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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल--तू गाता चल ऐ यार--ग़ज़ल की ग़ज़ल--

कुछ लोग ग़ज़ल के परिपेक्ष्य में सदा बहर -बहर की ही बात करते रहते हैं , मेरा कथन है -कुछ अपना ही अंदाज़ हो वो न्यारी ग़ज़ल होती है --
""-ग़ज़ल तो बस इक अंदाज़े बयाँ है श्याम,
श्याम तो जो कहदें वो ग़ज़ल होती है ||""

ग़ज़ल की ग़ज़ल

शेर मतले का हो तो कुंवारी ग़ज़ल होती है |
हो काफिया ही जो नहीं,बेचारी ग़ज़ल होती है

और भी मतले हों, हुश्ने तारी ग़ज़ल होतीं है
हर शेर मतला हो हुश्ने-हजारी ग़ज़ल होती है

हो रदीफ़ काफिया नहीं नाकारी ग़ज़ल होती है ,
मतला बगैर हो ग़ज़ल वो मारी ग़ज़ल होती है।

मतला भी, मकता भी रदीफ़ काफिया भी हो,
सोच समझ के लिख के सुधारी ग़ज़ल होती है

हो बहर में सुरताल लय में प्यारी ग़ज़ल होती है
सब कुछ हो कायदेमें वो संवारी ग़ज़ल होती है


हर शेर एक भाव हो वो जारी ग़ज़ल होती है,
हर शेर नया अंदाज़ हो वो भारी ग़ज़ल होती है


मस्ती में कहदें झूम के गुदाज़कारी ग़ज़ल होती है,
उनसे तो जो कुछ भी कहें दिलदारी ग़ज़ल होती है

जो वार दूर तक करे वो करारी ग़ज़ल होती है ,
छलनी हो दिल आशिक का शिकारी ग़ज़ल होती है


हो दर्दे दिल की बात मनोहारी ग़ज़ल होती है
मिलने का करें वायदा मुतदारी ग़ज़ल होती है

तू गाता चल यार, कोई कायदा देख,
कुछ अपना ही अंदाज़ हो खुद्दारी ग़ज़ल होती है

जो उसकी राह में कहो , इकरारी ग़ज़ल होती है,
अंदाज़े बयाँ हो श्याम का वो न्यारी ग़ज़ल होती है
















2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

शेर मतले का न हो तो कुंवारी ग़ज़ल होती है |
हो काफिया ही जो नहीं,बेचारी ग़ज़ल होती है।


-वाह वाह!! क्या बात कही है!!

अजय कुमार ने कहा…

गजल की इतनी किस्में , बहुत खूब