....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
राम ...राम क्यों हैं..........रामलीलाओं के मंचन के समारोहों .... दीप-पर्व....के उपलक्ष ....पर विशेष .....
राम, राम क्यों हैं ? वे क्यों मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, जबकि उनके ऊपर विभिन्न आरोप लगते रहे हैं ....नारी विरोधी अर्थात सीता की अग्नि परीक्षा का, शूद्र शम्बूक वध रूपी शूद्र विरोधी का, ताड़का वध व शूर्पणखा नासा भंग प्रकरण में स्त्री-ह्त्या व प्रतारणा का, बाली वध के अन्याय व कदाचरण का .......
समस्त वीरोचित गुण, शक्ति, तप, भक्ति, ज्ञान तो विश्व-विजेता रावण में भी था...उसने तो वेद की संहिता की भी रचना की है, शिव स्त्रोत की भी, रावण वीणा वाद्य यंत्र की भी .......राम ने तो कोई ऐसी शास्त्र रचना नहीं की, न कृतित्व ...... पर रावण ..रावण है ...राम..... मर्यादा पुरुषोत्ताम राम....| वस्तुतः समस्त ज्ञान, शौर्य व कर्म के पश्चात भी महत्त्व इसका है कि व्यक्ति के .....कृतित्व का भाव क्या है ...आत्म-भाव या परमार्थ भाव .....यही तथ्य सामयिक व कालजयी महत्ता स्थापित करता हैकि वह राम है या रावण |
राम युग प्रवर्तक हैं, नयी नयी युग-प्रवर्तक मर्यादाओं, कर्म व आचरण नियमों के संस्थापक, वे स्वयं ज्ञान के भण्डार हैं, वे कर्म ज्ञानी हैं ,उन्होंने ग्रन्थ भले ही न लिखे हों परन्तु वैदिक रीतियों-नियमों -आचरणों को स्वयं कर्मों में समाहित किया एवं उदाहरण रखा .....साथ ही साथ कुछ पुरातन अनावश्यक परम्पराओं के परिवर्धन के साथ नवीन शोधन भी किया, सबकुछ परमार्थ हित...आत्म-हितार्थ नहीं ...इसीलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं|
उनपर लगे ये आरोप भी यदि व्याख्यायित किये जायं तो युगप्रवर्तक कार्य हैं| राम का अवतरण सतयुग एवं त्रेता युग के संधि-काल में हुआ ...जहां प्रगति, भौतिक उन्नति एवं जनसंख्या प्रगति के फलस्वरूप ....वैदिक युग की सत्याचरण व शुचिता की पश्च-वैदिक काल मेंह्रास होने लगा थी | अतः सामाजिक, राजनैतिक एवं मानव आचरण सुधार अपेक्षित थे ...इसीलिये तो अवतार होते हैं |
अग्नि परीक्षा...वैदिक युग में नारी पूर्ण रूप से स्वतंत्र थी ....अपनी मर्जी से पुरुष चुनने, अपनी मर्जी से कभी तक भी किसी के भी साथ रहने किसी भी ज्ञानी, महान पुरुष से सम्भोग या संतान उत्पन्न करने के लिए स्वतंत्र थी.....सरस्वती, गंगा, उर्वशी-पुरुरवा , गुरुपत्नी तारा व चन्द्रमा विवाद, अनुसूया -त्रिदेव प्रकरण ... को सामान्य घटनाओं की भाँति लेना उस समय की समाज की स्वतन्त्रता की पराकाष्ठा थी...... वह आत्म-शुचिता, सत्यवादिता, सत्याचरण का युग था ......पश्च वैदिक युग में प्रगति, भौतिक उन्नति एवं जनसंख्या प्रगति के फलस्वरूप सत्याचरण व शुचिता के ह्रास के कारण इस स्वतन्त्रता व खुलेपन के सामाजिक, मानवीय एवं चारित्रिक दुष्परिणाम थे आने लगे अतः नारी शुचिता एवं एक पत्नीत्व ---स्त्री-पुरुषों के लिए नवीन युग मर्यादाएं राम द्वारा स्थापित की गयीं |
शम्बूक बध .....सतयुग के अंत में व त्रेता के प्रारम्भ में शास्त्रों व ज्ञान की मर्यादाएं भी भंग होने लगीं थीं......जिसका प्रमाण राजा भानुप्रताप की रसोई में धोखे से मानव-मांस का मिला देना, रावण जैसे विद्वान् का शास्त्र विरुद्ध कर्मों में लिप्त होजाना आदि.....अतः अनाधिकारी को विशिष्ट ज्ञान न मिल पाए ..यह युग मर्यादा आवश्यक थी जो राजा का कर्त्तव्य होता है ...जिसका पालन राजा राम ने किया ...|
स्त्री ह्त्या ( ताड़का वध )...व शूर्पणखा नासिका हरण ......वैदिक काल सत्य युग में स्त्रियाँ अवध्य थीं एवं उनकी इच्छा सर्वोपरि ...जिसका पश्च वैदिक काल में दुरुपयोग होने लगा था ....मेनका-विश्वामित्र .....सुमाली-कैकसी -विश्रवा-रावण प्रकरण .....जिसका प्रमुख उदाहरण है ......| राजा के रूप में राम ने नवीन युगधर्म की स्थापना की....... स्त्री-पुरुष दोनों समान हैं....समान अपराध के लिए दंड भी मिलना ही चाहिए ....यदि स्त्री अपराध में संलिप्त है तो वह भी दंडनीय है |
बालि बध के अन्यायपूर्ण कृत्य ..... चाहे कोइ कितना भी महान हो, बलशाली हो .परन्तु अन्याय का दंड उसे भुगतना ही चाहिए .....देश के सबसे बड़े चक्रवर्ती साम्राज्य के अधिकारी राम का यह नैतिक दायित्व था कि बालि को दण्डित होना ही चाहिए ....'शठे शाठ्यं समाचरेत '....यह राज्य का धर्म है.......यदि किसी ने अनुपयुक्त शक्ति प्राप्त की है एवं वह उसका दुरुपयोग कर रहा है तो स्वयं को सुरक्षित रखकर उसे दंड देना राज्य का कार्य है |
राजा रामचंद्र ....राम ......इसी लिए श्रीराम हैं ....मर्यादा पुरुषोत्तम राम.....भगवान श्री राम ......भारत के राम........विश्वात्मा राम .....|
..... चित्र ....गूगल साभार
राम ...राम क्यों हैं..........रामलीलाओं के मंचन के समारोहों .... दीप-पर्व....के उपलक्ष ....पर विशेष .....
राम, राम क्यों हैं ? वे क्यों मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, जबकि उनके ऊपर विभिन्न आरोप लगते रहे हैं ....नारी विरोधी अर्थात सीता की अग्नि परीक्षा का, शूद्र शम्बूक वध रूपी शूद्र विरोधी का, ताड़का वध व शूर्पणखा नासा भंग प्रकरण में स्त्री-ह्त्या व प्रतारणा का, बाली वध के अन्याय व कदाचरण का .......
समस्त वीरोचित गुण, शक्ति, तप, भक्ति, ज्ञान तो विश्व-विजेता रावण में भी था...उसने तो वेद की संहिता की भी रचना की है, शिव स्त्रोत की भी, रावण वीणा वाद्य यंत्र की भी .......राम ने तो कोई ऐसी शास्त्र रचना नहीं की, न कृतित्व ...... पर रावण ..रावण है ...राम..... मर्यादा पुरुषोत्ताम राम....| वस्तुतः समस्त ज्ञान, शौर्य व कर्म के पश्चात भी महत्त्व इसका है कि व्यक्ति के .....कृतित्व का भाव क्या है ...आत्म-भाव या परमार्थ भाव .....यही तथ्य सामयिक व कालजयी महत्ता स्थापित करता हैकि वह राम है या रावण |
राम युग प्रवर्तक हैं, नयी नयी युग-प्रवर्तक मर्यादाओं, कर्म व आचरण नियमों के संस्थापक, वे स्वयं ज्ञान के भण्डार हैं, वे कर्म ज्ञानी हैं ,उन्होंने ग्रन्थ भले ही न लिखे हों परन्तु वैदिक रीतियों-नियमों -आचरणों को स्वयं कर्मों में समाहित किया एवं उदाहरण रखा .....साथ ही साथ कुछ पुरातन अनावश्यक परम्पराओं के परिवर्धन के साथ नवीन शोधन भी किया, सबकुछ परमार्थ हित...आत्म-हितार्थ नहीं ...इसीलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं|
उनपर लगे ये आरोप भी यदि व्याख्यायित किये जायं तो युगप्रवर्तक कार्य हैं| राम का अवतरण सतयुग एवं त्रेता युग के संधि-काल में हुआ ...जहां प्रगति, भौतिक उन्नति एवं जनसंख्या प्रगति के फलस्वरूप ....वैदिक युग की सत्याचरण व शुचिता की पश्च-वैदिक काल मेंह्रास होने लगा थी | अतः सामाजिक, राजनैतिक एवं मानव आचरण सुधार अपेक्षित थे ...इसीलिये तो अवतार होते हैं |
अग्नि परीक्षा...वैदिक युग में नारी पूर्ण रूप से स्वतंत्र थी ....अपनी मर्जी से पुरुष चुनने, अपनी मर्जी से कभी तक भी किसी के भी साथ रहने किसी भी ज्ञानी, महान पुरुष से सम्भोग या संतान उत्पन्न करने के लिए स्वतंत्र थी.....सरस्वती, गंगा, उर्वशी-पुरुरवा , गुरुपत्नी तारा व चन्द्रमा विवाद, अनुसूया -त्रिदेव प्रकरण ... को सामान्य घटनाओं की भाँति लेना उस समय की समाज की स्वतन्त्रता की पराकाष्ठा थी...... वह आत्म-शुचिता, सत्यवादिता, सत्याचरण का युग था ......पश्च वैदिक युग में प्रगति, भौतिक उन्नति एवं जनसंख्या प्रगति के फलस्वरूप सत्याचरण व शुचिता के ह्रास के कारण इस स्वतन्त्रता व खुलेपन के सामाजिक, मानवीय एवं चारित्रिक दुष्परिणाम थे आने लगे अतः नारी शुचिता एवं एक पत्नीत्व ---स्त्री-पुरुषों के लिए नवीन युग मर्यादाएं राम द्वारा स्थापित की गयीं |
शम्बूक बध .....सतयुग के अंत में व त्रेता के प्रारम्भ में शास्त्रों व ज्ञान की मर्यादाएं भी भंग होने लगीं थीं......जिसका प्रमाण राजा भानुप्रताप की रसोई में धोखे से मानव-मांस का मिला देना, रावण जैसे विद्वान् का शास्त्र विरुद्ध कर्मों में लिप्त होजाना आदि.....अतः अनाधिकारी को विशिष्ट ज्ञान न मिल पाए ..यह युग मर्यादा आवश्यक थी जो राजा का कर्त्तव्य होता है ...जिसका पालन राजा राम ने किया ...|
स्त्री ह्त्या ( ताड़का वध )...व शूर्पणखा नासिका हरण ......वैदिक काल सत्य युग में स्त्रियाँ अवध्य थीं एवं उनकी इच्छा सर्वोपरि ...जिसका पश्च वैदिक काल में दुरुपयोग होने लगा था ....मेनका-विश्वामित्र .....सुमाली-कैकसी -विश्रवा-रावण प्रकरण .....जिसका प्रमुख उदाहरण है ......| राजा के रूप में राम ने नवीन युगधर्म की स्थापना की....... स्त्री-पुरुष दोनों समान हैं....समान अपराध के लिए दंड भी मिलना ही चाहिए ....यदि स्त्री अपराध में संलिप्त है तो वह भी दंडनीय है |
बालि बध के अन्यायपूर्ण कृत्य ..... चाहे कोइ कितना भी महान हो, बलशाली हो .परन्तु अन्याय का दंड उसे भुगतना ही चाहिए .....देश के सबसे बड़े चक्रवर्ती साम्राज्य के अधिकारी राम का यह नैतिक दायित्व था कि बालि को दण्डित होना ही चाहिए ....'शठे शाठ्यं समाचरेत '....यह राज्य का धर्म है.......यदि किसी ने अनुपयुक्त शक्ति प्राप्त की है एवं वह उसका दुरुपयोग कर रहा है तो स्वयं को सुरक्षित रखकर उसे दंड देना राज्य का कार्य है |
राजा रामचंद्र ....राम ......इसी लिए श्रीराम हैं ....मर्यादा पुरुषोत्तम राम.....भगवान श्री राम ......भारत के राम........विश्वात्मा राम .....|
..... चित्र ....गूगल साभार
7 टिप्पणियां:
आदरणीय शाम गुप्ता जी ,
