कोई उद्देश्य नहीं ,चड्डी के नाम के पीछे भी वे कोई अभिप्राय नहीं बता पातीं हैं , आगे का भी आपको कुछ नहीं पता , सब जान सकते हैं कि मानसिकता मैं जो बात गहरी जमी होती है जुवा न पर आ ही जाती है। जब मानसिकता मैं चड्डी , पब, देह , होटल आदि बने रहेंगे तो चड्डी के अलावा और क्या सूझेगा?
उनका कहना है -अच्छे व्यवहार की शर्तें , माता, पिताव समाज तय करता है। जो लडकियां पब मैं शराव पीने जातीं हैं , वे या तो माता -पिता से छिपकर या उनके माता- पिता भी वैसे ही होते हैं और वे क्या मना कर पायेंगे । क्या राम सेना के लोग समाज के लोग नहीं हैं? आज पुलिस , सरकार , राज्य किस बुराई को रोक पाती है? जब ये असफल होते हैं तभी सामाजिक संगठनों को व जन समुदाय को सब अपने हाथ मैं लेना पड़ता है । सामाजिक बुरी या अच्छाई के लिए जन समुदाय का ही कोई अंग खडा होता है। क्यों सिगरेट, सफाई, परिवार नियोजन आदि के लिए ऐक्ट्रेस, हीरो , हीरोइन्स से टी वी आदि पर कहलवाया जाता है?क्या वे समाज, या माता ,पिता हैं या सरकार , या पुलिस या ठेकेदार। ; क्यों शराव के ख़िलाफ़ मंत्रीजी क़ानून बनाते हैं? यदि निश्चय करने व टोकने का अधिकार सिर्फ़ कानून को है तो आपको किसी को गुंडा कहने का अधिकार किसने दिया? कानून को अपना काम करने दीजिये ,पर स्वयं आपका ही कानून पर विश्वास नहीं है, बस हिन्दू संगठन जो कहें usakaa virodh karnaa , व अपना नाम व अखवार मैं छाजाने का ही उपक्रम है यह सब।
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- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
रविवार, 15 फ़रवरी 2009
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2 टिप्पणियां:
पुलिस , सरकार , राज्य जब असफल होते हैं तभी सामाजिक संगठनों को व जन समुदाय को सब अपने हाथ मैं लेना पड़ता है । सामाजिक बुरी या अच्छाई के लिए जन समुदाय का ही कोई अंग खडा होता है।
apki baton main dum hai. kamjor nus per hath rakha hai apne. prantu phir bhi hinsa ka samrthan nahi kiya ja sakta hai.
par saam, daam, vibhed ke asafal hone par ;jo aaj kee sthiti hai; dand apnaanaa padtaa hai. RAM ka Taadkaa va Shurpankhaa ko dand tathaa KRISHN kaa chaar- haran ke bahaane -jal main nange hokar nahaane kaa varjan karne kaa yahee vaastvik arth hain.
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