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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

गुरुवासरीय गोष्ठी दिनांक ०७ दिसंबर २०१७ गुरूवार---डा श्याम गुप्त

                                     ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



            गुरुवासरीय गोष्ठी दिनांक ०७ दिसंबर २०१७ गुरूवार
       प्रत्येक माह के प्रथम गुरूवार को होने वाली विशिष्ट गुरुवासरीय गोष्ठी दिनांक ०७ दिसंबर २०१७ गुरूवार को डा श्यामगुप्त के आवास सुश्यानिदी , के-३४८, आशियाना, लखनऊ पर संपन्न हुई | गोष्ठी में साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य, नवसृजन संस्था के अध्यक्ष डा योगेश गुप्त, कविवर श्री बिनोद कुमार सिन्हा,अनिल किशोर शुक्ल निडर, श्री रामदेवलाल विभोर,  प्रदीप कुशवाहा, महेश अस्थाना, प्रदीप गुप्ता, श्रीमती पुष्पा गुप्ता, विजयलक्ष्मी महक , मंजू सिंह एवं श्रीमती सुषमागुप्ता व डा श्यामगुप्त ने भाग लिया |
       वाणी वंदना डा श्याम गुप्त, सुषमागुप्ता व श्रीमती विजय लक्ष्मी महक ने की | गोष्ठी का प्रारंभ करते हुए श्री अनिल किशोर शुक्ल निडर ने तम्बाकू की हानियों पर प्रकाश डालते हुए दोहे प्रस्तुत किये---
तम्बाकू से फेफड़े होने लगते ग्रस्त |

उल्टी होती जब कभी गिरने लगता रक्त |
       डा.योगेशगुप्त ने नदी रेत व सागर के अंतर्संबंध की दार्शनिक व्याख्या करते हुए अतुकांत रचना प्रस्तुत की ---बाँध बांधने से भी क्या होगा

          नदी को तो खोना ही है ;

          रेत के विस्तार में

          या सागर के प्यार में |
       श्रीमती पुष्प गुप्ता ने गृहस्थ जीवन को अग्निपथ बताते  हुए कहा—
गृहस्थ जीवन अग्निपथ, गृहणी की कर्मभूमि,

तपोभूमि, निष्ठा परिपक्व, सहज मन, अच्युत थिर हो | 
      श्रीमती मंजू सिंह ने फूलों की विशिष्टता पर गीत सुनाते हुए कहा-
फूल कभी रोते नहीं ,

फूलों को तो बस हंसना आता है |
       श्रीमती विजय लक्ष्मी महक ने बेटी व दुल्हन समन्वित गीत प्रस्तुत किया—
बेटी वाला क्या देगा, क्या लोगो तुम,

बेटी से बढकर कोइ सौगात नहीं होती
      कविवर  श्री महेश अस्थाना प्रकाश ने दिल से दिल को राहत पर गुनगुनाया---
आओ हम गुनगुनालें, दिल से दिल मिला हम लें |

ना शिकवा हो ना शिकायत, दिल से दिल को राहत मिले |
    कवि प्रदीप गुप्ता ने भी फूलों की नाजुकता यूं बयाँ की---
फूल आहिस्ता फैंको, फूल बड़े नाज़ुक होते हैं,

होजाते हैं खुद तो घायल, पर औरों को सुख देते हैं|
    प्रदीप कुशवाहा ने जीवन के बारे में अपना अभिमत प्रस्तुत करते हुए कहा –

जीवन स्वयं एक प्रश्न है,सबको हल करना है |

हंसकर या रोकर, प्रदीप जीवन जीना है |
      
      बिनोद कुमार सिन्हा ने पुराने ज़माने को याद करते हुए गुनगुनाया—
वे भी क्या ज़माने थे  हर क्षण खुश के तराने थे |

मेरी हसरत भरी निगाहें, बेसब्र रही थी दीदार के |
    श्री रामदेव लाल विभोर ने अँधेरे और जुगनूं की बात की –
चमकना गर न आता हो, तो पूछो उस अँधेरे से,

उड़ा करता जहां जुगनूं, है खुद की रोशनी लेकर |
     सुषमागुप्ता जी ने मुरलीधर कान्हा को करुणा का सागर बताते हुए गीत प्रस्तुत किया—
हे करुणा के सागर श्याम,

मुरलीधर कान्हा घनश्याम |
       डा श्यामगुप्त ने आजकल चिकित्सकों व अस्पतालों में हो रही लापरवाही पर जन सामान्य को भी दोषी बताते हुए एक नवीन तथ्य की प्रस्तुति की ---
पैसा आज बहुत पब्लिक पर, सभी चाहते, ‘वहीं’ दिखाएँ |

चाहे जुकाम या कुछ खांसी, विशेषज्ञ ही हमको देखे |.......
    तथा उन्होंने नारी की त्रासदी को इंगित करते हुए एक प्रश्न उठाया---–
औरत आज भी डर डर कर जिया करती है ,

जाने किस बात की कीमत अदा करती है |
        अगीत विधा के प्रवर्तक एवं अखिल भारतीय अगीत परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष साहित्यभूषण साहित्यमूर्ति डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने गोष्ठी की समीक्षात्मक सराहना करते हुए अपना सुप्रसिद्ध गीत सुनाया....
जगमगाता हुआ दीप मैं बन सकूं

स्नेह इतना ह्रदय में भरो आज तुम |
      द्वितीय सत्र में कविगण पुष्पा गुप्ता, विजय लक्ष्मी महक, मंजू सिंह, प्रदीप कुशवाहा, महेश अष्ठाना, श्री रामदेव लाल विभोर एवं सुषमा गुप्ता को सम्मान पात्र देकर को सम्मानित भी किया गया |
      संक्षिप्त जलपान एवं डा श्याम गुप्त द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के पश्चात् गोष्ठी समाप्त हुई |

गोष्ठी का दृश्य

साहित्यकारों का सम्मान


 

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