यह सच है कि आज का पिता वह ,सर्वज्ञाता,संतान के लिए धीर गंभीर महान , बच्चों से दूरी बनाकर रखने वाला , सर्वशक्तिमान पिता नहीं रहा। वह आज बच्चों के लिए गधा, घोड़ा, ऊँट बन सकता है, बच्चों के साथ सब तरह के खेल खेल सकता है, उनकी जिद -केरियर के लिए ,नौकरी-केरियर छोड़ कर उन्हें डांसिंग प्रोग्राम या क्रिकेट-टेनिस में ले जासकता है; वह उनके साथ नाचता -ठुमके लगाता है;सिनेमा -खेल-तमाशे देखता है, कुछ लोग साथ साथ शराव भी पीते हुए देखे जा सकते हैं , नंगे नाच भी | वह बच्चे के साथ बच्चा है , एवं साथ ही साथ अपने केरियर में कंपनी का मालिक, जिम्मेदार अफसर, कर्मी भी । कहा जा सकता है कि पूर्व भारतीय प्रामाणिक पिता की अपेक्षा ,वह आज दोहरी भूमिका अच्छी तरह निभारहा है। पिता-पुत्र सम्बन्ध सहज, अधिक घनिष्ठ हैं।
परन्तु फिर क्यों आज का बच्चा , युवा-- स्कूल में गोलियां चलाता है, सहपाठियों का अपहरण-ह्त्या करता दिखाई देता है, अध्यापक, गुरुजनों को चाकू-पिस्तोल दिखाकर नक़ल करता है | डकैती,ह्त्या, लूटपाट , मारपीट, कालेग-स्कूल में दंगे, आतंक में लिप्त होरहा है? बिगडैल ? सोचिये क्यों ??????????
वस्तुतः यह आज का पिता पाश्चात्य भावयुक्त है भारतीय संभ्रांत-भाव नहीं , जहां परिवार -भाव के कारण बच्चे में समष्टि भाव उत्पन्न होता था । मेरा पुत्र, मेरा बच्चा, मेरा बच्चा सबसे अच्छा, वाह बेटा!-- आदि व्यष्टि गत अहं भाव न पिता में न संतान में उत्पन्न होते थे जो उत्तम मानवीय - भाव की पृष्ठभूमि हुआ करते थे | पिता बच्चे का आदर्श हुआ करता था एवं उत्तम पारिवारिक संस्कारगत भाव,क्रियाएं, कर्म बचपन से सीखे जाते थे। आज पिता बच्चे का मित्र है, आदर्श नहीं । तो आदर्श कहाँ से आये--हीरो, हीरोइन( विभिन्न बकवास रोल में ), नेता, गुंडे, उठाईगीरे, नाचने-गाने वाले, लुच्चे- लफंगे , येन केन प्रकारेण पैसा कमाने वाले, पैसे के लिए खेलने वाले, तथा सदकर्मों की कथा-कहानी ,आदर्शों के अभाव में अकर्म व कुकर्म , टीवी-सिनेमा आदि उनके आदर्श बन रहे हैं |
इतिहास में पहले भी पिता के, बच्चा बने बिना--आदर्श पिता व सन्तान मोह से कुलनाशी-समाज़ नाशी, देश घाती पिता होते रहे हैं । आज के दिन हमें यह भी सोचना चाहिये।
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रविवार, 20 जून 2010
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2 टिप्पणियां:
जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।
आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।
हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।
इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।
अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।
अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-
सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
डॉ. श्यामजी
अति सराहनीय
सुंदर है .........
डॉ.शालिनिअगम
shalini8989@gmail.com
www.aarogyamreiki.com
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