....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
"" सच्चा गणेश कौन है ? Real Ganesh --- गण + ईश = गणेश
तुच्छ जीव है मूषक लेकिन, पहुँच हर जगह है उसकी |
सबका हो कल्याण, ॐ से सजे हस्त से वर देते |
ऐसे सारे गुण हों बच्चो! वे ही नायक कहलाते |
अनवर जमाल साहब ने अपनी पोस्ट में लिखा...-----
"" सच्चा गणेश कौन है ? Real Ganesh --- गण + ईश = गणेश
जो गणों का स्वामी है वही गणेश है। यह ईश्वर का एक नाम है। यह संस्कृत का नाम है। क़ुरआन की सबसे आखि़री सूरा (114, 3) में भी अल्लाह को ‘इलाहिन्नास‘ कहा गया है। इलाह = ईश, नास = गण , 'इलाहिन्नास'= गणेश.. ......हिंदू दार्शनिकों ने इस प्रॉब्लम को हल करने के लिए कल्पना और चित्र आदि का सहारा लिया तो गणेश का रूप कुछ से कुछ बन गया और ....... इस तरह की कल्पनाओं ने लोगों को भ्रम में डाल दिया है और हिंदू और मुसलमानों में दूरी डाल दी है।---."" -----------
यह तो अच्छी बात है गणेश का नाम कुरआन में है क्योंकि वह वेदों से बहुत बाद की है .......पर वास्तव में अनवर साहब गणेश का अर्थ व उनके रूप के भावार्थ नहीं समझे ... ....ये भारतीय तत्वज्ञान है कि ब्रह्म या ईश्वर एक होते हुए भी वह विभिन्न रूप से जाना, माना, पहचाना, पूजा, अर्चा जाता है...जाकी रही भावना जैसी ......हिन्दू धर्म-तत्व कोइ एक किताब नहीं कि सभी उसीका पालन करें आँख बंद करके ......अपितु प्रत्येक देव व उसका नाम , काम, रूप, भाव स्वयं में एक किताब है .....मानव को उस पर अपनी इच्छा, श्रृद्धा, भाव, कर्मानुसार आँखें खोलकर ...सोच समझकर चलना होता है..........बहुत लिबरल है ये धर्म-व्यवस्था....जीने की व्यवस्था.......
.ये तो कक्षा ५ का विद्यार्थी भी जानता है कि तत्पुरुष समास के अनुसार... गण+ ईश = गणेश ---अब गण कौन है .....जन गण मन ...अर्थात राष्ट्र, राज्य आदि---- अर्थात ..गणाध्यक्ष ....अब गणाध्यक्ष कैसा होना चाहिए ...इसी भाव से है गणेश जी का रूप ...उनका एक नाम 'गणपति' भी है | वे देवाधिदेव हैं ....... यदि बहुब्रीहि समास के अनुसार कहें तो.... गणेश ..= गण है ईश जिसका ...अर्थात जो गण अर्थात राष्ट्र...जन गण मन को ही अपना सब कुछ मानता हो.....तो ऐसे व्यक्ति को देव ही कहेंगे और उसी के अनुसार गणेश जी का रूप है वे देवाधिदेव हैं ऐसे कल्याणकारी देव को सर्व-प्रथम क्यों न पूजा जाय....|---मुझे लगता है मेरा एक ---बाल गीत ही गणेश के बारे में समझाने के लिए काफी होगा.....
गणपति गणेश....
हाथी जैसा सर है जिनका,एकदंत कहलाते हैं ||
मोटा पेट हाथ में मोदक,चूहे की है बनी सवारी |
ओउम कमल औ शंख हाथ में,माथे पर त्रिशूल धारी ||
ये गणेश हैं गणनायक हैं,सर्वप्रथम पूजे जाते |
क्यों हैं एसा वेष बनाए,आओ बच्चो बतलाते ||
तुच्छ जीव है मूषक लेकिन, पहुँच हर जगह है उसकी |
पास रखें ऐसे लोगों को,एसी कुशल नीति जिसकी ||
सूक्ष्म निरीक्षण वाली आँखें, सबकी सुनने वाले कान |
सच को तुरत सूंघ ले एसी, रखते नाक गणेश सुजान ||
बड़े भेद और राज की बातें, बड़े पेट में भरी रहें |
शंख घोष है,कमल सी मृदुता,कोमल मन में सजी रहें ||
सबका हो कल्याण, ॐ से सजे हस्त से वर देते |
मोदक का है अर्थ,सभी को प्रिय कहते,प्रिय कर देते ||
अमित भाव-गुण युत ये बच्चो!, रूप अनेकों सजते |
कभी नृत्यरत,कभी खेलरत,कभी ग्रन्थ भी लिखते||
ऐसे सारे गुण हों बच्चो! वे ही नायक कहलाते |
7 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा लगा गणेश जी के बारे में पढ़ना। आपने एकदम सहज सरल भाषा में समझाया है।
जय गणेश देवा।
धन्यवाद पांडे जी व मनोज जी ....जय गणेश देवा....
पढ़ कर
काफी ज्ञान हासिल हुआ
अभिवादन स्वीकारें .
मेरा बिना पानी पिए आज का उपवास है आप भी जाने क्यों मैंने यह व्रत किया है.
दिल्ली पुलिस का कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें. मैं नहीं मानता कि-तुम मेरे मृतक शरीर को छूने के भी लायक हो.आप भी उपरोक्त पत्र पढ़कर जाने की क्यों नहीं हैं पुलिस के अधिकारी मेरे मृतक शरीर को छूने के लायक?
मैं आपसे पत्र के माध्यम से वादा करता हूँ की अगर न्याय प्रक्रिया मेरा साथ देती है तब कम से कम 551लाख रूपये का राजस्व का सरकार को फायदा करवा सकता हूँ. मुझे किसी प्रकार का कोई ईनाम भी नहीं चाहिए.ऐसा ही एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है. ज्यादा पढ़ने के लिए किल्क करके पढ़ें. मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा.
मैंने अपनी पत्नी व उसके परिजनों के साथ ही दिल्ली पुलिस और न्याय व्यवस्था के अत्याचारों के विरोध में 20 मई 2011 से अन्न का त्याग किया हुआ है और 20 जून 2011 से केवल जल पीकर 28 जुलाई तक जैन धर्म की तपस्या करूँगा.जिसके कारण मोबाईल और लैंडलाइन फोन भी बंद रहेंगे. 23 जून से मौन व्रत भी शुरू होगा. आप दुआ करें कि-मेरी तपस्या पूरी हो
दुआ है...सर्वेन सुखिना सन्तु....
धन्यवाद दानिश जी..आभार...सभी देवों के नाम व रूप इसी प्रकार गुण रूप हैं...प्रतीक हैं ... जैसे आस्ट्रेलिया को आज हम कंगारू कहते हैं और भारत के लिए टाइगर का प्रयोग करते हैं....
---जब सभ्यता-संस्कृति उच्चतर होती जाती है तो वर्णनात्मक भाषा के स्थान पर प्रतीकात्मक-संकेतात्मक भाषा का प्रयोग होने लगता है...
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