....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
दोहे श्याम के----
ईश्वर अल्ला कब मिले , हमें झगड़ते यार ,
फिर मानव क्यों व्यर्थ ही करता है तकरार |
ईश्वर अल्ला कब मिले , हमें झगड़ते यार ,
फिर मानव क्यों व्यर्थ ही करता है तकरार |
काली करी कमाई, अरबों लिए कमाय,
क्यों घबराये चित्त में, मंदिर दे बनवाय |
चाहे पद पूजन करो,या साष्टांग प्रणाम,
काम तभी बन पायगा, चढ़े चढ़ावा दाम |
नाग मोर मृग सिंह मिले, पद कुर्सी की नीति ,
श्याम' सभा भई तपोवन, बनी दुश्मनी प्रीति |
अपनी लाज लुटा रही, द्रुपुद सुता बाज़ार,
इन चीरों का क्या करूं, कृष्ण खड़े लाचार |
दानवता से लड़ रहे सज्जन अजहुं तमाम,
श्याम आज भी चल रहा देवासुर संग्राम |
श्याम गर्व मत कीजिये, कहते सकल प्रवीन,
दान भोग और नाश हैं, धन की गतियाँ तीन |
काव्य जो अपना हो लिखा, माला निज गुँथ पाय |
चन्दन जो खुद ही घिसा, ये अति शोभा पायं |
अपने अपने धर्म रत, कर्म करे जो नित्य,
वही नागरिक धन्य है, मिले परम पद मुक्ति |
सत्य जानकर क्यों भला ज्ञानी चुप रह जाय,
सत्य मौन से श्रेष्ठ है, कहदें भुजा उठाय | .
क्यों घबराये चित्त में, मंदिर दे बनवाय |
चाहे पद पूजन करो,या साष्टांग प्रणाम,
काम तभी बन पायगा, चढ़े चढ़ावा दाम |
नाग मोर मृग सिंह मिले, पद कुर्सी की नीति ,
श्याम' सभा भई तपोवन, बनी दुश्मनी प्रीति |
अपनी लाज लुटा रही, द्रुपुद सुता बाज़ार,
इन चीरों का क्या करूं, कृष्ण खड़े लाचार |
दानवता से लड़ रहे सज्जन अजहुं तमाम,
श्याम आज भी चल रहा देवासुर संग्राम |
श्याम गर्व मत कीजिये, कहते सकल प्रवीन,
दान भोग और नाश हैं, धन की गतियाँ तीन |
काव्य जो अपना हो लिखा, माला निज गुँथ पाय |
चन्दन जो खुद ही घिसा, ये अति शोभा पायं |
अपने अपने धर्म रत, कर्म करे जो नित्य,
वही नागरिक धन्य है, मिले परम पद मुक्ति |
सत्य जानकर क्यों भला ज्ञानी चुप रह जाय,
सत्य मौन से श्रेष्ठ है, कहदें भुजा उठाय | .
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