....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
वो एक पल का हसीं पल भी था क्या पल आखिर |
वो हसीं पल था, तेरे प्यार के पल की खातिर |
दर्द की एक चुभन सी है, सुलगती दिल में ,
प्यास कैसी कि चले सहरा को जल की खातिर |
हमने चाही थी दवा, दर्द-ए-दिल के लिए ,
दर्द के दरिया में, डूबे हैं दिल की खातिर |
आप आयें या न आयें हमारे साथ मगर,
जब पुकारोगे, चले आयेंगे दिल की खातिर |
याद आयें तो वही लम्हे वफ़ा जी लेना,
गम न करना,उस प्यार के कल की खातिर |
साथ तुम हो या न हो,सामने आयें जब श्याम,
मुस्कुरादेना उसी प्यार के पल की खातिर ||
5 टिप्पणियां:
सुन्दर रचना
साथ तुम हो या न हो,सामने आयें जब श्याम,
मुस्कुरादेना उसी प्यार के पल की खातिर ||
जिंदगी के कई मोड पर ये दृश्य आ ही जाते हैं श्याम भ्राता श्री
शुक्ल भ्रमर ५
http://surendrashuklabhramar.blogspot.com
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति | धन्यवाद|
जवाजे इश्क की कतरन को ले के अब भी बैठा हूँ
ये कैसी हर्फे ग़ुरबत है में तेरा नाम लिखता हूँ....
मजा आ गया..बड़ी गहरी बात है..
अहा, बेहतरीन।
धन्यवाद--भ्रमर जी..सही कहा उफ़ ये कठिन लम्हे..
धन्यवाद--पाताली जी.व पान्डे जी....
---वाह!!!! क्या बात है आशुतोष...सुन्दर
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