आप लगते हैं श्री रामम जी के परम भक्त है | उनके ऊपर लगे सभी आरोपों को आपने गिना दिया परन्तु उन्ही आरोपों के मद्धम से उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम सिद्ध करने की कोशोश की है|आपकी कोशिश सराहनीय है,परन्तु उनके विश्वास ,उनके व्यवहार उस युग के लिए प्रासंगिक और सही हो सकता है लेकिन हर युग के लिए सही नहीं है क्योंकि हर युग में सामाजिक मापदंड बदलता रहा है | इसीलिए हरयुग की मर्यादाएं अलग अलग है |आपने लिखा सत्ययुग में स्त्री आज़ाद थी और किसी भी पुरुष से संतान उत्पन्न कर सकती थी लेकिन यह मर्यादा के बाहर है|उस युग के मर्यादा पुरुषोत्तम को आज के मापदंड में नापा जाय तो शायद संतोषजनक उत्तर न मिले |
आपकी इस बात को मैं मानता हूँ कि उन्होंने एक पत्नी धर्म की मर्यादा की स्थापना की है |लेकिन एक धोबी की बात सुनकर खुद की बदनामी के डर से या अपने को आदर्श साबित करने के लिए गर्भवती पत्नी को वन भेज देना पतिधर्म (मर्यादा) के खिलाफ है|सीता निर्दोष थी |उनको दण्ड देकर उन्होंने मर्यादा को तोड़ा है |
२. छुपाकर बाली का बध किसी भी दृष्टिकोण से वीरोचित मर्यादित कार्य नहीं है|"शठे शाठ्यम समाचरेत" उनपर लागू नहीं होता| तब होता जब बाली राम से कोई शठता करता .. बाली ने ऐसा कुछ नहीं किया |इसीलिए राम का यह कार्य युद्ध एवं नीति मर्यादा के खिलाफ है |
३.जब आप कह रहे है कि स्त्रियों की इच्छा सर्वोपरि थी फिर मेनका -विश्वामित्र ,सुमाली -केकसी-विश्रवा सहमती संगम को अनैतिक कैसे कह सकते है ?
४ .आपने लिखा है "अनधिकारी को विशिष्ट ज्ञान न मिले "\शास्त्रों के अनुसार स्त्रियों को वेद पाठ नहीं करना चाहिए |क्या आज भी आप यही मानते है ? आशा है आपका विचार बदल चुका है |अब कोई भी वर्ग ऐसा नहीं है जिसको किसी विशेष ज्ञान से बंचित किया जा सके |
ज्यादा कुछ कहना नहीं चहुँगा इतना कहूँगा --रावण में करीब वे सब गुण थे जो श्रीकृष्ण में थे |कहावत है " जो जीता वही सिकंदर "|रावण मारा गया ,उसका सभी गुण ,दुर्गुण में परिवर्तन हो गया | राम जीत गया ---मर्यादा पुरुषोत्तम पुरुष हो गया | जय श्री राम |
नई पोस्ट महिषासुर बध (भाग तीन)
धन्यवाद कालीप्रसाद जी, विस्तृत पढ़ने एवं कमेन्ट हेतु........ शायद आपने ठेक प्रकार से एवं विश्लेषित ढंग से आलेख नहीं पढ़ा......
१.सामाजिक मापदंड बदलते हैं, मानव के व्यवहारिक कर्म भी .. ..परन्तु मानव मात्र के शाश्वत आचरण व सदगुण कभी नहीं बदलते वे सदैव वही रहते हैं ...यथा झूठ न बोलना व सत्याचरण ..शाश्वत गुण है वह किसी भी युग में नहीं बदलता ....
२.स्त्री किसी से भी संतान उत्पन्न करे ..यह क्यों व कैसे मर्यादा से बाहर है ..बतलाएं | आवश्यकता व आपातकाल में तो सभी मानते हैं... द्वापर में पांडव अदि इसीप्रकार उत्पन्न हुए थे ....स्वामी दयानंद ने नियोग प्रथा को उचित माना है |
३. आपको कैसे ज्ञात कि सीता निर्दोष थी ...सीता के निर्दोष होने की अपेक्षा दोषी होने की कहानियाँ अधिक प्रचारित हैं, निश्चय ही प्रयोगों व सिद्धांतों के अपेक्षा जनश्रुतियां अधिक प्रभावी होती हैं |
----सीता के वनगमन एवं राम से नाराजी व पुनः अयोध्या न लौटने के कारणों की व्याख्या एक पृथक विषय है ...
