....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
ग़ज़ल...ये अच्छी बात नहीं ..
गैर के भूल की सज़ा तुझको मिले तो कोई बात नहीं |
भूल हो तेरी सज़ा और को हो ये अच्छी बात नहीं |
बात की बात है कि वो है या नहीं है वह ,
खुशी में भूल जाएँ खुदा को ये अच्छी बात नहीं |
मुल्क पे कुर्बान होंगे ही कलेजे वाले कोई बात नहीं ,
भूल जाए जो मुल्क शहीदों को ये अच्छी बात नहीं |
भूल हो गैर की या तेरी हो कोई बात नहीं ,
सबक भूल से न ले जो ये अच्छी बात नहीं |
क्या बुरा है,क्या है अच्छा 'श्याम क्या जाने,
याद जो न रखा जाए नेकी को ये अच्छी बात नहीं |
ग़ज़ल...ये अच्छी बात नहीं ..
गैर के भूल की सज़ा तुझको मिले तो कोई बात नहीं |
भूल हो तेरी सज़ा और को हो ये अच्छी बात नहीं |
बात की बात है कि वो है या नहीं है वह ,
खुशी में भूल जाएँ खुदा को ये अच्छी बात नहीं |
मुल्क पे कुर्बान होंगे ही कलेजे वाले कोई बात नहीं ,
भूल जाए जो मुल्क शहीदों को ये अच्छी बात नहीं |
भूल हो गैर की या तेरी हो कोई बात नहीं ,
सबक भूल से न ले जो ये अच्छी बात नहीं |
क्या बुरा है,क्या है अच्छा 'श्याम क्या जाने,
याद जो न रखा जाए नेकी को ये अच्छी बात नहीं |
2 टिप्पणियां:
भाव व कथ्य की अस्पष्टता AAPKI रचनाओं का मूल शब्द-भाव है ... इस प्रकार के रचनाओं ने ही जन-सामान्य को कविता से दूर किया .... ये जन सामान्य की बातें तो कहती हैं परन्तु उसी जन सामान्य की समझ से परे होती हैं ....पहेलियों की भांति ...आजा के इब्र चाल के जमाने में पहेलियाँ बुझाने का समय किस के पास है ...इसे कवियों को ...कविताओं को ..प्रश्रय के कारण ...साहित्य हाशिए पर चलता गया....
---यदि कविता सीधे सीधे अभिधात्मक-भाव में होगी तो जन सामान्य की समझ में आये और उसे पढ़ा जाए...
अवनीश जी....यह ग़ज़ल तो स्पष्टतः ही अभिधात्मक शैली में है आपको कहाँ व्यंजना-लक्षणा या दुरूह शब्द-भाव व दूरस्थ-कथ्य लगे.. स्पष्ट करें ....यह भाषा ही तो जन-सामान्यकी भाषा है ..
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