....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
गुरुवासरीय साहित्यिक-गोष्ठी –इतिहास के आईने से ....
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काफी समय पश्चात वयोवृद्ध कविवर श्री प्रेमचन्द्र सैनी जी से मैंने उनके घर पर मुलाक़ात की | मैं भी पर्याप्त समय से नगर के बाहर था एवं विभिन्न कार्यक्रमों में व्यस्त था, वे भी अमेरिका गए हुए थे | सैनी जी वहां के संस्मरण सुनाते रहे| वहां रचित एक कविता भी उन्होंने सुनाई | एक अन्य कविता जो सैनी जी ने डा रामाश्रय सविता के लिए लिखी थी वह भी सुनाई, मेरी प्रतिक्रया एवं साहित्यिक समीक्षात्मक सम्मति भी पूछी | मैंने भी उन्हें अपनी पुस्तक ‘कुछ शायरी की बात होजाए’ भेंट की एवं उनके अनुरोध पर दो गज़लें भी सुनाईं |
--------यह एक संक्षिप्त द्विपक्षीय गोष्ठी थी | सैनी जी यद्यपि अपने अन्तरंग मित्रों प्रतिष्ठा संस्था के अध्यक्ष श्री स्व. रामाश्रय सविता, वीरेन्द्र अंशुमाली एवं जगत नारायण पांडे के स्वर्गारोहण के पश्चात गोष्ठियों में कम ही आते जाते हैं परन्तु उम्र के इस मुकाम पर भी वे साहित्य सृजन में व्यस्त हैं| पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं|
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श्री प्रेमचन्द्र सैनी जी आशियाना व आलमबाग क्षेत्र में प्रत्येक गुरूवार को होने वाली साहित्यिक गोष्ठी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं|
-------वर्ष सन २००५ में प्रतिष्ठा संस्था, आलमबाग के महामंत्री (स्व) श्री वीरेन्द्र प्रकाश गुप्ता’अंशुमाली’ एवं महाकवि( स्व.)प. जगतनारायण पांडे ने विचार-विमर्श के उपरांत एक एसी गोष्ठी-वर्ग बनाने का निश्चय किया जो अनौपचारिक हो एवं संस्थाओं के विविध प्रोटोकोल अध्यक्ष, नियम–कायदे आदि से स्वतंत्र केवल सृजनात्मकता को बढ़ावा देने का हेतु हो, जिसमें अधिक कवि भी न हों |
--------यह एक अन्तरंग गोष्ठी की परिकल्पना थी जिसमें एक दूसरे की रचनाओं पर पारस्परिक विमर्श एवं कमियों व विशेषताओं पर विचार हो, जिसका मूल उद्देश्य केवल कविता पढ़कर चल देने की अपेक्षा साहित्यक-सामाजिक श्रेष्ठता पर भी ध्यान दिया जाना था|
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दोनों मनीषियों ने श्री प्रेमचन्द्र सैनी को साथ लिया एवं जगत नारायण पांडे जी के घर पर प्रथम गोष्ठी का आयोजन किया एवं मुझे भी सम्मिलित होने का आमंत्रण दिया गया |
------इस प्रकार यह चार कवियों द्वारा प्रारंभ यह गोष्ठी अपने विशिष्ट साहित्यिक कार्यक्रम के साथ प्रारंभ हुई| तत्पश्चात श्री मधुकर अष्ठाना, रामदेवलाल विभोर को भी शामिल किया गया | --------बारी बारी से सदस्यों के आवास पर आयोजित होने वाली गोष्ठी में बसंत राम दीक्षित, स्व.पंकज श्रीवास्तव, स्व. निर्मला साधना व अन्य कवि भी शामिल होते गए और अपना वर्तमान संस्थागत रूप लेती गयी |
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इस प्रकार लखनऊ के साहित्यिक क्षेत्र में यह एक विशिष्ट गोष्ठी के रूप में स्थापित हुई जिसमें न कोइ अध्यक्ष, न अतिथि न संचालक है | न कोइ चन्दा, न मासिक अंशदान इत्यादि | सभी के घर पर बारी बारी से अनवरत रूप से होती रहती है | सभी एक क्रम से अपनी अपनी रचनाओं को प्रस्तुत करते हैं, उन पर सामाजिक-साहित्यिक रूप से विचार विमर्श भी होता है |
----लखनऊ में प्रायः गोष्ठियां रविवार को ही होती हैं एक या दो को छोड़कर जो शनिवार को या फिर अनियातिकालीन , जो कभी भी होजाती हैं |
-------अतः इस गोष्ठी को प्रत्येक गुरूवार को होना सुनिश्चित किया गया एवं कोइ विशिष्ट औपचारिक नाम न रखकर इसे ***गुरुवासरीय गोष्ठी*** का नाम दिया गया |
----अनौपचारिकता, उच्च कोटि की साहित्यिक प्रगति एवं साहित्य के सामाजिक सरोकार जिसका मुख्य उद्देश्य है |
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चित्र में---गुरुवासरीय गोष्ठियों के दृश्य ------
श्री अंशुमाली व जगत नारायण पांडे .....डा रामाश्रय सविता व प्रेम चन्द्र सैनी मेरे आवास पर गोष्ठी में .......प्रेम चन्द्र सैनी --कुछ शायरी की बात होजाए --पढ़ते हुए ........गुरुवासरीय गोष्ठी के विविध दृश्य ..
