....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
प्रायः लोग व तथाकथित विद्वान वेदों के शब्दों का मूल अर्थ न जानते हुए अनर्थ मूलक अर्थ लगाते हुए उनमें वर्णित भावों को समझे बिना बुराई करने का प्रयत्न करते हैं , अभी हाल में यह प्रवृत्ति काफी देखी जारही है | वेद उच्चकोटि का साहित्य है अतः जिस प्रकार दर्शन व वैदिक विज्ञान, गायत्री ज्ञान के अनुसार मानव के पांच शरीर होते हैं( अन्नमय , प्रा्णमय, मनोमय,विग्यान मय व आनन्द मय ) वैसे ही वैदिक शब्दों के प्रायः पांच अर्थ होते हैं -- यथा--- गौ शब्द का का अर्थ सिर्फ गौ नहीं अपितु....गाय , पृथ्वी, किरणें ,बुद्धि व इन्द्रियां होता है,जो वैदिक मन्त्रों में प्रयुक्त होता है | योनि शब्द का अर्थ सदैव स्त्री योनि लगाकर काम -मूलक अर्थ बताये जाते हैं ...योनि का अर्थ--- स्त्री जननांग, सृष्टि का गर्भस्थल अंतरिक्ष, पृथ्वी का गर्भ स्थल समुद्र ,एवं प्रत्येक वस्तु-भाव का जन्म स्थल या उत्पत्ति स्थल के रूप में वेदों में प्रयुक्त होता है | कुछ अन्य कुछ बताये जाने वाले भ्रमात्मक शब्द-भावों के वेद आदि में वर्णित अर्थ इस प्रकार है---
शूद्र --- "शुचं अद्र्वति इति शूद्र |"...गीता --- जो शोक के पीछे भागे वह शूद्र है |
"गुणार्थमितिचेत "....मीमांसा(६/१/४८ ) ---अर्थात योग्यता ही जाति का आधार है , अतः "अवैद्यत्वात भाव कर्मणि स्वात "( मीमांसा ६/१/३७ )--अर्थात विद्या का सामर्थ्य न होने से ही शूद्र होता है |
तथा .."यदि वां वेद निर्देशशाद्य शूद्राणाम प्रतीयेत " ..( मी -६/१/३३) ---शूद्र भी योग्यता प्रमाण देकर वैदिक मन्त्रों का अधिकारी हो सकता है |
लिंग -- वैशेषिक ४/१/१ के अनुसार...." तस्य कार्य लिंगम " अर्थात उस (ईश्वर या अन्य किसी ) का कार्य ( जगद रूप या कोइ भी कृत-कार्य )ही उसके होने का लक्षण (प्रमाण ) है | अतः --लिंग का अर्थ सिर्फ पुरुष लिंग नहीं अपितु चिन्ह,प्रमाण, लक्षण व अनुमान भी है |
2 टिप्पणियां:
Behad achhee jaankaaree hai yahan!
ज्ञान की तह में उतरने से भ्रम दूर होते हैं।
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