
आख़िर हम सुपर पावर ही क्यों बनें ?,क्या हम दूसरे देशों की नक़ल करके उन के मापदंड के अनुसार उनके सिर पर बैठने की क्यों सोचे ? हम ऐसे एक अलग स्वतंत्र विचार व भाव बाले अच्छे देश जहाँ न भेद-भाव हो न आपसी झगडे,न गन्दगी से बजबजाती नालियां ,उफनते सीवर,टूटी सड़कें ,नग्नता पसारते मीडिया ,फ़िल्म ,अभिनेता -अभिनेत्रियाँ व लोग,न दहेज़ के लिए जलाई जाने वाली बेटियाँ , न धर्म ,राजनीति,धंधे ,विकास के नाम पर धोखा देने वाले लोग व नेता, न लुटते बेंक,लूटती कंपनियाँ ,न भ्रष्ट शासक,प्रशासक व अधिकारी-कर्मचारी ,न गुंडे-मवाली व संघटित अपराधी -- प्रसादजी की आवाज़ में -"अरुण यह मधुमय देश हमारा " या जैसा सृष्टि महाकाव्य में कहा गया है-
"सर्व श्रेष्ठ क्यों कोई भी हो ?
श्रेष्ठ क्यों न हो भला सभी जन"
पढ़ें राम चन्द्र गुहा का सारगर्भित आलेख " सुपर पावर ही क्यों बनें हम "
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