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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 30 मई 2020

काव्य निर्झरिणी की रचनाएँ ----रचना आठ---- चाह नहीं है अब जीने की –डा श्याम गुप्त

....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


काव्य निर्झरिणी की रचनाएँ ----रचना आठ---- चाह नहीं है अब जीने की –

८. चाह नहीं है अब जीने की –

चाह नहीं है अब जीने की, मौत कहाँ से पायें |
मेरे मन के दर्द बतादे क्या गायें कहाँ जाएँ ||

ए मेरे हमदर्द बतादे ,
साज है क्या तेरी राहों का |
अथवा सुनले मुझ से आकर,
राज है क्या मेरी आहों का |

दुनिया के दुःख से घायल हम, अपना दुःख कैसे कह पायें |
चाह नहीं है अब जीने की, मौत कहाँ से पायें ||

यह तो अपने लिए असंभव,
स्वप्न देखते रहें तुम्हारे |
पर चाहत है तुम आजाओ,
जब जब ये दिल तुम्हें पुकारे |

किस्मत ही है ऐसे अपनी ,साथ तुम्हारा कैसे पायें |
चाह नहीं है अब जीने की, मौत कहाँ से पायें ||

प्रिय समाज की आज दुर्दशा ,
ने दिल को झकझोर दिया है |
तुम भी पास नहो मेरे ,
जैसे बाती बिना दिया है |

दुःख से घायल पीड़ित मन को बिना तुम्हारे क्या समझाएं |
 चाह नहीं है अब जीने की, मौत कहाँ से पायें ||



क्रमश ---

 

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