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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

श्री लंका यात्रा --अंतिम क़िस्त .....इन्दुर्वा बीच -











                                

इन्दुर्वा बीच रिजोर्ट  एव बीच -हिन्द महासागर  श्री लंका
इन्दुर्वा बीच
दुग्ध-धवल फेनिल सागर जल

                        २९-१२-१२  को प्रातः नाश्ते के उपरांत होटल में ही  स्विमिंग पूल एवं श्री लंका के दक्षिणी -पश्चिमी तट पर हिन्द-महासागर स्थित इन्दुर्वा बीच  जो रिजोर्ट की अपनी  ही बीच है ,पर  समुद्री तट पर घूमने,  समुद्र स्नान ,  चट्टानों से टकराकर उछलते समुद्र की लहरों का आनंद लिया क्योंकि दोपहर  को कोलम्बो के लिए निकलना था जहां से चेन्नई के लिए फ्लाईट थी  एवं चेन्नई से रात्रि में बेंगलोर के लिए ट्रेन  |
आराध्य निर्विकार व रीना सागर-लहरों में
                      









 
     













लहरों की भंवर में
 बालू में रीना व सुषमा जी
धवल लहरों में मस्ती--आराध्य, रीना व निर्विकार


 निर्विकार एवं सागर की  एक उत्ताल तरंग 
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                       
   
सागर तट -चट्टान पर
मछली पकड़ते नाविक
                  



आराध्य, रीना व निर्विकार के साथ मस्ती के मूड में



सुषमा जी की गोद में आराध्य और दोस्ती का हाथ

|दोपहर में हम लोग बापस कोलम्बो के लिए चल दिए रास्ते में  कोस्गोडा टर्टल - हेचरी व नर्सरी में एक दिन से ५५ वर्ष व ८४ वर्ष तक  उम्र के व विभिन्न प्रजातियों के टर्टल ( सागरीय कच्छप ) का अवलोकन किया | यहाँ समुद्र से टर्टल के अंडे रात के समय में बीच की रेती सहित उठालिये जाते हैं एवं २-३ दिन का होने पर पुनः सागर में छोड़ दिए जाते हैं| समुद्री कच्छप -टर्टल -  सामान्य टोरटोइज़---कछुओं --से भिन्न कच्छप की वह प्रजाति होती है जिसके कछुओं की भाँति  पैर न होकर मछली के फिन्स ( परों) की भाँति  चार फ्लेट पैर होते हैं एवं वे कछुओं की भाँति सुरक्षा हेतु अपने खोल ( कवच) में नहीं घुस सकते |
आरू सिपिंग द नारियल-पानी
अल्बीनो -श्वेत -टर्टल
२ दिन के टर्टल-बच्चे  और आराध्य
बड़े टर्टल
                  



                      २९-१२-१२ शाम को कोलम्बो के भंडारनायके एयर -पोर्ट पर पहुँच कर  एक सप्ताह तक साथ रहने वाले  सौम्य व सज्जन व्यक्तित्व वाले श्री लंकन ड्राइवर  व गाइड  का किरदार निभाने वाले श्री हरेंदु मेंडिस  से बिदा ली | मेरी  पुस्तक  शूर्पणखा काव्य-उपन्यास की प्रति भेंट में पाकर उन्होंने हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त की | ३०-१२-१२ को प्रातः हम लोग बापस बेंगलोर आगये   |             

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुन्दर यात्रा वृत्तांत..

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद ---