....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
काव्य निर्झरिणी की रचनाएँ ----रचना आठ---- चाह नहीं है अब जीने की –
क्रमश ---
काव्य निर्झरिणी की रचनाएँ ----रचना आठ---- चाह नहीं है अब जीने की –
८. चाह नहीं है अब जीने की –
चाह
नहीं है अब जीने की, मौत कहाँ से पायें |
मेरे
मन के दर्द बतादे क्या गायें कहाँ जाएँ ||
ए मेरे
हमदर्द बतादे ,
साज
है क्या तेरी राहों का |
अथवा
सुनले मुझ से आकर,
राज
है क्या मेरी आहों का |
दुनिया
के दुःख से घायल हम, अपना दुःख कैसे कह पायें |
चाह
नहीं है अब जीने की, मौत कहाँ से पायें ||
यह
तो अपने लिए असंभव,
स्वप्न
देखते रहें तुम्हारे |
पर
चाहत है तुम आजाओ,
जब
जब ये दिल तुम्हें पुकारे |
किस्मत
ही है ऐसे अपनी ,साथ तुम्हारा कैसे पायें |
चाह
नहीं है अब जीने की, मौत कहाँ से पायें ||
प्रिय
समाज की आज दुर्दशा ,
ने
दिल को झकझोर दिया है |
तुम
भी पास नहो मेरे ,
जैसे
बाती बिना दिया है |
दुःख
से घायल पीड़ित मन को बिना तुम्हारे क्या समझाएं |
चाह नहीं है अब जीने की, मौत कहाँ से पायें ||
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