....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
जो ग्रंथों का वाचन करते ,
वे अज्ञानी से मानी हैं |
और ग्रन्थ पाठक से मानी,
नित्य अध्ययन करने वाला |
अध्यायी से अधिक श्रेष्ठ है,
जो है ज्ञान-तत्वका ज्ञाता |
और ज्ञान को कृति में लाकर,
श्रेष्ठ कर्म को करने वाला |
आत्म-ज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ है,
सब विद्याधन देने वाला|
जो निज को पहचान गया है,
वह पाए अमृत मतवाला |
जो सब में निज को ही जाने,
सबमें अपने को पहचाने |
आत्मलीन वह निर्विकार है,
उसको मिले मुक्ति का प्याला |
भेदाभेद फलाफल से जो.
मुक्त उसे अमृत मिलता है |
कैसे प्राप्त उसे कर सकता,
असत कर्म का करने वाला ||
जो ग्रंथों का वाचन करते ,
वे अज्ञानी से मानी हैं |
और ग्रन्थ पाठक से मानी,
नित्य अध्ययन करने वाला |
अध्यायी से अधिक श्रेष्ठ है,
जो है ज्ञान-तत्वका ज्ञाता |
और ज्ञान को कृति में लाकर,
श्रेष्ठ कर्म को करने वाला |
आत्म-ज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ है,
सब विद्याधन देने वाला|
जो निज को पहचान गया है,
वह पाए अमृत मतवाला |
जो सब में निज को ही जाने,
सबमें अपने को पहचाने |
आत्मलीन वह निर्विकार है,
उसको मिले मुक्ति का प्याला |
भेदाभेद फलाफल से जो.
मुक्त उसे अमृत मिलता है |
कैसे प्राप्त उसे कर सकता,
असत कर्म का करने वाला ||
2 टिप्पणियां:
आत्म-ज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ है,
सब विद्याधन देने वाला|
जो निज को पहचान गया है,
वह पाए अमृत मतवाला |,,,,,भावपूर्ण पंक्तियाँ
बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
धन्यवाद धीरेन्द्र जी व पांडे जी....
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