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काफी समय पश्चात वयोवृद्ध कविवर श्री प्रेमचन्द्र सैनी जी से मैंने उनके घर पर मुलाक़ात की | मैं भी पर्याप्त समय से नगर के बाहर था एवं विभिन्न कार्यक्रमों में व्यस्त था, वे भी अमेरिका गए हुए थे | सैनी जी वहां के संस्मरण सुनाते रहे| वहां रचित एक कविता भी उन्होंने सुनाई | एक अन्य कविता जो सैनी जी ने डा रामाश्रय सविता के लिए लिखी थी वह भी सुनाई, मेरी प्रतिक्रया एवं साहित्यिक समीक्षात्मक सम्मति भी पूछी | मैंने भी उन्हें अपनी पुस्तक ‘कुछ शायरी की बात होजाए’ भेंट की एवं उनके अनुरोध पर दो गज़लें भी सुनाईं |
--------यह एक संक्षिप्त द्विपक्षीय गोष्ठी थी | सैनी जी यद्यपि अपने अन्तरंग मित्रों प्रतिष्ठा संस्था के अध्यक्ष श्री स्व. रामाश्रय सविता, वीरेन्द्र अंशुमाली एवं जगत नारायण पांडे के स्वर्गारोहण के पश्चात गोष्ठियों में कम ही आते जाते हैं परन्तु उम्र के इस मुकाम पर भी वे साहित्य सृजन में व्यस्त हैं| पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं|
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श्री प्रेमचन्द्र सैनी जी आशियाना व आलमबाग क्षेत्र में प्रत्येक गुरूवार को होने वाली साहित्यिक गोष्ठी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं|
-------वर्ष सन २००५ में प्रतिष्ठा संस्था, आलमबाग के महामंत्री (स्व) श्री वीरेन्द्र प्रकाश गुप्ता’अंशुमाली’ एवं महाकवि( स्व.)प. जगतनारायण पांडे ने विचार-विमर्श के उपरांत एक एसी गोष्ठी-वर्ग बनाने का निश्चय किया जो अनौपचारिक हो एवं संस्थाओं के विविध प्रोटोकोल अध्यक्ष, नियम–कायदे आदि से स्वतंत्र केवल सृजनात्मकता को बढ़ावा देने का हेतु हो, जिसमें अधिक कवि भी न हों |
--------यह एक अन्तरंग गोष्ठी की परिकल्पना थी जिसमें एक दूसरे की रचनाओं पर पारस्परिक विमर्श एवं कमियों व विशेषताओं पर विचार हो, जिसका मूल उद्देश्य केवल कविता पढ़कर चल देने की अपेक्षा साहित्यक-सामाजिक श्रेष्ठता पर भी ध्यान दिया जाना था|
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दोनों मनीषियों ने श्री प्रेमचन्द्र सैनी को साथ लिया एवं जगत नारायण पांडे जी के घर पर प्रथम गोष्ठी का आयोजन किया एवं मुझे भी सम्मिलित होने का आमंत्रण दिया गया |
------इस प्रकार यह चार कवियों द्वारा प्रारंभ यह गोष्ठी अपने विशिष्ट साहित्यिक कार्यक्रम के साथ प्रारंभ हुई| तत्पश्चात श्री मधुकर अष्ठाना, रामदेवलाल विभोर को भी शामिल किया गया | --------बारी बारी से सदस्यों के आवास पर आयोजित होने वाली गोष्ठी में बसंत राम दीक्षित, स्व.पंकज श्रीवास्तव, स्व. निर्मला साधना व अन्य कवि भी शामिल होते गए और अपना वर्तमान संस्थागत रूप लेती गयी |
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इस प्रकार लखनऊ के साहित्यिक क्षेत्र में यह एक विशिष्ट गोष्ठी के रूप में स्थापित हुई जिसमें न कोइ अध्यक्ष, न अतिथि न संचालक है | न कोइ चन्दा, न मासिक अंशदान इत्यादि | सभी के घर पर बारी बारी से अनवरत रूप से होती रहती है | सभी एक क्रम से अपनी अपनी रचनाओं को प्रस्तुत करते हैं, उन पर सामाजिक-साहित्यिक रूप से विचार विमर्श भी होता है |
----लखनऊ में प्रायः गोष्ठियां रविवार को ही होती हैं एक या दो को छोड़कर जो शनिवार को या फिर अनियातिकालीन , जो कभी भी होजाती हैं |
-------अतः इस गोष्ठी को प्रत्येक गुरूवार को होना सुनिश्चित किया गया एवं कोइ विशिष्ट औपचारिक नाम न रखकर इसे ***गुरुवासरीय गोष्ठी*** का नाम दिया गया |
----अनौपचारिकता, उच्च कोटि की साहित्यिक प्रगति एवं साहित्य के सामाजिक सरोकार जिसका मुख्य उद्देश्य है |
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चित्र में---गुरुवासरीय गोष्ठियों के दृश्य ------
श्री अंशुमाली व जगत नारायण पांडे .....डा रामाश्रय सविता व प्रेम चन्द्र सैनी मेरे आवास पर गोष्ठी में .......प्रेम चन्द्र सैनी --कुछ शायरी की बात होजाए --पढ़ते हुए ........गुरुवासरीय गोष्ठी के विविध दृश्य ..
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