....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सर हमारा, आपके कांधों पै था।
ख्याल सारा, आपकी बातों पे था ।
क्या नज़ारा था, कि हम थे आपके ,
क्या गुमां उन प्यार की रातों पै था।
क्या बतायें, क्या कहैं, कैसे कहैं,
क्या नशा उन दिल के ज़ज़्वातों पै था ।
हम तो उस पल, होगये थे आपके,
इक यकीं बस, आपके वादों पै था ।
आप जो भूले, नहीं था गम कोई,
हमको अरमां आपकी यादों पै था ।
कैसे टूटा श्याम’ टुकडे होगया ,
दिल हमारा, आपके हाथों पै था ॥
6 टिप्पणियां:
वाह, बहुत खूब..
Kya Kahne hain...
धन्यवाद नीरज जी व पान्डे जी....
डॉ टी एस दराल has left a new comment on your post "डा श्याम गुप्त की गज़ल.....":
वाह ! बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखी है डॉक्टर साहब .
बस पै की जगह पे कर लें तो एकदम सही लगेगी .
धन्यवाद --डा दराल... सही कहा उर्दू में पे ही लिखा कहा जाता है या फ़िर पर....मुझे लगता है हिन्दी में पे अशिष्ट सा लगता है...
आप जो भूले, नहीं था गम कोई,
हमको अरमां आपकी यादों पै था ।
बढ़िया ग़ज़ल प्रगाढ़ अनुभूतियों से संसिक्त रागात्मकता को सहेजती सी .बधाई .
.कृपया यहाँ भी पधारें -
बुधवार, 9 मई 2012
शरीर की कैद में छटपटाता मनो -भौतिक शरीर
http://veerubhai1947.blogspot.in/
रहिमन पानी राखिये
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
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