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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

श्याम स्मृति...... सिद्धांत , विश्वास एवं नियम...तथा नायक-पूजा ( हीरो वर्शिप )...डा श्याम गुप्त

                           ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

                                   

                          ..प्रायः यह कहा जाता है कि भारतीय -जनमानस  धार्मिक व दार्शनिक विचार-तत्वों पर नायक-पूजा में , उनके पीछे चलने में अधिक विश्वास रखते हैं| इसीलिये भारतीय तेजी से प्रगति नहीं कर पारहे हैं |  प्रायः पारंपरिक ज्ञान व शिक्षा में विश्वास न रखने वाले अधुना-विद्वान् भी यह कहते पाए गए हैं कि हमें कुछ ऐसा तरीका, तंत्र या शैली विक्सित करना चाहिए जो सिद्धांतों, विश्वासों एवं नियमों पर आधारित नहीं हो |
                          इस के परिप्रेक्ष्य में फिर यह भी कहा जा सकता है कि तो फिर किसी को  इन विद्वानों के कथन पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए | वस्तुतः जब तक हमारे अंतर में  पहले से ही मौजूद पारंपरिक ज्ञान, विश्वास, विचारों व सिद्धांतों के प्रति  श्रृद्धा व विश्वास नहीं होते एवं  हम उनको पूर्णरूपेण एवं गहराई से जानने एवं समझने योग्य नहीं होपाते | तो हम उन्हें उचित यथातथ्य रूप से विश्लेषित करके वर्त्तमान देश-कालानुसार एवं अपने स्वयं के विचारों और नवीन प्रगतिशील विचारों के अनुरूप नहीं  बना सकते ; जो संस्कृति व सभ्यता की प्रगति हेतु आवश्यक होता है ....
                                   "जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ|
                                    हों बौरी  डूबन  डरी,  रही किनारे  बैठ  |"
अतः क्या आवश्यक है ......
१. स्वयं अपने ही विचारों पर चलकर अति-तीब्रता से प्रगति हेतु अनजान -अज्ञानान्धकार में प्रवेश करके पुनः पुनः हिट एंड ट्रायल के आधार पर चलें .....अथवा ..
२. पहले से ही उपस्थित अनुभवी, ज्ञानी पुरखों के सही  व उचित धार्मिक व सांस्कृतिक ज्ञान के मार्ग पर..(. जो समय से परिपक्व एवं इतने समय से जीवन संघर्ष में बने हुए होने से स्वयं-सिद्ध हैं).... शनैः-शनैः स्थिर  परन्तु उचित गति से प्रगति के पथ पर चलना ..
                                                                 हमें सोचना होगा.....

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

श्याम स्मृति ....सकारात्मक सोच व तथ्यों के गुण और दोष ......डा श्याम गुप्त .

                            ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


            प्रायः यह कहा जाता है कि वस्तु, व्यक्ति व तथ्य के गुणों को देखना चाहिए, अवगुणों पर ध्यान नहीं देना चाहिए  |  इसे पोजिटिव थिंकिंग( सकारात्मक सोच ) भी कहा जाता है |
          वस्तुतः प्रत्येक तथ्य को प्रथमत: नकारात्मक पहलू से जानना चाहिए | तथाकथित सिर्फ सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति वास्तव में जीवन के बुरे आयामों से डरते हैं अतः वे नकारात्मक तथ्य को सोचना- जानना ही नहीं  चाहते | वस्तुओं के व तथ्यों के सकारात्मक पक्ष सदैव ही खुले रूप में  होते हैं एवं वे शीघ्र ध्यानाकर्षक भी होते हैं विशेषतः इस  विज्ञापनों की आकर्षक व भ्रामक दुनिया में |
               क्योंकि यह मानव-मन जो है वह वायु तत्व से निर्मित है और स्वभावतः अत्यंत ही द्रवित-भाव तत्व है , शीघ्र ही सबसे आसान राहों पर दौड़ पड़ता है | अतः सिर्फ सकारात्मक पक्ष ही देखने से त्रुटियों की  अधिक संभावनाएं होती हैं| अतः तथ्यों के नकारात्मक पक्षों को पहले देखना आवश्यक व महत्वपूर्ण  है| जीवन व्यवहार के उदाहरण स्वरुप यह देखें कि जब कभी भी हम अपना कम्प्युटर पर किसी फ़ाइल को क्लिक करते हैं तो बहुधा सुरक्षित या असुरक्षित एवं अनचाहे करप्ट सन्देश का एक सावधानी का सन्देश मिलता है | सावधानी अर्थात नकारात्मक पहलू पर गौर ...अतः निश्चय ही सकारात्मक सोच वाले विचारकों  का 'पानी से आधा भरा गिलास'  बहु-प्रचारित  वाला मुहावरे   के विपरीत किसी  भी तथ्य को स्वीकार करने से पहले  सभी  को यह सोचना चाहिए कि गिलास आधा खाली क्यों है ?           
                 अतः  मेरे विचार में गुणों को देखकर, सुनकर, जानकर ..उन पर मुग्ध होने से पहले  उसके दोषों पर पूर्ण रूप से दृष्टि डालना अत्यावश्यक है कि वह कहीं 'सुवर्ण से भरा हुआ कलश' तो नहीं है | यही तथ्य सकारात्मक सोच --नकारात्मक सोच के लिए सत्य है | सोच सकारात्मक नहीं गुणात्मक होनी चाहिए, अर्थात नकारात्मकता से अभिरंजित सकारात्मक | क्योंकि .......".सुबरन कलश सुरा भरा साधू निंदा सोय |"


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रविवार, 24 फ़रवरी 2013

साहित्यकार दिवस...आमंत्रण ...डा श्याम गुप्त ...



 


 

                            


             १ मार्च, २०१३ शुक्रवार को  गांधी भवन, संग्रहालय, लखनऊ में    साहित्यकार दिवस पर  साहित्यकार -सम्मेलन में आप सब आमंत्रित हैं....
                                                                   ------------अखिल भारतीय अगीत परिषद् , लखनऊ.

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

डा श्याम गुप्त .की विज्ञान कथा – भुज्यु-राज की सागर में डूबने से रक्षा ...

                             ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


                                     
  .                         ( अश्विनीकुमार बंधुओं का एक  और सफल आपात-चिकित्सकीय अभियान )
 
 
                 श्रीकांत जी घूमते हुए महेश जी के घर पहुंचे तो वे लिखने में व्यस्त थे | क्या होरहा है महेश जी ? श्रीकांत जी ने पूछा तो महेश जी ने बताया, ‘ एक कथा लिखी है, लो पढ़ो’, महेश जी ने श्रीमती जी को- ‘अरे भई, चाय बनाइये, श्रीकांत जी आये हैं’- आवाज लगाते हुए कहा | श्रीकांत जी पढने लगे | 
                  विश्व-शासन व्यवस्था के अधिपति श्री मन्नारायण की केन्द्रीय राजधानी के “क्षीर-सागर” स्थित महा-मुख्यालय से स्वर्गाधिपति इंद्र के माध्यम से विश्व-चिकित्सा महामुख्यालय के प्रभारी अश्विनी-बंधुओं को आकाशवाणी द्वारा एक आपातकालीन सन्देश प्राप्त हुआ कि श्रीमन्नारायण के सुदूर-उत्तरवर्ती महासागर स्थित मित्र-देश “नार-वेश” के भुज्यु-राज को सागर में डूबने से बचाना है | अश्विनी-बंधु अपने तीब्रगति से आकाशगामी त्रिकोणीय रथ द्वारा तुरंत घटनास्थल के लिए रवाना हो गए |
                भुज्यु-राज पृथ्वी के सुदूर उत्तरवर्ती महासागर स्थित तटीय राज्य ‘नारवेश’ के तटीय अन्न-उत्पादक क्षेत्रों एवं सागरीय भोज्य-पदार्थों के उत्पादक एवं विश्व की खाद्य-पदार्थ सामग्री आपूर्ति की एक प्रमुख श्रृंखला थे | तीब्रगति से अकाश-गमनीय त्रिकोण-रथ वाले भ्राता-द्वय, वैद्यराज अश्विनीकुमार ही सर्व-शस्त्र-शास्त्र संपन्न, सचल-चिकित्सावाहन के एकमात्र नियामक, संचालक व विशेषज्ञ थे | देव, असुर, दानव, मानव सभी के द्वारा स्वास्थ्य, चिकित्सा व आपातकालीन उपायों हेतु उन्हीं से अभ्यर्थना की जाती थी| वे विश्व भर में अपने सफल चिकित्सकीय व आपातकालीन अभियानों के लिए प्रसिद्द थे |
           अपने रथ पर गमन करते हुए अश्विनी-कुमारों ने ज्ञात कर लिया कि भुज्यु-राज का भोज्य-सामग्री वितरक एक वाणिज्यिक जलयान हिम-सागर के मध्य किसी हिम-शैल से टकराकर क्षतिग्रस्त हुआ है और डूबने जारहा है | वे जिस समय ‘नार-वेश’ पहुंचे वहाँ रात्रि थी | प्रातः के नाम पर सूर्यदेव सिर्फ कुछ समय के लिए दर्शन देकर अस्ताचल को चले जाया करते थे |  वे पहले भी एक बार इस प्रदेश में एक सफल अभियान कर चुके थे, जब देव-गुरु बृहस्पति की गायों को असुरों ने अपहरण करके इस अंधकारमय प्रदेश की गुफाओं में छुपा दिया था | उन्होंने बृहस्पति, सरमा व देवराज इंद्र के साथ सफल अभियान में गौओं को पुनः खोजकर मुक्त कराया था | यद्यपि उस समय उन्हें लंबी रात के समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी पडी थी और दिन होने पर ही गायों की खोज हो सकी थी | परन्तु यह आपात-स्थिति थी अतः दिन होने की प्रतीक्षा नहीं की जा सकती थी |
                       अश्विनी-बंधुओं ने तुरंत ही यान में स्थित सामान्य सूर्य व चन्द्रमा के ‘प्रकाश-सकेन्द्रण व एकत्रण’ यंत्रों के सहायता से दुर्घटना-स्थल का स्थान खोजना का प्रयत्न किया परन्तु सुनिश्चित स्थल का निर्धारण नहीं हो पारहा था | अतः उन्होंने तुरंत ही अपने विशिष्ट सूर्यदेव व चंद्रदेव के स्तुति-मन्त्रों द्वारा तीब्र प्रकाश उत्पन्न करने के यंत्रों का आवाहन किया | उनके अवतरित होते ही संचालन कुशलता से समस्त क्षेत्र की खोज की गयी| नार-वेश के तटीय समुद्र से और सुदूरवर्ती उत्तरी सागर-भाग में उन्हें भुज्यु-राज का डूबता हुआ जलयान दिखाई दिया, जो एक बहुत बड़े हिम-शैल  से टकराकर उसकी ओर झुकता हुआ धीरे-धीरे डूब रहा था |  त्वरित कार्यवाही करते हुए यान से स्वचालित रज्जु-मार्ग को लटकाते हुए भुज्यु-राज एवं उनके समस्त साथियों को बचाकर त्रिकोणीय--आकाश-रथ पर चढाया गया जो आवश्यकतानुसार छोटा व विस्तारित किया जा सकता था एवं चिकित्सकीय व जीवनोपयोगी सर्व-साधन संपन्न था |
                         शीत-लहरों के थपेडों व मौसम से आक्रान्त व भयाक्रांत भुज्यु-दल को उचित सर्वांग- चिकित्सा सहायता से जीवनदान व स्वास्थ्य प्रदान किया गया एवं उन्हें उनके आवास पर पहुंचाया गया |                            
                        इस प्रकार अश्विनी-बंधुओं का एक और कठिन, साहसिक, चिकित्सकीय आपात-सेवा अभियान संपन्न हुआ| विश्व शासन व्यवस्था के महालेखाकार ‘व्यास’ द्वारा इस अभियान का पूर्ण-विवरण विश्व-शासन के शास्त्रीय अभिलेखों के संचयन-कोष ‘वेदों’ के स्मृति-खंड में लिखकर संचित व संरक्षित किया गया |
                    ‘ये क्या कपोल-कल्पित गप्प लिख मारी है|’  श्रीकांत जी बोले, ’कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा जोड़-जाड कर |’
                    ‘हाँ यार ! कहानी है तो गल्प तो होगी ही | और गल्प में इधर-उधर से जोड़-तोड़ कर ही लिखा जाता है|’, महेश जी हंसकर बोले, ’परन्तु जो कुछ इधर-उधर से जोड़ा जाता है वह उसमें तथ्य होगा तभी तो वह इधर-उधर भ्रमण कर रहा होगा | कहीं से लेखक की पकड़ में आया और उस पर कथा का भवन खडा हुआ |’
                 ‘ तो क्या इसमें कुछ तथ्य भी है ?’, श्रीकांत जी ने आश्चर्य से पूछा |
                  ‘कुछ तो है, सोचो |’ महेश जी ने कहा |
                 ‘यार ! जैसा स्थान-समय, दिन-रात आदि का वर्णन है इससे तो...’ वे सोचते हुए बोले, ‘जितना मैं जानता हूँ उत्तरी-ध्रुवीय प्रदेशों ...नार्वे आदि से मिलता जुलता है, और कुछ तो मेरी समझ से बाहर है |’
                 ‘सही  पहुंचे | शेष तो पहचान सकते ही हो कि वैदिक -पौराणिक नामों, स्थानों का काल्पनिक सामंजस्य ही है |’ महेश जी ने बताया |
           ‘क्या बात है ! तुम कवि-लेखक लोग भी खूब हो | कहाँ-कहाँ से दूर की कौड़ी समेट लाते हो |’ श्रीकांत जी चाय पीते हुए कहने लगे |     


बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

किस्सा न्यूड व न्यूडिटी का----डा श्याम गुप्त

                           

                                            ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...    
ओह माई गॉड....यह चित्र तो वास्तव में ही माथा ठोकने की बात है
                       
                       प्रायः जब भी  कला, साहित्य व चित्र-कला में नग्नता व नग्न-चित्रों की बात होती है उन पर आपत्ति की जाती है तो यही कहा जाता है कि  " खजुराहो व कोणार्क  के देश में कौन नग्नता को परिभाषित करेगा ?"  इसका अर्थ जाहिर है कि स्वयं चित्र बनाने वाले, उनके समर्थक , नग्नता के समर्थक , पाश्चात्य -नग्न संस्कृति के समर्थक एवं आँख मूँद कर विदेशी संस्कृति के समर्थक --- भारतीयता या हिंदुत्ववादी तत्वों की परिभाषा, तर्कों उदाहरणों को नहीं समझेंगे  न मानेंगे | परन्तु जो समर्थक हैं उनकी परिभाषा कोई क्यों माने | हमें निम्न बिन्दुओं पर गौर करना चाहिए ....

                            जहां तक खजुराहो आदि की मूर्तियों की बात है .......... यह तर्क ही गलत है --- क्योंकि ...
-------- ये मूर्तियाँ एक विशिष्ट स्थान पर हैं जो सभी के लिए , पब्लिक प्लेस नहीं था अपितु सुदूर क्षेत्र में एक मंदिर ...एक विशेषज्ञ पाठशाला, संस्थान  की भांति..जिस प्रकार चिकित्सा विज्ञान के संस्थानों में सब कुछ दिखाया, सिखाया, पढ़ाया, प्रदर्शित होता  है ..परन्तु वह जन-जन सामान्य के लिए नहीं प्रदर्शित होता ..|
            आजकल  भी कितने लोग जन-सामान्य खुले आम  सपरिवार इन्हें देखने जाते हैं ...पति-पत्नी , युगल ही प्रायः जाते हैं, सोच -समझकर |
--------युग्म व मिथुन मूर्तियाँ सिर्फ मंदिर की बाहरी दीवारों पर ही मिलती हैं ...अन्दर नहीं ....आने वाले के लिए तात्विक अर्थ लिए कि साधना हेतु ये सब सांसारिकता  व  विकार बाहर छोड़कर आने होते हैं |
---------क्या हम इन्हें पब्लिक -पत्रों , जन सामान्य के साधनों पर प्रदर्शित करते हैं ...नहीं, सिर्फ कुछ व्यर्थ के ब्लागों, पत्रिकाओं, अदि के ..जो अनुचित है |
                               एकांत में तो सभी नंगे हैं तो हम नग्नता का पब्लिक- प्रदर्शन थोड़े ही करने लगेंगे | यह कुंठित व भ्रमित मानस के कर्म हैं |

                                यदि हम ध्यान से देखें तो विश्वभर के विभिन्न प्रसिद्ध चित्रकारों मूर्तिकारों आदि के  सभी चित्र, मूर्तियाँ आदि मूलतः एकल  हैं एवं अनाम-अज्ञात.. स्त्री-देह चित्रण या पुरुष देह चित्रण हैं .. जिसमें   सार्वजनिक न्यूडिटी की बात व आपत्ति की अधिक बात नहींआती, उन पर आपत्तियां भी नहीं हुईं |...आपत्तिजनक चित्र प्रायः वही होते हैं जिनमें ..देवी देवताओं  के , युगल-नग्नता , काम-क्रीडा आदि जैसे स्पष्ट या रेखांकित चित्रों की सर्जना की जाती है जो वास्तव में ही आपत्तिजनक होते हैं व होने ही चाहिए |ये विकृति मानसिकता व यौन-कुत्सिकता के चित्र हैं  एवं पाश्चात्य प्रभाव से ग्रस्त ....इन्हें निश्चय ही कलाकार की स्वतन्त्रता नहीं माना जा सकता ...आखिर कलाकार का भी समाज व व्यक्ति को सदाचरण-प्रेषण  के प्रति कुछ दायित्व होता है |  
                           आखिर हम या कलाकार क्या सन्देश देना चाहता है से चित्रों से , एसा कौन पुरुष-स्त्री है जिसे , या  हम सब को नारी देह का व उसकी सुन्दरता का ज्ञान नहीं है


                                 पुरातन व प्राचीन युग की मूर्तियों चित्रों आदि की भी तुलना करें तो ---मूर्तियाँ भारत में भी काफी प्राचीन समय से बनती रहीं है ...सिन्धुकालीन -सभ्यता से ..अधिकाँश  मूर्तियाँ वस्त्रों में हैं अन्यथा कुछ न्यूड-मूर्तियों  की बात है वे या तो सिर्फ एकल स्त्री की मूर्तियाँ है या उस समय की जब मूर्ति  कला का विकास नहीं था एवं वस्त्रों का भी चलन नहीं था|
सिन्धु-घाटी की न्यूड मूर्तियाँ
                                                                                                सिन्धु घाटी सभ्यता की मूर्तियाँ अधिकाँश  वस्त्र सहित हैं
                        


                            पाश्चात्य पौराणिक नग्न चित्रों व मूर्तियों के बारे में क्या कहा जाय ...वे भी  प्रायः नए युग के चित्रण ही हैं, उनकी अपने सभ्यता-संस्कृति के अनुसार | हमारे यहाँ कामदेव व रति के चित्रण भी नग्न नहीं होते ,,,वीनस  व टेम्पल की मूर्ति की भाँति  ....पूर्व व पाश्चात्य सभ्यता में अंतर तो है ही सदा से .....











                                                             ----चित्र...... इकोनोमिक टाइम्स व गूगल से साभार .....

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

श्याम स्मृति ----- -- डा श्याम गुप्त

                                ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


                       
 श्याम स्मृति -१----कहानी की कहानी  व भावी पीढी   ---- 
                           पहले वेद-उपनिषद् आदि में  घटनाओं का सत्य वर्णन किया जाता था, पौराणिक काल में सत्य को सोदाहरण कथारूप में लिखा जाने लगा, ताकि सामान्य जन समझ सके व उचित राह पर चल सके |  आगे चलकर कथाओं-गाथाओं का जन्म  हुआ जो सत्य-व वास्तविक घटनाओं, पात्रों, चरित्रों के आधार पर कहानियां थीं--'एक राजा था', 'एक समय..', 'एक राजकुमार ...' , 'एक दिवस....' , 'काम्पिल्य नगरी में एक धनी सेठ...' , 'एक सुंदर राज कुमारी '.आदि-आदि, जो समाज व व्यक्ति का दिशा निर्देश करती थीं |  बाद में कल्पित चरित्र ,घटनाओं आदि को आधार बनाकर कल्पित कथाएँ व गल्प, फंतासी आदि लिखी जाने लगीं जिनमें सत्य से आगे बढ़ा चढ़ा कर लिखा जाने लगा परन्तु वह किसी न किसी समाज, देश,काल की स्थिति-वर्णन होती थीं और बुराई पर अच्छाई की विजय |
                         परन्तु आज क्या लिखा-दिखाया जारहा है, पूर्ण असत्य  कथा-कहानी,  'इस सीरियल -कहानी के पात्र, घटनाएँ, किसी भी देश-काल, समाज, जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करते'  अर्थात पूरी तरह से झूठी कहानी;जब ये सब कहीं हो ही नहीं रहा है हुआ ही नहीं, कहीं मानव-मात्र से संवंधित ही नहीं, तो कहानी किस बात की |                               
                       क्या-क्या  मूर्खताओं के साए में पल रहे हैं आज-कल हम, हमारा साहित्य, साहित्यकार व समाज ..... कैसे सत्य को पहचाने  हमारी भावी पीढी  |

  


श्याम स्मृति - २ --आधुनिकता व  प्रगतिशीलता .... 
                   आधआधुनिकता व  प्रगतिशीलता ....  सिर्फ समयानुसार ...भौतिक बदलाव --ओडना-पहनना, खाने-पीने के तरीके अर्थात उठने-बैठने के भौतिक-सुख रूपी सुविधाओं के नवीन-ढंगों को ही नहीं कहा जाना चाहिए क्योंकि वे तो सदा ही बदलते रहेंगे,अपितु  समाज व  मानवता  के उत्थान हेतु चिंतन व सोच के नए तरीकों, आयामों  को ही कहा जा सकता है जो पुरा-ज्ञान से समन्वित होते हों ....संस्कृति  ज्ञान, दर्शन , कला, धर्म आदि के मूल तथ्य तो शाश्वत हैं ...सर्वदा वही रहते हैं  सदैव प्रकाश देते रहे हैं  और आज भी हमें प्रकाश दे रहे हैं  | जो मील के पत्थर बनते हैं उनसे आगे नए पत्थर तो बनाए जा सकते हैं परन्तु उन मील के पत्थरों को हटाया नहीं जासकता , हटाने को प्रगति नहीं कहा जा सकता ...कृष्ण ने गीता तो कही परन्तु यह भी कहा कि वेदों में मैं सामवेद हूँ....यही प्रगतिशीलता व आधुनिकता है ...|

जल्दी शादी और रेप..... डा श्याम गुप्त







       
                       क्या  इन्डियन सायकाट्रिस्ट  सोसायटी  की प्रेसीडेंट  की बात कोई भी मायने नहीं रखती ... क्या वास्तव में यह बात बिलकुल सोचने योग्य नहीं है  जो अन्य सायकाट्रिस्ट लोगों ने एक दम उसे खाप से जोड़ दिया ...एक मनोवैज्ञानिक की बात का कुछ तो अर्थ हो सकता है  |
                       ज़रा ध्यान से  सोच कर देखें तो इस बात में कुछ तो सच्चाई है जो एक अनुभवी चिकित्सक-मनोवैज्ञानिक ने अनुभव किया | निश्चय ही इससे ये घटनाएँ  समाप्त नहीं तो कम अवश्य होंगीं|  अन्य उपाय तो अपने स्थान पर किये ही जाने चाहिए |                     .

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

धर्म व राजनीति ...एवं कुम्भ में साधू-संतों का विचार-विमर्श ...डा श्याम गुप्त....

                           ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


              आजकल  प्रायः यह कहा जाता है कि धर्म को राजनीति से पृथक ही रहना चाहिए....धर्मगुरु अपने धर्म की बात करें उन्हें राजनीति पर या राजनीतिक क्रियाकलापों में भाग नहीं लेना चाहिए , उनका काम धर्म के प्रसार-प्रचार आदि का है राजनीति में भाग लेने का नहीं| साधू-संतों को राजनीति से क्या काम , वे सिर्फ अपने धर्म की बातें करें  आदि..आदि | ये एकांगी सोच है | ये सभी लोग प्राय्: या तो स्वयं राजनैतिज्ञ हैं  या तथाकथित सेक्यूलरवादी |  ये लोग स्वयं धर्म का अर्थ ही नहीं जानते | 
            आखिर धर्म क्या है | क्या धर्म एक मजहब या पंथ विशेष पर चलने को कहते हैं ? क्या सिर्फ धार्मिक कर्म काण्ड ही धर्म है?..नहीं....|  धर्म का अर्थ है किसी भी व्यक्ति, वस्तु , संस्था आदि का मूल नियम , मूल कर्त्तव्य | धर्म का कार्य है उस व्यक्ति, समाज-संस्था आदि को उचित दिशा प्रदान करना | अतः यदि धर्म , धार्मिक संस्थाएं , धार्मिक विचार व कृतित्व ....व्यक्ति, समाज, देश, राष्ट्र व  विश्व को उचित दिशा-ज्ञान नहीं दे सकते, उचित-अनुचित का व्यवहारिक ज्ञान नहीं दे सकते  तो उस धर्म का कोई मूल्य नहीं |
             धर्म के बिना समाज का कोई भी कार्य सुचारू एवं नैतिकता से नहीं  चल सकता  | धार्मिक  परामर्श  व धर्मनीति के बिना राजनीति ...राज-अनीति ही बनकर रह जायगी, जो आज हो रहा है | क्या प्राचीन काल में राजा धर्म गुरुओं की सलाह पर कार्य नहीं किया करते थे | प्रायः  क्या विभिन्न सामाजिक मसलों पर आज भी धर्म-गुरुओं के  परामर्श  की परम्परा नहीं है | हाँ धर्म-गुरु , साधू-संत स्वयं राजनीतिक में भाग लें तो आपत्ति हो सकती है
                इतिहास गवाह है कि समय समय पर धर्म-गुरुओं ने ही समाज की रक्षा की है, हथियार भी उठाये हैं  | अब्दाली के आक्रमण व अत्याचार को मथुरा के गोसाइंयों ने ही रोका था | भारतीय स्वतन्त्रता के संग्राम में भुवाल सन्यासी एवं बंदेमातरम की कथा व भूमिका  किसे  ज्ञात नहीं है| राम के रावण रूपी अनीति पर -विजय व दक्षिण जनस्थान के  उत्थान में तत्कालीन व स्थानीय ऋषियों-मुनियों के योगदान का किसे पता नहीं है |
                   अतः यदि देश  व समाज में किसी सामाजिक कार्य-विचार व जन-जन आकांक्षा एवं राजनीति की उचित दिशा निर्देश हेतु कुम्भ जैसे धार्मिक सम्मलेन में विचार होता है तो कुछ भी अनुचित नहीं है अपितु इसे समय के सापेक्ष घटनाक्रम के रूप में लेना चाहिए | वैसे ही हिन्दू धर्म के, भारतीयता, भारतीय संस्कृति  व भारत के विरोधी अपनी अज्ञानता के कारण भारतीय साधू-संतों पर अकर्मण्यता का दोषारोपण करते रहे हैं | यह उचित रूप से उन्हें प्रत्युत्तर देने का समय है |

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

पिछड़ता भारत ..... डा श्याम गुप्त.....


                                    ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
           प्रत्येक क्षेत्र में यही स्थिति है ..सिर्फ दलहन में ही क्या ....... अन्न ..गेहूं, चावल, खाद्य-तेल,  अन्य कपडे-जूते आदि मानव प्रयोग की वस्तुएं व खाद्य-पदार्थ,  जल, सिंचाई, तकनीकी , शिक्षा , कल्चर , खेल ...हर क्षेत्र में नक़ल की आयातित -संस्कृति चल रही है और यह सब है  धंधेबाजी हेतु -- कमीशनखोरी , भ्रष्टाचार के कारण .... और अधिक ..और अधिक कमाई हेतु ....
----- देखिये एक आँख खोलने वाला विचारणीय आलेख .......



                            

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

काहे मल मल कुम्भ नहाए ....डा श्याम गुप्त

                                   ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

रे मनुवा मेरे ....रे मनुवा ....मेरे .......रे मनुवा मेरे ...............|

काहे मल -मल कुम्भ नहाए....
मन के घट मद-मोह भरा रे ,
यह तू समझ न पाए रे .....|...रे मनुवा मेरे ......||

नदिया तीर लगाए मेले ,
भीड़-भड़क्के, ठेलम ठेले |
दूर- दूर चलि आये ,
अड़सठ कुम्भ नहाए|
मन का मैल न  जाए ...रे.....|   रे मनुवा मेरे .....||

कोई  गाडी चढ़कर आये ,
हाथी रथ पालकी सजाये |
बाबू अफसर , शासक, नेता ,
अपने अपने कर्म सजाये |

गुरु पाछे  बहु चेले आये ,
सेठ-सेठानी जी भर न्हाये|
मल मल न्हाये रे ......
कैसा कुम्भ नहाना रे मनुवा....
जो मन मैल न जाए रे ..........|     रे मनुवा मेरे ........||

गुरु स्वामी  शुचि संत समाजा ,
विविधि ज्ञान, बहु पंथ विराजा |
बहु-मत, बहुरि तत्व गुन राजा,
योग, कर्म, भक्ति शुचि  साजा |

काहे न ज्ञान कुम्भ तू न्हाये,
काहे न मन के भरम मिटाए |
जो मन मैल मिटाए रे....
मन, शुचि कर्म सजाये रे .....
रूचि-रूचि कुम्भ नहाए रे ......|....रे मनुवा मेरे ......||

कैसा कुम्भ नहाना रे मनुवा ,
जो मन मैल न जाए रे ...|
मन का भरम न जाए रे ...|

रे मनुवा... मेरे... रे.....मनुवा मेरे...... रे मनुवा मेरे................||













बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

आज का विचार .... डा श्याम गुप्त

                                           ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...








मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

पर उपदेश कुशल बहुतेरे ....अमरीका और बलात्कार ..डा श्याम गुप्त ..

                                     
                                         ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



             अभी हाल में ही भारत में 23 वर्षीय महिला के बलात्कार की घटना के सन्दर्भ में (भारतीय जनता को तो करना ही चाहिए था ..उचित ही था )  अमेरिकनों  व अमेरिकन -मीडिया के साथ-साथ ही विश्व के विभिन्न देशों व अमेरिका में बसे एवं भारत में स्थित अमेरिकन परस्त भारतीयों द्वारा भी  विभिन्न ब्लोगों, आलेखों पर टिप्पणियों के रूप में बड़े जोर-शोर से घटना का प्रस्तुतीकरण एवं  भारत सरकार व भारतीय समाज,सभ्यता, संस्कृति  आदि की बुराई -खिंचाई की गयी |.....कहा गया कि अमेरिका में होता तो ऐसा नहीं होता .....|
               
                          परन्तु वहीं अमेरिका की दो रेप घटनाओं को देखिये ..जिनके बारे में अधिक चर्चा नहीं की गयी, और अमेरिकन मीडिया अपनी स्वयं की रेप-कल्चर की असली तस्बीर  दिखाने में पीछे रहा |-

------ न्यूयॉर्क टाइम्स के समाचार अनुसार  अगस्त २०१२ को ओहियो में एक १६ वर्ष की महिला का बलात्कार किया गया एवं उसके बेहोश शरीर के ऊपर मूत्र-विसर्जन किया जाता रहा ... हाईस्कूल के बेस-बाल खिलाड़ियों की टीम में इस घटना का भी डिस्कशन भी किया जाता रहा |
-------३ जनवरी को केलीफोर्निया अपील कोर्ट द्वारा एक सोती हुई महिला के बलात्कार को  बलात्कार नहीं माना गया  क्योंकि महिला अविवाहिता थी |
                    अब आप अमेरिकन रेप-स्टेटस देखिये ....
------- अमेरिका में कहीं न कहीं प्रत्येक २ मिनट पर एक महिला के साथ रेप होता है | (U.S. Department of Justice.)
------- लगभग २०% रेप बॉय-फ्रेंड्स व पतियों द्वारा किये जाते हैं ,३५% जान पहचान वालों द्वारा, तथा ५% अन्य सम्बन्धियों द्वारा |
------ कुल बलात्कारों के सिर्फ ३७% ही पुलिस में रिपोर्ट किये जाते हैं |
--- लगभग 81% रेप श्वेत लोगों के एवं 18% ब्लेक लोगों के होते हैं|  निम्न आय वर्ग व उच्च आय वर्ग दोनों में ही ५०-५० %  रेप होते हैं |
--२००७ में सेक्चुअल -असाल्ट के २४८३०० केस एवं रेप के ९१८७४ केस रिकार्ड किये गए| प्रत्येक मर्डर के साथ रेप का अनुपात ५:१  है |
                            एक विवरण के अनुसार ---( European Institute for Crime Prevention and Control International Statistics on Crime and Justice, 2011) विश्व में कुछ मुख्य  देशों की  सेक्स-एसाल्ट रेप-रेंकिंग( १ इन १०००००) इस प्रकार है....


                   total 118.contries------------
Rank       Countries            Amount               Date 
# 1         France:                 10,277       2009 Time series    
# 23         Canada:               491          2009 Time series
# 40         South Africa:     113.5         2002 Time series
# 43         Australia:            91.6          2003 Time series
# 57         United States:     30.2         2006 Time series
100           India:                    1.7       2006 Time series

 १९८७----एक स्टडी के अनुसार---- १५% कालेज -छात्राओं के साथ रेप  एवं १२% छात्राओं  के साथ  रेप जैसी घटनाएँ  स्वीकार की गयीं |

- 2000 में एक स्टडी के अनुसार ( the National Institute of Justice and the Bureau of Justice )----3.1%  अंडर -ग्रेजुएट  महिलायों द्वारा एक एकेडेमिक वर्ष में रेप या अटेम्प्ट रेप की शिकायत की गयी  एवं उच्च शिक्षा के संस्थानों में  महिलाओं पर रेप आदि  की घटनाएँ २५% तक का अनुमान किया गया 

                                  कहने का या आलेख का यह अर्थ नहीं है कि बलात्कार कोई अच्छी बात है और अमेरिका में भी होता है तो हमारे यहाँ होता है तो कोई बात नहीं ...... जो विकृति है वह कितनी भी, कहीं भी हो अनुचित है एवं उसे रोकने के सभी उपाय होने चाहिए .....परन्तु वे पहले अपना घर देखें तब अन्य को उपदेश दें |
                               हमारे अमरीका परस्त भारत वासी ...उसके प्रशंसक, भक्त .....तथा कथित पढ़े-लिखे लोग...युवा ...संस्थाएं अदि भी..... जो तुरंत भारतीय -सरकार, भारतीय व्यवस्था...भारतीय कल्चर के पीछे लट्ठ लेकर पड़ जाते हैं .... गहन विचार करें |  हमें सुधार चाहिए ..न कि नक़ल की संस्कृति अपना कर एवं अपनी सभ्यता-संस्कृति की अनावश्यक बुराई व  आलोचना द्वारा |
                                                                                                    (  --- आंकड़े आदि --गूगल साभार  )

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

भारतीयता व राष्ट्रीयता व असहिष्णुता ....डा श्याम गुप्त ..

                                ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ
                      आजकल राष्ट्रीयता, देशप्रेम, जन से संपृक्तता  व भारतीयता एवं सहिष्णुता  का कितना अभाव होगया है यह हाल की कुछ घटनाओं से  स्पष्ट होजाता है ...
    
१.जयपुर लिट्. फेस्टीवल ....विश्व के १०० प्रसिद्द बुद्दिवादियोंमें  कैसे कैसे  लोग शुमार हैं कि एक छोटे से घटनाक्रम से ही उनकी विद्वता  की कलाई खुलने लगती है....जो भारत के एक साहित्य  फेस्टिवल में वह भी उत्तर भारत के हिन्दी भाषी  नगर में भारतीय जनता के लिए .'आइडियज  ऑफ़ इन्डियन रिपब्लिक ' विषय पर अंग्रेज़ी में भाषण देते हैं ..(यों तो भारतीय गणतंत्र का विषय एवं विषय का शीर्षक ही अंग्रेज़ी में क्यों रखा गया ...) एवं भाषा की अज्ञानता रहते इतने स्पष्ट भाव-शब्द व वाक्य नहीं  बोल सकते कि मीडिया व जनता ठीक से समझे और उन्हें बाद में सफाई न देनी पड़े  और सुप्रीम कोर्ट को फटकारना न पड़े |
                  यह अंग्रेज़ी भाषा की  विद्वता  व हिन्दी- या स्व-भाषा - भावों की समझ का फेर भी हो सकता है | राष्ट्रीयता , भारतीय-सहिष्णुता का अभाव  शब्दों व उनके के प्रभाव के तात्विक-ज्ञान की कमी का भी | इस घटनाक्रम से यह भी पता चलता है   कि हमारे  तथाकथित  'बेस्ट नोन एकेडेमीशीयन ' समाजशास्त्री .... समाज की नब्ज व समाजशास्त्र के बारे में कितना जानते हैं  एवं समाज के बारे में क्या धारणा रखते हैं |


२. विश्वरूपम ...                      ----  ऐसे व्यक्तियों की बुद्धि, ज्ञान एवं  राष्ट्र-प्रेम को क्या कहा जाय जो एक छोटे से घटनाक्रम से धैर्य खोकर तुरंत देश छोड़ने की धमकी देने लगें ....इन्हें  साहित्यकार व  कलाकार  कहने में भी हमें शर्म आनी चाहिए ये तो शुद्ध  अहंकारी व धन्धेवाज़ हैं | चार फ़िल्में बना लेने वाला कोई भी व्यक्ति या उसका अहं इतना ऊंचा कभी नहीं हो सकता, न होता कि किसी भी एक तबके द्वारा उसके विचारों का  विरोध करने पर वह देश को धमकी देने लगे | देश की सामाजिक व न्याय व्यवस्था पर जिसे धैर्यपूर्ण विश्वास ही न हो उन्हें वास्तव में ही देश छोड़ देना चाहिए | कोई भी अपूरणीय नहीं है इस देश के लिए |

                            घटनाओं का  दूसरा पहलू यह भी है कि----दोनों घटनाओं , घटनाक्रमों एवं जन क्रिया-प्रतिक्रियाओं से  प्रतीत होता है कि हम कितने असहिष्णु होगये हैं | बोलने, लिखने, प्रदर्शित करने  की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी ही चाहिए  जब तक कि किसी में   अनर्गल , असभ्य्तापूर्ण, गाली-गलौज़ की भाषा , चरित्र हरण आदि न हो |...यदि किसी को आपत्ति है तो वह उचित स्थान पर दर्ज कराये | क्रिया की प्रतिक्रया ( प्रभावित पक्ष द्वारा) भी असहिष्णुता है | सभी पक्षों द्वारा  असहिष्णुता का परिचय दिया गया|

                             यह असहिष्णुता इस देश में कहाँ से आई ?? जिस देश में व दुनिया भर में हज़ारों रामायण हों, गीता हों ...सबके  अपने-अपने अर्थ हों..सब अपने अपने प्रकार से कहने को स्वतंत्र हो ....किसी में सीता रावण की पुत्री...कहीं प्रेमिका, कहीं राम को नारी विरोधी ..कृष्ण को लम्पट ..सभी को अपनी-तरह से लिखने -कहने काअधिकार हो ....जिस देश में ब्रह्मा-विष्णु-शिव जैसे  जाति -कुल अदि से परे सभी --देव-दानव-दैत्य-राक्षस सभी को एक सामान वरदान देने वाले पात्र रचे गए हों ... कोई ईश्वर को माने  न  माने , सभी धर्मों..जातियों के मिलन का यह देश ...कैसे इतना असहिष्णु होगया.....? विदेशी आक्रमणकारियों ..पहले मुगलों की हिन्दू-मुस्लिम में भेदभाव पूर्ण नीति, तत्पश्चात अंग्रेजों द्वारा भारतीय-अँगरेज़-योरपीय भेद-भाव  नीति द्वारा.....
                      इसका एक ही उत्तर है....स्व-संस्कृति के विस्मरण से | स्वयं के विस्मरण से ....पर- संस्कृति के जाल से .... हमें पुनः स्मरण करना होगा कि-----
        " हम कौन थे क्या होगये और क्या होंगे अभी ,
          सोचें समस्याएँ यही  बैठकर के हम सभी |"""""




शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

श्री लंका यात्रा --अंतिम क़िस्त .....इन्दुर्वा बीच -











                                

इन्दुर्वा बीच रिजोर्ट  एव बीच -हिन्द महासागर  श्री लंका
इन्दुर्वा बीच
दुग्ध-धवल फेनिल सागर जल

                        २९-१२-१२  को प्रातः नाश्ते के उपरांत होटल में ही  स्विमिंग पूल एवं श्री लंका के दक्षिणी -पश्चिमी तट पर हिन्द-महासागर स्थित इन्दुर्वा बीच  जो रिजोर्ट की अपनी  ही बीच है ,पर  समुद्री तट पर घूमने,  समुद्र स्नान ,  चट्टानों से टकराकर उछलते समुद्र की लहरों का आनंद लिया क्योंकि दोपहर  को कोलम्बो के लिए निकलना था जहां से चेन्नई के लिए फ्लाईट थी  एवं चेन्नई से रात्रि में बेंगलोर के लिए ट्रेन  |
आराध्य निर्विकार व रीना सागर-लहरों में
                      









 
     













लहरों की भंवर में
 बालू में रीना व सुषमा जी
धवल लहरों में मस्ती--आराध्य, रीना व निर्विकार


 निर्विकार एवं सागर की  एक उत्ताल तरंग 
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                       
   
सागर तट -चट्टान पर
मछली पकड़ते नाविक
                  



आराध्य, रीना व निर्विकार के साथ मस्ती के मूड में



सुषमा जी की गोद में आराध्य और दोस्ती का हाथ

|दोपहर में हम लोग बापस कोलम्बो के लिए चल दिए रास्ते में  कोस्गोडा टर्टल - हेचरी व नर्सरी में एक दिन से ५५ वर्ष व ८४ वर्ष तक  उम्र के व विभिन्न प्रजातियों के टर्टल ( सागरीय कच्छप ) का अवलोकन किया | यहाँ समुद्र से टर्टल के अंडे रात के समय में बीच की रेती सहित उठालिये जाते हैं एवं २-३ दिन का होने पर पुनः सागर में छोड़ दिए जाते हैं| समुद्री कच्छप -टर्टल -  सामान्य टोरटोइज़---कछुओं --से भिन्न कच्छप की वह प्रजाति होती है जिसके कछुओं की भाँति  पैर न होकर मछली के फिन्स ( परों) की भाँति  चार फ्लेट पैर होते हैं एवं वे कछुओं की भाँति सुरक्षा हेतु अपने खोल ( कवच) में नहीं घुस सकते |
आरू सिपिंग द नारियल-पानी
अल्बीनो -श्वेत -टर्टल
२ दिन के टर्टल-बच्चे  और आराध्य
बड़े टर्टल
                  



                      २९-१२-१२ शाम को कोलम्बो के भंडारनायके एयर -पोर्ट पर पहुँच कर  एक सप्ताह तक साथ रहने वाले  सौम्य व सज्जन व्यक्तित्व वाले श्री लंकन ड्राइवर  व गाइड  का किरदार निभाने वाले श्री हरेंदु मेंडिस  से बिदा ली | मेरी  पुस्तक  शूर्पणखा काव्य-उपन्यास की प्रति भेंट में पाकर उन्होंने हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त की | ३०-१२-१२ को प्रातः हम लोग बापस बेंगलोर आगये   |