ब्लॉग आर्काइव
- ► 2013 (137)
- ► 2012 (183)
- ► 2011 (176)
- ► 2010 (176)
- ▼ 2009 (191)
डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
शनिवार, 12 सितंबर 2009
हमारा अंग्रेजी प्रेम--
<--चित्र १ चित्र २--->
अब देखिये बात या कार्य-क्रम शोक जताने,बच्चों को नैतिक शिक्षा की हो जिसमें एक बड़े जिम्मेदार स्कूल( वैसे इस स्कूल में सब कुछ अंग्रेजी में ही होता है) के संस्थापक हों ;या शोषण के ख़िलाफ़ अभिभावकों के मंच की हो जिसमें न्यायाधीश , पुलिश महानिदेशक व हिन्दी के विद्वान् साहित्य-भूषण सम्मानित गण हों ; कार्य-क्रम के पट (बैनर ) आदि अंग्रेजी में होंगे । जब मूल भावना ही अंग्रेजियत की होगी तो बच्चों व नागरिकों पर भारतीय प्रभाव कैसे पड़े ?
हम कब सोचेंगे,कब बदलेगा यह सब? हम कबतक हिन्दी में सोचने ,समझने, लिखने लायक होंगे?
चित्र १ -अभिभावक गोष्ठी में डॉ रामावतार सविता 'साहित्य-भूषण ' व अन्य।
चित्र २-सिटी मांट,स्कूल के संस्थापक श्री गांधी -नेतिक- शिक्षा देते हुए।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें