१.
दुर्गम जगत के हों कारज सुगम सभी ,
बस हनुमत गुण- गान नित करिये ।
सिन्धु पारि करि,सिय सुधि लाये लन्क जारि,
ऐसे बजरन्ग बली का ही,ध्यान धरिए ।
करें परमार्थ सत कारज निकाम भाव ,
ऐसे उपकारी पुरुशोत्तम को भजिये ।
रोग दोष,दुख शोक,सब का ही दूर करें,
श्याम के हे राम दूत !अवगुन हरिये ॥
२.
(जल हरण घनाक्षरी-,३२ वर्ण,१६-१६ ,अन्त-दो लघु)
विना हनुमत क्रिपा ,मिलें नहीं राम जी,
राम भक्त हनुमान चरणों में ध्यान धर ।
रिद्धि–सिद्धि दाता,नव-निधि के प्रदाता प्रभु,
मातु जानकी से मिले ऐसे वरदानी वर ।
राम ओ लखन से मिलाये सुग्रीव तुम ,
दौनों पक्ष के ही दिये सन्कट उबार कर।
सन्कट हरण हरें, सन्कट सकल जग,
श्याम अरदास करें,कर दोऊ जोरि कर ॥
हनुमत—क्रपा
(आवाहन )
( कुन्डली –छन्द )
१.
पवन तनय सन्कट- हरण,मारुति सुत अभिराम,
अन्जनि पुत्र सदा रहें, स्थित हर घर –ग्राम ।
स्थित हर घर- ग्राम, दिया वर सीता मां ने ,
होंय असम्भव काम ,जो नर तुमको सम्माने ।
राम दूत ,बल धाम ,श्याम, जो मन से ध्यावे,
हों प्रसन्न हनुमान, क्रपा रघुपति की पावे ॥
२.
निश्च्यात्मक बुद्धि, मन प्रेम प्रीति सम्मान,
विनय करें तिनके सकल,कष्ट हरें हनुमान ।
कष्ट हरें हनुमान, पवन सुत अति बलशाली,
जिनके सम्मुख टिकै न कोई दुष्ट कुचाली ।
रामानुज के सखा ,दूत,प्रिय भक्त ,राम के ,
बिगडे काम बनायं,पवन-सुत,सभी श्यामके ॥
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