४.शठे शाठ्यम समाचरेत" उनपर लागू क्यों नहीं होता? राम राजा थे ...सुग्रीव की शिकायत पर वे क्यों नहीं न्याय कर सकते | क्या न्यायालय आज भी किसी अपराध का स्वयं संज्ञान लेकर मुकदमा दायर करने का आदेश जारी नहीं करता| क्या पुलिस सशक्त एवं सशस्त्र अपराधी पर छुपकर वार नहीं करती.....
५.किसने कहा कि विश्वामित्र-मेनका, कैकसी-विश्रवा का संगम ..संगम की दृष्टि से अनैतिक था ......स्वार्थपूर्ण उद्देश्य की दृष्टि से पहला उदाहरण अनुचित था एवं उसी उद्देश्य व सांध्य काल की अनुपयुक्त वेला की कारण से दूसरा अनुचित था, जो स्वयं मुनि विश्रवा ने ही कैकसी को चेताते हुए कहा था|
६. अनाधिकारी को निश्चय ही ज्ञान प्राप्त करने का अधिकार नहीं है| शूद्र व स्त्रियाँ अपनी जातिगतता के कारण अनाधिकारी कब रहे | हर काल में स्त्रियाँ व शूद्र ऋषि-मुनि-ज्ञानी बने हैं व रहे हैं |
७. आपने सही कहा रावण में वे सभी गुण थे , आपने आलेख ठीक प्रकार से पढ़ा नहीं.... .......आलेख का मूल उद्देश्य ही यह है कि क्यों ..कोइ राम या कृष्ण बनता है क्यों कोइ रावण व कंस ....सिर्फ आत्मार्थ-भाव-कर्म एवं परमार्थ भाव-कर्म के कारण |
........मर्यादा पुरुषोत्तम तो वही है जो कालातीत मर्यादा पुरुषोत्तम हो, हर युग में .....युग के अनुसार नहीं.....राम व कृष्ण हमारे संज्ञान में तो आज मर्यादा पुरुषोत्तम हैं......त्रेता व द्वापर में थे या नहीं हमें क्या पता....हम तो यही समझेंगे कि यदि आज भी उनको जो कहा जाता है तो वह सदा ही वह होंगे |
डॉ श्याम गुप्ता जी ,
@१ आप अपने लेख में सन्दर्भ देकर .......डॉट देकर छोड़ देते हैं इससे वे पाठक जिन्होंने रामायण,महाभरत आदि ग्रंथों को नहीं पढ़ा हैं समझ नहीं पाते है कि आप क्या कहना चाहते हैं और किस आधार पर अपनी बात को प्रति पादित करना चाहते हैं | केवल रिफरेन्स देने से ही बात प्रतिपादित नहीं हो जाता है यह आप भी जानते हैं | प्रस्तुत सन्दर्भ में झूठ और सच का रिफरेन्स नहीं है |यहाँ व्याव्हारिक मर्यादा की बात हो रही है |
@२ प्रागैतिहासिक काल में जब विवाह संस्था नहीं बनी थी तब स्त्री अपनी मर्जी से किसी भी पुरुष से संतान उत्पन्न कर सकती थी | इसमें एक स्त्री के प्रति कई पुरुष आकर्षित होकर उसे पाने के लिए मारकाट करने लगे |इस स्थिति से मुक्ति पाने के लिए विवाह संस्था का निर्माण हुआ |आज यदि स्त्री को वही आजादी दे दी जाय तो विवाह संस्था ही निरर्थक हो जायगा | वर्तमान भारतीय कानून भी पर पुरुष/स्त्री गमन अनैतिक और गैर कानूनी मानते है |स्वेच्छाचारी बहुपुरुष गामी स्त्री को लोग क्या कहते है यह आप जानते है |
ध्रितराष्ट्र से ले कर सभी पांडव नियोग से उत्पन्न हैं |दशरथ के पुत्र भी नियोग से उत्पन्न है |यज्ञं तो एक बहना है ,आप मेडिकल डॉ होकर इस बात को औरों से बेहतर समझते है | नियोग राजाओं के बारे में पढने को मिली है किसी आम आद्मी के बारे में पढने को नहीं मिली |होते होंगे चोरी छुपे |
@३ दु:ख ,संकट में साधिकार पति का साथ देना ,उनका अनुगामिनी होना यदि पत्नी का दोष है तो निश्चित रूप से सीता दोषी है | परन्तु भारतीय नारी को यह सिखाया जाता है कि वह सुख दुःख में पति को छाया की तरह साथ दें | सीता ने वही किया | परन्तु सीता को इसके लिए वनवास का दण्ड नहीं दिया गया था ,उसे तो धोबी के कथन से बदनामी के डर से भेजा गया था | आप ही बताइए और कौनसे दोष के कारण गर्भवती को वनवास का दण्ड मिला ?
