....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
इन्द्रधनुषी विचारों के दरवार में ... प्रोफ. वी बै ललिताम्बा ...पूर्व आचार्य ..अहल्या वि वि इंदौर ( म प्र)
----मेरे विचारों की दुनियां -मेरे अपने विचार एवं उन पर मेरा स्वयं का व्याख्या-तत्व तथा उनका समयानुसार महत्व .... --My myriad thoughts, their personal interpretations and their relevance...http://shyamthot.blogspot.com
4 टिप्पणियां:
आपके उपन्यास "इन्द्रधनुष" की बहुत अच्छी समीक्षा की प्रो० वी बै ललिताम्बा जी ने,...बधाई
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
सुन्दर प्रस्तुति ।।
मेडिकल कॉलेजों के बारे में यही अवधारणा है कि वहाँ पढ़ाई की नीरवता छायी रहती है।
धन्यवाद धीरेन्द्र जी, रविकर जी एवं पान्डे जी जी....
--- जन्गल में ही तो मंगल करने की आवश्यकता होती है...नीरवता को जीवन्त करते रहने की कला आनी चाहिये जीवन में....तो जीवन सहज़ रहता है..
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