....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
----क्या आपकी पत्नी भी कहीं काम करती हैं ......अरे नहीं , वे तो हाउस वाइफ हैं।
----क्या आप भी कहीं काम करते हैं ......नहीं मैं तो घरेलू स्त्री ..हाउस वाइफ हूँ ।
---- क्या आप भी हाउस वाइफ हैं ....... अरे नहीं मैं तो बैंक में अफसर हूँ ।
अर्धांगिनी, घर की लक्ष्मी, मालकिन, महारानी, "बिनु घरनी घर भूत का डेरा.... " आदि उपाधि धारी, दिन भर घर-आंगन सुधारने-बुहारने में हड्डी-मांस गलाने वाली या झाडू लगवाने, खाना बनवाने, धोबी का हिसाब, किफायत से मार्केटिंग करने, दिन भर घर-द्वार की कुंडी-दरवाज़ा खोलने-बंद करने में रक्त-सुखाने वाली, बच्चे पैदा करके- पालन-पोषण में शरीर को होम करने वाली, रूखा-सूखा खाकर संतुष्ट रहकर......आगे आप ही सोचिये ......यह ऐसा सर्वश्रेष्ठ व कठिनतम श्रम करने वाली "हाउस वाइफ" की सुन्दर-असुंदर तस्वीर है.......।
कैश व काइंड... तो भ्रष्टाचार व रिश्वत में भी खूब चलता है.......परन्तु जब महिला-श्रम की बात होती है तो बस कैश की ही बात की जाती है ....श्रम उसे ही कहते हैं जिसमें कैश मिलता है...धन मिलता है...तनखा- पे-पर्क्स मिलते हैं ...तब हम मैन-काइंड के लिए...काइंड पर श्रम करती ..."हाउस वाइफ"... को भूल जाते हैं .जिसका मूल्य यह मनुष्य, मानव, समाज, विश्व इतिहास, भूत-भविष्य-वर्तमान...पूरे जीवन में व इतिहास में नहीं चुका सकता।
आखिर कब तक घरेलू महिला, हाउस-वाइफ गयी-गुज़री, "घर की मुर्गी दाल बराबर" बनी रहेगी ? क्या हाउस वाइफ का श्रम.. श्रम नहीं ?....क्या नौकरी करती महिला 'हाउस वाइफ. नहीं तो क्या.....।
----क्या आपकी पत्नी भी कहीं काम करती हैं ......अरे नहीं , वे तो हाउस वाइफ हैं।
----क्या आप भी कहीं काम करते हैं ......नहीं मैं तो घरेलू स्त्री ..हाउस वाइफ हूँ ।
---- क्या आप भी हाउस वाइफ हैं ....... अरे नहीं मैं तो बैंक में अफसर हूँ ।
अर्धांगिनी, घर की लक्ष्मी, मालकिन, महारानी, "बिनु घरनी घर भूत का डेरा.... " आदि उपाधि धारी, दिन भर घर-आंगन सुधारने-बुहारने में हड्डी-मांस गलाने वाली या झाडू लगवाने, खाना बनवाने, धोबी का हिसाब, किफायत से मार्केटिंग करने, दिन भर घर-द्वार की कुंडी-दरवाज़ा खोलने-बंद करने में रक्त-सुखाने वाली, बच्चे पैदा करके- पालन-पोषण में शरीर को होम करने वाली, रूखा-सूखा खाकर संतुष्ट रहकर......आगे आप ही सोचिये ......यह ऐसा सर्वश्रेष्ठ व कठिनतम श्रम करने वाली "हाउस वाइफ" की सुन्दर-असुंदर तस्वीर है.......।
कैश व काइंड... तो भ्रष्टाचार व रिश्वत में भी खूब चलता है.......परन्तु जब महिला-श्रम की बात होती है तो बस कैश की ही बात की जाती है ....श्रम उसे ही कहते हैं जिसमें कैश मिलता है...धन मिलता है...तनखा- पे-पर्क्स मिलते हैं ...तब हम मैन-काइंड के लिए...काइंड पर श्रम करती ..."हाउस वाइफ"... को भूल जाते हैं .जिसका मूल्य यह मनुष्य, मानव, समाज, विश्व इतिहास, भूत-भविष्य-वर्तमान...पूरे जीवन में व इतिहास में नहीं चुका सकता।
आखिर कब तक घरेलू महिला, हाउस-वाइफ गयी-गुज़री, "घर की मुर्गी दाल बराबर" बनी रहेगी ? क्या हाउस वाइफ का श्रम.. श्रम नहीं ?....क्या नौकरी करती महिला 'हाउस वाइफ. नहीं तो क्या.....।
5 टिप्पणियां:
बाहर की नौकरी से भी अधिक कठिन है यह कार्य।
bahut sahi prashn uthaya hai.....
धन्यवाद पान्डे जी....म्रिदुला जी एवं शास्त्री जी.....आभार..
गृहिणियों के श्रम का हिसाब लगाना और उसे मूल्य से आंकना संभव ही नहीं है !
इस प्रश्न का उत्तर कोई नही दे सकता ।
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