....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
साहित्य की बात करते हुए डा श्याम गुप्त के विचार थे कि साहित्य मानव को मानव
बनाने में सक्षम है आज के विविध द्वेष-द्वंद्वों का कारण हमारा साहित्य से दूर
होजाना ही है | समस्त भाषाएँ विश्व की प्राचीनतम भाषा संस्कृत से ही प्रादुर्भूत
हुई हैं, हिन्दी भी ..अतः हिन्दी सहित किसी भी भारतीय भाषा-भाषी को दक्षिण भारतीय
भाषाओं का पूर्ण ज्ञान न होते हुए भी संस्कृत-निष्ठ होने के कारण वे कुछ न कुछ
अवश्य समझ में आती हैं |
कर्नाटक हिन्दी प्रचार
समिति, बेंगलोर द्वारा शिक्षक दिवस समारोह
भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं
प्रसिद्द शिक्षाविद व दार्शनिक विद्वान् डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस, “शिक्षक
दिवस” गुरूवार दि.०५-०९-२०१३ पर कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति, जयनगर, बेंगलोर
द्वारा समिति के मंत्री एवं समिति द्वारा संचालित ‘हिन्दी शिक्षक-प्रशिक्षण
महाविद्यालय’ के प्रधानाचार्य डा वि रा देवगिरी की अध्यक्षता में एक भव्य समारोह
आयोजित किया गया | समारोह के मुख्य अतिथि डा श्याम गुप्त, लखनऊ एवं विशिष्ट अतिथि संस्कृत
के विद्वान् एवं कन्नड़ के प्राध्यापक प्रोफ.शंकर नारायण भट्ट थे |
अतिथियों
द्वारा मां सरस्वती एवं डा.राधाकृष्णन के चित्रों पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के
पश्चात वाणी-वन्दना एवं वेदवाणी-घोष किया गया| तत्पश्चात समिति के अध्यक्ष द्वारा अतिथियों
डा श्याम गुप्त एवं प्रोफ शंकर नारायण भट्ट का अंगवस्त्र व पुष्पगुच्छ एवं स्मृति
चिन्ह देकर सम्मान किया गया | शिक्षकों एवं प्रशिक्षु शिक्षकों द्वारा कन्नड़ एवं
हिन्दी में शिक्षक-दिवस पर अपने विचार व आलेख प्रस्तुत किये गए | शिक्षकों को भेंट
प्रदान करके उनका सम्मान भी किया गया | अध्यक्ष एवं अतिथियों द्वारा अपने
व्याख्यानों के पश्चात प्रशिक्षुओं द्वारा विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत
किये गए जिनमें जल संरक्षण, ग्लोबल वार्मिंग जैसे सामयिक विषयों पर नृत्य नाटिकाएं एक मुख्य आकर्षण रहीं |
अपने स्वागत भाषण में डा देवगिरी जी ने
शिक्षक-दिवस की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए अतिथियों का विस्तृत परिचय दिया | हिन्दी
भाषा एवं साहित्य पर वक्तव्य देते हुए अतिथियों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश
डालते हुए उन्होंने डा श्यामगुप्त द्वारा रचित हिन्दी कविता की विशेष धारा ‘अगीत-कविता
‘ के छंद विधान “अगीत साहित्य दर्पण” की विवेचनात्मक व्याख्या करते हुए अगीत कविता
क्या है इसकी विविध उदाहरणों को गेय-रूप में सुनाकर उनकी व्याख्या की |
डा शंकर नारायण ने अपने कन्नड़ भाषा में दिए हुए वक्तव्य
में गुरु की महिमा पर हिन्दी, संस्कृत एवं कन्नड़ भाषाओं में दिए गए विविध उदाहरणों
द्वारा विस्तृत प्रकाश डाला |
डा
श्याम गुप्त ने अपना वक्तव्य... स्वरचित
काव्यांश... ‘सारा जग सुन्दर अति
सुन्दर, पर भारत की बात निराली |’ ...से प्रारम्भ करते हुए जगदगुरु भारत
की महत्ता एवं भारतीय संस्कृति व देश एवं भाषा की प्राचीनता पर प्रकाश डालते हुए
गुरु की महत्ता, सर्वगुरु ईश्वर, सतगुरु, त्रिगुरु- माता, पित़ा, गुरु की व्याख्या
करते हुए सुनाया –
एक शब्द भी ज्ञान का हमको देय बताय,
श्याम
ताहि गुरु मानकर,चरणों शीश नवाय|
इसके साथ ही उन्होंने गुरु की महिमा में स्वरचित
एक ‘पद’ एवं एक ‘कारण कार्य व प्रभाव गीत’ भी प्रस्तुत किया|
अगीत के बारे में चर्चा करते हुएडा वि रा देवगिरी |
मंचस्थ अतिथिगण |
वन्दना |
जल संरक्षण पर कन्नड़ नृत्य-नाटिका |
अंत
में डा देवगिरी जी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया|
2 टिप्पणियां:
सुन्दर आयोजन..
बधाई डॉ साहब ! आप के सम्मान से हम भी सम्मानित हुए। बढ़िया रिपोर्ताज आपने प्रस्तुत किया दृश्य श्रव्य दोनों माध्यमों में।
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