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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 28 दिसंबर 2013

ये अच्छी बात नहीं ..डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल....

                                  ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

         ग़ज़ल...ये अच्छी बात नहीं ..

गैर के भूल की सज़ा तुझको मिले तो कोई  बात नहीं |
भूल हो तेरी सज़ा और को हो ये  अच्छी बात नहीं |

बात की  बात है  कि  वो है या  नहीं है वह ,
खुशी में भूल जाएँ खुदा को ये अच्छी बात नहीं |

मुल्क पे कुर्बान होंगे ही कलेजे वाले कोई बात नहीं ,
भूल जाए जो  मुल्क शहीदों को ये अच्छी बात नहीं |

भूल हो गैर की या तेरी हो कोई  बात नहीं ,
सबक भूल से  न ले जो ये अच्छी बात नहीं |

क्या बुरा है,क्या है अच्छा  'श्याम क्या जाने,
याद जो न रखा जाए नेकी को ये अच्छी बात नहीं |


2 टिप्‍पणियां:

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan ने कहा…

भाव व कथ्य की अस्पष्टता AAPKI रचनाओं का मूल शब्द-भाव है ... इस प्रकार के रचनाओं ने ही जन-सामान्य को कविता से दूर किया .... ये जन सामान्य की बातें तो कहती हैं परन्तु उसी जन सामान्य की समझ से परे होती हैं ....पहेलियों की भांति ...आजा के इब्र चाल के जमाने में पहेलियाँ बुझाने का समय किस के पास है ...इसे कवियों को ...कविताओं को ..प्रश्रय के कारण ...साहित्य हाशिए पर चलता गया....
---यदि कविता सीधे सीधे अभिधात्मक-भाव में होगी तो जन सामान्य की समझ में आये और उसे पढ़ा जाए...

shyam gupta ने कहा…

अवनीश जी....यह ग़ज़ल तो स्पष्टतः ही अभिधात्मक शैली में है आपको कहाँ व्यंजना-लक्षणा या दुरूह शब्द-भाव व दूरस्थ-कथ्य लगे.. स्पष्ट करें ....यह भाषा ही तो जन-सामान्यकी भाषा है ..