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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

रविवार, 5 जनवरी 2014

बुराई की जड़ –कविता-- डा श्याम गुप्त ....

                               ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



             आज  विश्व में हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार का बोलबाला है...साथ ही  देश की राजनीति एवं   प्रत्येक क्षेत्र में उसके विरुद्धआवाजें भी उठ रही हैं जो एक अच्छा प्रतीक है ...मानवता के लिए ....परन्तु प्रत्येक बुराई का  ..अनीतिशास्त्र का वास्तविक मूल कहाँ है ...असीमित सुख की अभिलाषा....प्रस्तुत है एक कविता......

बुराई की जड़

प्रत्येक बुराई की जड़ है,
अति सुखाभिलाषा ;
जो ढूंढ ही लेती है
अर्थशास्त्र की नई परिभाषा;
ढूंढ ही लेती है
अर्थ शास्त्रं के नए आयाम ,
और धन आगम-व्यय के
नए नए व्यायाम |
और प्रारम्भ होता है
एक दुश्चक्र, एक कुचक्र -
एक माया बंधन -क्रम उपक्रम द्वारा
समाज के पतन का पयाम |
 
समन्वय वादी, तथा-
प्राचीन अर्वाचीन से
नवीन को जोड़े रखकर,बुने गए-
नए नए तथ्यों, आविष्कारों, विचारों से होता है,
समाज-उन्नंत... अग्रसर |
पर, सिर्फ सुख अभिलाषा, अति सुखाभिलाषा-
उत्पन्न करती है, दोहन-भयादोहन,
प्रकृति का,समाज का, व्यक्ति का;
समष्टि होने लगती है, उन्मुख
व्यष्टि की ओर;
समाज की मन रूपी पतंग में बंध जाती है-
माया की डोर |
ऊंची, और ऊंची, और ऊंची
उड़ने को विभोर ;
पर अंत में  कटती है ,
गिरती है, लुटती है वह डोर-
क्योंकि , अभिलाषा का नहीं है, कोई-
ओर छोर |

नायकों, महानायकों द्वारा-
बगैर सोचे समझे 
सिर्फ पैसे के लिए कार्य करना;
चाहे फिल्म हो या विज्ञापन ;
कर देता है-
जन आचार संहिता का समापन |
क्योंकि इससे उत्पन्न होता है
असत्य का अम्बार,
झूठे सपनों का संसार ;
और उत्पन्न होता है ,
भ्रम, कुतर्क, छल, फरेब, पाखण्ड का
विज्ञापन किरदार ,
एक अवास्तविक, असामाजिक संसार |

साहित्य, मनोरंजन कला-
जब धनाश्रित होजाते हैं;
रोजी रोटी का श्रोत , -
आजीविका बन जाते हैं ;
यहीं से प्रारम्भ होता है-
लाभ का अर्थ शास्त्र,
लोभ धन आश्रित अनैतिकता की जड़ का ,
नवीन लोभ-कर्म नीति शास्त्र , या--
अनीति शास्त्र ||



5 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुख की अभिलाषा और नित ही सुख की नयी परिभाषा।

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति -
आभार आपका-
सादर -

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद पांडे जी एवं रविकर .....

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

स्वार्थी ,भ्रष्ट लोगो ने आय ,व्याय,अर्थशास्त्र को बदनाम कर दिया !
नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |

नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट विचित्र प्रकृति

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद कालीपद जी ...सच कहा ...