....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
काव्य निर्झरिणी की रचनाएँ-----रचना ९...
काव्य निर्झरिणी की रचनाएँ-----रचना ९...
9.कंथा
मेरी
कंथा को उधेड कर
श्रम
को व्यर्थ गँवाओगे |
दुःख
का ही सामुख्य है जहाँ,
अरे
वहां क्या पाओगे |
मेरी
जीवन गाथा में हैं ,
व्यर्थ
कथायें लिखी हुईं |
कुछ
की ही स्मृति बाकी है ,
और
सभी हैं मिटी हुई |
कलम
नहीं चलती है मेरी,
लिख
लिख कर रुक जाता हूँ |
अपने
कृत्यों की स्मृति से ,
खुद
ही अरे लजाता हूँ |
स्मृति
की जलधि लहरियां ,
टकरा टकरा कर तट से |
जलमयी
अरे होजातीं ,
जल
के अन्दर ही झट से |
जीवन
झंझा के निशीथ में,
प्रथम
किरण सी यूं आकर |
ऊषा
की लाली भर लायी ;
जो मेरे ह्रदय में छाकर |
जब
मन के मोदक फूट चले,
वह
चले किनारों के राही |
सब
बिछुड़ गए संगी साथी,
जब
बिछुड़ गए जीवन राही |
तन
मन में पीर उमड़ आयी,
तब
ह्रदय में इक शूल उठा,
वेदना
श्वांश में लहराई
बिखरा
मन सब कुछ भूल उठा |
यह
एक कहानी है मेरी,
या
ह्रदय विकलता की चेरी |
व्याकुलता
भी आहें भरती ,
होगई
विषमता की चेरी |
ओ
मेरे जीवन के राही
मंजिल
पर देना दीप जला |
पहिचान
सकूं मंजिल अपनी,
यदि
पहुँच जाऊं भूला भटका ||
क्रमश --
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