जाते हैं| बारकोट ( या बड़ाकोट ) उत्तरकाशी
( या प्राचीन नाम बड़ाहाट ) का प्रवेश द्वार है एवं चारों ओर हिमालय की दुर्गम
बंदरपूंछ पर्वत श्रेणी एवं अन्य ऊंची श्रेणियों के मध्य यमुना के किनारे पर
बसा हुआ मनोरम स्थान है | रात्रि विश्राम किया गया |
बड़कोट की पौराणिकता से संबंधित दो भिन्न विचार धाराएं स्थानीय रूप से प्रचलित हैं। एक का मत है
कि महाभारत युग में बड़कोट राजा सहस्रबाहु के
राज्य की राजधानी थी। हजार बाहुओं के
समान शक्ति रखने वाला सहस्रबाहु अपना दरबार एक सपाट भूमि पर
लगाता था बड़ा दरबार अर्थात बड़कोट। माना जाता है कि पांडवों ने वन पर्व के दौरान गंधमर्दन
पर्वत पर जाते समय सहस्रबाहु का आतिथ्य स्वीकार किया गया था। यहां के कई
कुंडों एवं मंदिरों का निर्माण पांडवों द्वारा हुआ, ऐसा
माना जाता है।
चित्र ४ व ५ ----बारकोट रात्रि
में---होटल की बालकनी में सुषमाजी व मि.मिथिलेश सिन्हा तथा प्राचीन पर्वतीय छतें
स्लेट पत्थर की खपरेल ---
चित्र -६ .बंदरपूंछ व अन्य चोटियों
से घिरा बारकोट
एक अन्य मत का दृढ़ विश्वास है कि बड़कोट
मूल रूप से जमदग्नि मुनि और उनके पुत्र परशुराम की भूमि रही थी। कहा जाता है वास्तव में सहस्रबाहु दक्षिण में शासन करता था
और चारधामों की यात्रा के लिये ही वह उत्तर आया था। उसका विवाह जमदग्नि मुनि की पत्नी रेणुका की बहन बेनुका से हुआ था।
--------यह तथ्य
मौजूद है कि रवाँई एवं बड़कोट के लोग अपनी वंश
परंपरा पांडवों , जिन्होंने एक ही
स्त्री द्रोपदी से विवाह रचाया था,
से जोड़ते हैं उस क्षेत्र के गांवों में मूल
रूप से निर्वाहित प्राचीन परंपराओं
में से एक है बहुपतित्व की प्रथा जिसमें कई
पतियों को रखने का रिवाज है।
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