....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सोम क्या है | प्राय विदेशी विद्वान व अन्य सामान्य जन द्वारा वेदों में वर्णित सोम को सुरा या शराब मान बैठते हैं एवं वैदिक साहित्य व सनातन भारतीय धर्म की , इन्द्रादि देवताओं की 'सोम पीत्वा' के कारण बुराइयां ढूँढने, गिनाने, सुनाने लगते हैं | यह वास्तव में अज्ञान के कारण है |
वस्तुतः प्रत्येक वस्तु, भाव व विचार, कार्य, प्रकृति का जो सौम्य ,सम, समताकारी, कल्याणकारी ,शीतलकारी , सर्वश्रेष्ठ मूल भाव है वह 'सोम' है | सत्यं शिवं सुन्दरं भाव है वह "सोम" है | इसीलिये शिव के सिर पर सोम अर्थात चन्द्रमा विराजमान है | सौम्यता धारण के बिना कुछ भी कल्याणकारी नहीं होसकता |
ऋग्वेद ८/२ में कहागया है --"-ह्रत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्यदासो न सुरायाम " ---हे इंद्र ! जिस प्रकार सुरा पीने के बाद लोग उन्मत्त होकर युद्ध करते हैं , वैसे ही यह सोमरस आपके ह्रदय में मंथन करता है |
ऋग्वेद ३/८/२८८९- में कहागया है...." उपस्थाय मातर मन्नयह तिग्मय पश्यदभि सोम मूध:"---उन्होंने ( इंद्र ने ) माता के स्तनों में दुग्ध रूपी दीप्तिमान सोम को देखा |
ऋग्वेद २/३७/२३७८ कहता है ..."सोमं द्रविणोद पिव ऋतुभि: " --अर्थात सोम व धन का ऋतु (मौसम व नियम ) के अनुसार प्रयोग करना चाहिए |--अतः सोम एक पुष्टिदायक पेय पदार्थ था जो बादाम आदि की भांति सर्दी , गर्मी आदि अलग अलग ऋतुओं में अलग अलग भाँति प्रयोग में लाया जाता था , जो सत्तू, आदि में मिला कर भी खाया जाता था |
----क्रमश : ---भाग २...सोम का विस्तृत, वैज्ञानिक वर्णन व विवेचन........अगली पोस्ट में....
सोम क्या है | प्राय विदेशी विद्वान व अन्य सामान्य जन द्वारा वेदों में वर्णित सोम को सुरा या शराब मान बैठते हैं एवं वैदिक साहित्य व सनातन भारतीय धर्म की , इन्द्रादि देवताओं की 'सोम पीत्वा' के कारण बुराइयां ढूँढने, गिनाने, सुनाने लगते हैं | यह वास्तव में अज्ञान के कारण है |
वस्तुतः प्रत्येक वस्तु, भाव व विचार, कार्य, प्रकृति का जो सौम्य ,सम, समताकारी, कल्याणकारी ,शीतलकारी , सर्वश्रेष्ठ मूल भाव है वह 'सोम' है | सत्यं शिवं सुन्दरं भाव है वह "सोम" है | इसीलिये शिव के सिर पर सोम अर्थात चन्द्रमा विराजमान है | सौम्यता धारण के बिना कुछ भी कल्याणकारी नहीं होसकता |
सोम एक दिव्य प्रवाह है जिसका अंतरिक्ष से वर्षण होता है , किरणों , धाराओं आदि के साथ, जो मानव में कल्याणदायी भाव प्रस्फुटित करता है | सोम एक प्रकार की वनस्पति भी है जो " सोमलता " कहलाती है जो मन, बुद्धि शरीर को समर्थ बनाती है |---ऋग्वेद ९/१/९६९८ के अनुसार ....."त्रिधातु वारण्म मधु "
सोम सुरा नहीं है ---सोम को प्राय: सुरा ही समझ लिया जाता है | परन्तु वे भिन्न भिन्न हैं | ऋग्वेद ७/८६/५८२७ मैं सुरा का अलग से वर्णन है ......".न स स्वो दक्षो वरुणाध्रतिः सा सुरा मन्युर्विभीदको अचित्तिः |
अस्ति ज्यायान्कनीय्से उपारे स्वप्नाश्च वेद न्रितस्य प्रयोता || " ---अर्थात...वह पाप ( न स ) स्वयं के दोष के कारण ( स्व दक्षो ) नहीं होता , अपितु मद्यपान (सुरा ), क्रोध ( मन्यु ) , जुआ (विभीदको ) और अज्ञान ( अचित्तिः ) आदि से उत्पन्न होता है | पाप के दुष्कर्मों में जो ज्येष्ठ , कुशल ( अति ज्याया ) हैं वे कनिष्ठ, अल्पज्ञ ( कनीयसे )को पाप में प्रवृत्त करते हैं | ऐसे लोग वृत्ति बिगड़ जाने से स्वप्न में भी पाप-रत रहते हैं |ऋग्वेद ८/२ में कहागया है --"-ह्रत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्यदासो न सुरायाम " ---हे इंद्र ! जिस प्रकार सुरा पीने के बाद लोग उन्मत्त होकर युद्ध करते हैं , वैसे ही यह सोमरस आपके ह्रदय में मंथन करता है |
ऋग्वेद ३/८/२८८९- में कहागया है...." उपस्थाय मातर मन्नयह तिग्मय पश्यदभि सोम मूध:"---उन्होंने ( इंद्र ने ) माता के स्तनों में दुग्ध रूपी दीप्तिमान सोम को देखा |
ऋग्वेद २/३७/२३७८ कहता है ..."सोमं द्रविणोद पिव ऋतुभि: " --अर्थात सोम व धन का ऋतु (मौसम व नियम ) के अनुसार प्रयोग करना चाहिए |--अतः सोम एक पुष्टिदायक पेय पदार्थ था जो बादाम आदि की भांति सर्दी , गर्मी आदि अलग अलग ऋतुओं में अलग अलग भाँति प्रयोग में लाया जाता था , जो सत्तू, आदि में मिला कर भी खाया जाता था |
----क्रमश : ---भाग २...सोम का विस्तृत, वैज्ञानिक वर्णन व विवेचन........अगली पोस्ट में....
5 टिप्पणियां:
सुन्दर, सार्थक और ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए बहुत बहुत आभार. 'सोम' के ऊपर गहन व रोचक विश्लेषण किया है आपने.इस सम्बन्ध में जो भी भ्रांतियाँ हैं उनका उन्मूलन होना ही चाहिये.आपका प्रयास प्रसंसनीय है.
ज्ञानवर्क आलेख।
बहुत बढ़िया आलेख गुरुदेव..कई भ्रान्तिया दूर हो गयी इस लेख को पढ़कर..
आप की अन्हुमती हो तो ये पोस्ट मैं हल्ल्ला बोल पर लगाना चाहता हूँ..क्युकी सोमरस को लेकर काफी भ्रान्तिया है और इसका वास्तविक परिचय ल्ज्यदातर लोगो से वंचित है
धन्यवाद आशुतोष....बिल्कुल अनुमति है...
--धन्यवाद रमेश जी...अच्छा कार्य कर रहे हैं...अवश्य ध्यान रखा जाना चाहिये....जन सहमति एसे ही तो बनती है....
धन्यवाद पान्डे जी एवं राकेश जी...
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