@४ राम वनवासी था | उस समय वह कहीं का राजा नहीं था| न किसकिन्दा अयोद्धा राज्य में शामिल था और न बाली उसके अधीन कोई राजा था |इसीलिए दो भाइयों के झगडे का फैसला करने का राम को कोई नैतिक अधिकार नहीं था |हाँ ,यदि दोनों भाई राम के पास आते और झगडे का निपटारा का निवेदन करते,
और राम कोई फैसला सुनाते जिसे बाली मानने से इनकार करदेते तब आमने सामने की लड़ाई में राम उसे मारते तो राम की गरिमा और बढ़ जाती | मर्यादा का प्रतिमूर्ति होते | आपने अपने उदहारण में राम को पुलिश से तुलना करके राम की गरिमा को ठस नहीं पहुचाई ? यह भी प्रतिपादित कर दिया कि बाली राम से बड़ा और शक्तिशाली योद्धा था |
@५ समय का मापदंड (संधा काल) की बात मै नही करना चाहता क्योकि उसका आधार ज्योतिष है जो खुद ही अनिश्चितता के घेरे में है |
मेनका इन्द्र के स्वार्थ केलिए विश्वमित्र से संगम किया ,इसीलिए आपके अनुसार
यह अनुचित है |वैसे ही सुग्रीव के स्वार्थ और खुद के स्वार्थ के लिए राम ने धोखे से बाली को मारा क्या यह अनुचित नहीं लगता आपको ?
@६ स्त्री और शुद्रो को हमेशा वेदअध्ययन के अनधिकारी माना गया है | तुलसीदास ने तो इन्हें पशु के वर्ग में रखकर उन्हें ताड़न के अधिकारी माना है |वैदिक काल में भी जो शुद्र अपने कर्मफल से मुनि ऋषि का दर्जा हांसिल किये वह केवल उनकी प्रतिभा और कर्मो का फल है |रामायण के रचयिता वाल्मीकि खुद एक शुद्र रत्नाकर दस्यु थे | निश्चित रूप में उन्होंने वो बाते नहीं लिखी जो तुलसीदास ने लिखा है |आज भी वाल्मीकि समाज को प्रताड़ित किया जाता है |भारत के कई मंदिरों जिसमे पूरी का जगन्नाथ मंदिर प्रमुख हैं ,में उनका प्रवेश निषिद्ध है |
आप ही बताएं आज कौन ऐसा है जो विशेषज्ञान के अनाधिकारी हैं ?
मैंने आपके हर पैराग्राफ को पढ़ लिया था परन्तु मैं सबपर टिप्पणीनहीं करना चाहता था | इसीलिए मैंने लिखा था -"ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहूँगा .......................जय श्री राम ."
