....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
( अमत्ता-कवित्त -- छंद में सभी वर्ण लघु होते हैं )
( अमत्ता-कवित्त -- छंद में सभी वर्ण लघु होते हैं )
उठि सखि चलि जलु भरनि जमुन तट ,
पुनि चलि उपवन पुहुप सुघरि चुनि |
चितव चितव इत उत् किहि लखि सखि ,
कनु न मिलहि इत मधुवन चलि पुनि |
अली जु रिसइ कहि अब न चलहुं, पर-
उझकि-उझकि सुनि मुरलि-धरन धुनि ।
लटकि लटकि लट सरकि सरकि पटु,
स्रवन फ़रकि फ़र कुंवर बयन सुनि ॥
7 टिप्पणियां:
bahut pyara chand likha hai.bahut umda.
सुन्दर छन्द और सुन्दर वर्णन..
चितव चितव इत उत् किहि लखि सखि ,
कनु न मिलहि इत मधुवन चलि पुनि |
अली जु रिसइ कहि अब न चलहुं, पर-
उझकि-उझकि सुनि मुरलि-धरन धुनि ।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ! भावपूर्ण गीत ! लाजवाब प्रस्तुती!
धन्यवाद राजेश कुमारी जी, पांडे जी व बबली....
बहुत सुन्दर छंद रचा सर,
सादर बधाई...
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-673:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
धन्यवाद , संजय एवं दिलबाग जी ..
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