....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सृष्टि के मानव इतिहास में मानव आचरण व मर्यादा के सर्वप्रथम नियम व नियमानुशासन प्रणेता.... सूर्यपुत्र यम ....
आज महिला दिवस पर महिला सशक्तीकरण, महिलाओं पर अत्याचार के विरुद्ध विभिन्न भावों , वक्तव्यों, आकांक्षाओं, आशाओं, इच्छाओं, सुझावों , क़ानून व उसके पालन पर जोर, नए-नए नियमों आदि का प्रकटीकरण जोर-शोर पर है जो निश्चय ही एक जागरूक समाज के लक्षण हैं | इन सबके साथ जो अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्य है वह है 'मानव आचरण' का | सब कुछ होते हुए भी जब तक मानव मात्र ..चाहे पुरुष हो या नारी... सद-आचरण का व्यबहार नहीं करेगा, कोई उपाय सफल नहीं हो सकता क्यंकि प्रत्येक स्थान पर कार्य करने वाला, कृतित्व को अंजाम देने वाला भी मनुष्य ही है एवं परिणाम भुगतने वाला भी वही मानव है |
ऋग्वेद में यम-यमी आख्यान नामक एक कथा है जो अथर्व वेद में भी पुन: कही गयी है ,जिसकी प्राय: विधर्मी व विद्वेषी लोग गलत अर्थ लेकर आलोचना भी करते हैं | वह मानव -इतिहास की एक विशेष , मील का पत्थर है ...टर्निंग पॉइंट | यम व यमी विवस्वान सूर्य एवं सरण्यू के जुड़वां पुत्र-पुत्री थे| उस काल में आचरण बंधन नियम नहीं थे ...यमी अपने स्थान पर प्रवास के दौरान ..यम से संतानोत्पत्ति की इच्छा जाहिर करती है | परन्तु यम ,, नए व उचित आचरण नियमों की रचना व स्थापना करते हैं |... यम का कथन है ...
" न ते सखा सख्यं वष्टये तत्स लक्ष्यायद्विसुरूपा भवाति |
महास्पुमासो असुराकर्मवीरा दिवोध्वरि उर्विया परिख्यनि ||."..ऋग्वेद 10/10/८८६७ एवं अथर्ववेद 18/१/१ ...
----- ...हे यमी ! आपका ये साथी यम इस सम्बन्ध का इच्छुक नहीं है क्योंकि आप सहोदरा हैं | अतः यह अभीष्ट नहीं है, लक्ष्य-प्राप्ति हित वि-स्वरुप अर्थात प्रतिकूल हैं | अन्य बहुत से असुर वर्ग ( अन्य वर्ग ...भिन्न वर्ग के लोग ) उपस्थित हैं आप उनसे संगति करें |..तथा...
" आ धा ता गच्छानुसरा युगानि यत्र जामय कृणवान्नजादि |
उप ववृद्धि बृषभाय बाहुमन्यमिच्छस्य सुभगे पति मत ||".. .... हे सुभगे! हो सकता है कि इस प्रकार भविष्य में सहोदरा, बंधुत्व भाव रहित भाइयों को ही पति रूप में स्वीकारें | हम नियम स्थापित करें | अतः आप मुझसे यह अपेक्षा न करें |
इसका सामान्य व्यवहारिक वैज्ञानिक पक्ष है कि यम का कथन है कि दो समान परिवार, कुल व सम्बन्ध वाले स्त्री-पुरुष आपस में सम्बन्ध न करें अपितु अन्य दूरस्थ सम्बंध वालों में सम्बन्ध होना चाहिए | यह गोत्र संस्था व जेनेटिक -शास्त्र का प्रथम कथ्य है |
उपाख्यान की भौतिक विज्ञान की व्याख्या के अनुसार ... बिगबेंग या श्रृष्टि के पश्चात शक्ति कण व चेतन कणों का प्रादुर्भाव हुआ ..शक्ति कण असुर कहलाये एवं चेतन कणों को सुर कहा गया ....
--- शक्ति कण +शक्ति कण = पदार्थों, प्रकृति का निर्माण हुआ एवं
---चेतन कण +शक्ति कण = चेतन तत्व प्राण तत्व का निर्माण होता है | अतः चेतन +चेतन से कोई निर्माण नहीं होता अतः चेतन तत्व यमी को नवीन तत्वों , पदार्थों या बलिष्ठ व उच्च बौद्धिक संतति हेतु शक्ति तत्व... असुरकणों , असमान , दूरस्थ सम्बन्ध वाले से सम्बन्ध बनाना चाहिए |
वास्तव में उपाख्यान का सामाजिक, दार्शनिक व धार्मिक व आचरण गत अर्थ है कि यदि किसी विशेष परिस्थितिवश, एकांत या अन्य प्रभाव वश स्त्री या पुरुष किसी
में भी आचरण दौर्वल्यता या आती है तो अधिक समझदार, विज्ञ, अनुभवी, बलशाली
स्त्री-पुरुष का यह कर्तव्य व दायित्व है कि मर्यादा का पालन करे व कराये न कि दूसरे की दुर्बलता व परिस्थिति का अनुचित लाभ उठायें | पुरुष यदि इसका दृड़ता से पालन करें तो वे बलात्कार , स्त्री हिंसा, यौन उत्प्रीडन में रत होने से बचे रहेंगे | समाज में अधिकतर ..अपेक्षाकृत बलिष्ठ एवं अधिक सामर्थवान स्थिति पर होने के कारण निश्चय ही ( यम की भाँति ) पुरुष का यह गुरुतर दायित्व है |
इस प्रकार यम सृष्टि के सर्वप्रथम सामाजिक, व्यवहारिक व आचरण के नियामक बने इसीलिये .. .नियम को 'नियम, नियमानुशासन, यमानुशासन, यम-नियम एवं आयाम आदि कहा जाता है | और यम को सृष्टि का अनुशासक |