परन्तु आपने कुछ प्रश्न पूछकर मुझे मजबूर कर दिया वो कहने केलिए जो मैं कहना नहीं चाहता था | मैं जानता हूँ आप जैसे करोड़ों रामभक्त होंगे जो आँख मूंदकर उनमे आस्था रखते है ,मैं उनकी आस्था को ठेस पहुचाना नहीं चाहता न ऐसा कोई विचार है क्योंकि मैं भी उनमे विश्वास रखता हूँ लेकिन आँख मूंदकर नहीं |मैं अपने आराध्य की अच्छाई और बुराई को भी देखने की हिम्मत रखता हूँ |यह शक्ति ईश्वर से ही मिली है |श्री श्री रामकृष्ण परमहंस ने कहा है -हर व्यक्ति में अच्छाई और बुराई दोनों हैं ,उनकी अच्छाई को ग्रहण करो ,बुराई से दूर रहो | यही कोशिश करता हूँ | इस चर्चा को एक बौद्धिक चर्चा मान लिया जाय क्योंकि राम का भक्त मैं भी हूँ |
||जय श्री राम ||
धन्यवाद काली प्रसाद जी.......... यूं तो आप क्या कहना चाहते हैं स्पष्ट नहीं है ......मुझे नहीं लगता कि इस देश में रामायण -महाभारत की मूल कथाओं के जानकार न हों ...हां सबकुछ न जानने वाले तो होते ही हैं.....उसी दशा में तो ऐसे प्रश्न उठते हैं जिन पर यहाँ चर्चा हो रही है.....सन्दर्भ देकर छोड़ देने का अर्थ यही है कि आलेख की एक सीमा है अतः पाठक आगे जाकर स्वयं वह सन्दर्भ पढ़े तो वे अच्छी प्रकार से समझ पायेंगे.......
------.राम कृष्ण परमहंस व राम में बहुत अंतर है .......उनका कहा हुआ राम पर लागू नहीं होता ....... राम सामान्य व्यक्ति नहीं हैं वे युग प्रवर्तक सत्ता हैं...इसीलिये उन्हें भगवान कहा गया ..... आप पहले अच्छाई व बुराई के ज्ञाता बनें उस स्तर तक उठें, यह तभी हो सकता है जब आप राम व कृष्ण जैसे महामानवों के पद चिन्हों पर चलेंगे ...तत्पश्चात ही तो अच्छाई व बुराई का निर्णय कर सकते हैं ....
--- जैसे एक रोगी ( एवं सामान्य नॉन-मेडिकल जन ) को अपने रोग के बारे में जानने का अधिकार है परन्तु रोग की बारीकियां आदि जानने का अधिकार नहीं है ......आज जो समाचार पत्रों / पत्रिकाओं में डाक्टर्स आदि के... आलेख निकलते रहते हैं --जो अज्ञानी पत्रकारों /अखबार वालों की मिली भगत से होते हैं मूलतः चिकित्सा के आचरण संहिता के विरुद्ध हैं.....
----- आप ही का कथन है कि जो शुद्र अपने कर्मफल से मुनि ऋषि का दर्जा हांसिल किये वह केवल उनकी प्रतिभा और कर्मो का फल है...सत्य तो यही है ...अपने कर्मों से ही व्यक्ति शूद्र या ऋषि, आर्य बनता है ....आपने गाडी वाले रेक्व की कथा नहीं सुनी जो राजा जनक को भी शूद्र कहता रहा .....
------ पहले ही कहा जा चुका है राम ने राजा के रूप में न्याय हेतु बाली को मारा ....
-------क्या संध्या का समय ज्योतिष से तय होता है ....अनर्गल बात है काली प्रसाद जी ...संध्या..रात..सुबह तो नित्य नैमित्तिक तथ्य हैं...
------ बाली राम से बड़ा योद्धा था या नहीं ..परन्तु सामने बाले का आधा बल उसमें आजाता था उसे एसा वरदान था उसी का वह दुरुपयोग कर रहा था...
------.अयोध्या चक्रवर्ती साम्राज्य था उत्तर से लेकर दक्षिण समुद्र पर्यंत अयोध्या सम्राट का का शासन था जिसे लंकापति रावण ने पंचवटी तक अधिग्रहीत करके अपना उपनिवेश बनाया हुआ था जहां के क्षत्रप शूर्पणखा के भाई खर, दूषण थे |
----- सही कहा ....दूसरी पत्नी प्रथा की भांति ...नियोग प्रथा सामान्य जन में भी खूब चलती रही है ...आजकल भी .हाँ सब कुछ सिर्फ परिवार के दायरे में सीमित .....क्या आप समझते हैं विवाह संस्था बनने से स्त्री-पुरुषों की स्वेच्छाचारिता में कमी आई है..... जो पहले खुले आम था अब चुपके चुपके ... और स्वेच्छाचारिता एवं सहमति से सम्बन्ध बनाने में बहुत अंतर है ......
रामचरित रामहि मन जानी,
मर्यादा की पीर कहानी।
सच है पांडे जी...मर्यादा स्थापना व अपनाना ...पीर -कहानी तो है ही....
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