आलेख---हिन्दुस्तान दैनिक में जावेद कलीम की रिपोर्ट---
एवम--दार्शनिक सारांश----
यदि मानव खुद ही कर्ता है,
और स्वयम ही भाग्य विधाता।
इसी सोच का यदि पोषण हो,
अहं भाव जाग्रत हो जाता ।
मानव सम्भ्रम में घिर जाता,
और पतन की राह यही है ॥
पर ईश्वर है जगत नियन्ता,
कूई है अपने ऊपर भी ।
रहे तिरोहित अहं भव सब,
सत्व गुणों से युत हो मानव;
सत्यं शिवं भाव अपनाता,
सारा जग सुन्दर हो जाता ॥
-----------------------(स्रष्टि महा काव्य से )
2 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! मुझे बेहद पसंद आया! रचना की हर एक पंक्ति इतना सुंदर है कि कहने के लिए अल्फाज़ कम पर गए!
सुंदर विचार।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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