....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
क्यों घबराये होरही , भ्रष्टाचार की जांच |
भ्रष्टाचारी बन्धु सब, तुझे न आये आंच |1
मेल परस्पर घटि गयो, वाणिज मन हरषाय |
मेल-मिलाप करायं हम, पानी -दूध मिलाय |2
ज्ञान हेतु अब ना पढ़ें , पढ़ें नौकरी हेतु |
लक्ष्य चाकरी होगया, लक्ष्मी बनी है सेतु |3
धन साधन की रेल में,भीड़ खचाखच जाय |
धक्का -मुक्की धन करै, ज्ञान नहीं चढ़ पाय |4
चाहे पद-पूजन करो, या साष्टांग प्रणाम |
काम तभी बन पायगा, चढे चढ़ावा दाम |5
जन तो तंत्र में फंस गया,तंत्र हुआ परतंत्र |
चोर- लुटेरे लूटते, घूमें बने स्वतंत्र | 6
राजनीति की नीति में,कैसा अनुपम खेल |
ऊपर से दल विरोधी, अन्दर अन्दर मेल | 7
ऊपर से दल विरोधी, अन्दर अन्दर मेल | 7
आरक्षण की आड़ में, खुद का रक्षण होय |
नालायक सुत-पौत्र सब, यहि विधि लायक होय | 8
बाढ़ आय सूखा पड़े , हो खूनी संघर्ष |
इक दूजे को दोष दे , नेताजी मन हर्ष | 9
भाँति भाँति के रूप धरि, खड़े मचाएं शोर |
किसको जन अच्छा कहे, किसे कहें हम चोर | १०
नेता वाणी से करें, परहित पर उपकार |
निजी स्वार्थ में होरहा, जन धन का व्यवहार || 11
8 टिप्पणियां:
सीधी सरल भाषा में बड़ी ही व्यवहारिक सीख।
वाह! वाह! श्याम जी वाह!
आपकी सुन्दर प्रस्तुति से बस निकली मन से आह
भाँति भाँति के रूप धरि, खड़े मचाएं शोर |किसको जन अच्छा कहे, किसे कहें हम चोर |
चाहे पद-पूजन करो, या साष्टांग प्रणाम |
काम तभी बन पायगा, चढे चढ़ावा दाम |
राजनीति की नीति में,कैसा अनुपम खेल |
ऊपर से दल विरोधी, अन्दर अन्दर मेल |
सटीक लिखा है आपने! सभी दोहे एक से बढ़कर एक है! लाजवाब प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
धन्यवाद ..प्रवीण जी, बबली जी एवं राकेश जी...
लक्ष्य चाकरी होगया, लक्ष्मी बनी है सेतु
बहुत ज्ञानपूर्ण सत्य पंक्तियाँ
धन्यवाद आशुतोष .....वास्तव में लक्ष्मी तो सदा ही हर काम का सेतु होती है...पर सिर्फ स्वार्थ चिंतन सहित चाकरी लक्ष्य हो बिना परमार्थ के तो वह अलक्ष्मी हो जाती है ....भ्रष्टाचार की जड़...
प्रिय श्याम जी हार्दिक अभिवादन -बहुत ही सुन्दर-सटीक दोहे -सुन्दर जज्बात -आप के सुविचार- लाजबाब प्रस्तुति -थप्पड़ मारता हुआ व्यंग्य -काश इन की चुन्धियाई आँखें खुलें !
कुछ अक्षर जो एक साथ चिपक जाते हैं कृपया उन्हें सम्हालें जैसे -
घबराये होरही
चाकरी होगया
स्वार्थ में होरहा
चाहे पद-पूजन करो, या साष्टांग प्रणाम |
काम तभी बन पायगा, चढे चढ़ावा दाम |5
जन तो तंत्र में फंस गया,तंत्र हुआ परतंत्र |
चोर- लुटेरे लूटते, घूमें बने स्वतंत्र | 6
आभार आप का
शुक्ल भ्रमर ५
धन्यवाद भ्रमर जी....
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