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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 4 सितंबर 2014

डा श्याम गुप्त के दोहे----शिक्षक दिवस पर....

                                            ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

                         
शिक्षक- दिवस पर प्रत्येक शिक्षक को अपना आत्मविश्लेषण करना चाहिये,और हमें भी. शिक्षक कोई भी, कहीं भी, किसी भी क्षेत्र का व्यक्ति होसकता है, सि्र्फ़ वेतन-भोगी स्कूल मास्टर/ प्रोफ़ नहीं ----- प्रस्तुत हैं कुछ दोहे....
गुरु

दावानल  संसार मेंदारुण दुःख अनंत,|
श्याम करे गुरु वन्दना, सब दुखों का अंत ||

 
सदाचार स्थापना, शास्त्र अर्थ समझाय।
आप करे सदाआचरण , सो आचार्य कहाय॥

यदकिन्चित भी ग्यान जो, हम को देय बताय।
ग्यानी उसको मानकर, फ़िर गुरु लेंय बनाय॥

इस संसार अपार को किस विधि कीजै पार।
श्याम गुरु क्रपा पाइये,सब विधि हो उद्धार।।

अध्यापक को दीजिये,अति गौरव सम्मान।
श्याम करें आचार्य का, सदा दश गुना मान ॥

गु अक्षर का अर्थ है, अन्धकार अग्यान।
रु से उसको रोकता,सो है गुरु महान ॥

जब तक मन स्थिर नहीं, मन नहिं शास्त्र विचार।
गुरु की क्रपा न प्राप्त हो,मिले न तत्व विचार॥

आलोकित हो श्याम का,मन रूपी आकाश ।
सूरज बन कर ग्यान का, जब गुरु करे प्रकाश॥
त्रि-गुरु-----गुरु, माता, पिता

शत आचार्य समान है श्याम पिता का मान।
नित प्रति वंदन कीजिये,मिले धर्म संग्यान॥

माता एक महान है, सहस पिता का मान।
पद वंदन नित कीजिये, माता गुरू महान ॥

सभी तपस्या पूर्ण हों, यदि संतुष्ठ प्रमाण।
मात-पिता-गुरु का करें, श्याम नित्य सम्मान॥

मनसा वाचा कर्मणा, कार्य करें जो कोय।
मातु पिता गुरु की सदा, सुसहमति से होय॥

और




       अन्योनास्ति----जगत गुरु-----ईश्वर........

त्रिभुवन गुरु और जगत गुरु,जो प्रत्यक्ष प्रमाण।
जन्म मरण से मुक्ति दे, "ईश्वर" करूं प्रणाम॥
 
 




















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