....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
( अगीत -८ से १० पंक्ति के अतुकांत छंद हैं , जिनमें गेयता, लयबद्धता व प्रवाह होना चाहिए )
अर्थ
( अगीत -८ से १० पंक्ति के अतुकांत छंद हैं , जिनमें गेयता, लयबद्धता व प्रवाह होना चाहिए )
अर्थ
अर्थ, स्वयं ही एक अनर्थ है;
मन में भय चिंता भ्रम की -
उत्पत्ति में समर्थ है |
इसकी प्राप्ति, रक्षण एवं उपयोग में भी ,
करना पडता है कठोर श्रम ;
आज है, कल होगा या होगा नष्ट-
इसका नहीं है कोई निश्चित क्रम |
अर्थ, मानव के पतन में समर्थ है ,
फिर भी, जीवन के -
सभी अर्थों का अर्थ है ||
अर्थ-हीन अर्थ
अर्थहीन सब अर्थ होगये ,
तुम जबसे राहों में खोये |
शब्द छंद रस व्यर्थ होगये,
जब से तुम्हें भुलाया मैंने |
मैंने तुमको भुला दिया है ,
यह तो -कलम यूंही कह बैठी ;
कल जब तुम स्वप्नों में आकर ,
नयनों में आंसू भर लाये ;
छलक उठी थी स्याही मन की |
1 टिप्पणी:
जब सही अर्थ ही अनर्थ लिये हैं..
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