....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
गुरुवासरीय काव्य-गोष्ठी का
आयोजन
माह के प्रत्येक गुरूवार को होने
वाली ‘गुरुवासरीय काव्य-गोष्ठी’ का आयोजन गुरूवार,दि.०९-१०-२०१४ को डा
श्याम गुप्त के निवास सुश्यानिदी , के-३४८, आशियाना, लखनऊ पर संपन्न हुआ | श्रीमती
सुषमा गुप्ता द्वारा कवियों का स्वागत किया गया |
वाणी वन्दना करते हुए डा श्याम
गुप्त ने माँ सरस्वती से भारत की एवं सभी को प्रसन्नता प्रदान करने की कृपा की
आकांक्षा करते हुए माँ से विनय करते हुए कहा..
जय जय जयति सरस्वती माता,
हम सबको ऐसा वर दीजै ||
बढ़े हिन्द में नित प्रति विद्या,
विद्या बुद्धि कबहुं नहीं छीजै |
संचालन सुप्रसिद्ध कवि व वरिष्ठ
साहित्यकार डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य' द्वारा किया गया | डा श्याम गुप्त ने
अपनी कविता ..’अपन-तुपन’ से गोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए विभिन्न दार्शनिक,
धार्मिक, वैदिक एवं सामयिक विषयों पर काव्य रचना सुनाते हुए बचपन का एक सुन्दर शब्द-चित्र प्रस्तुत किया ...
सारा क्रोध, गिले शिकवे,
काफूर होजाते थे ; और-
बाँहों में बाँह डाले,
फिर चल देते थे, खेलने-
अपन-तुपन |
श्री
उमेश दुबे जी ने माटी ...माँ धरती की महत्ता बताते हुए कहा .....
कोइ कहता माटी कंचन, कोई कहे अबीर,
मेरी माटी तो ममता है हरती सबकी पीर |.......
डा
अखिलेश ने ....‘वृद्ध भंवरे की बाँहों नवेली कली ‘ गीत
गुनुगुनाया ...तो बसन्त राम दीक्षित
ने श्रृंगार गीत से गोष्ठी में रंग भरते हुए कहा ..‘सुरभित रस गंध की
अनुभूति हूँ मैं’ गीत प्रस्तुत किया |
कविवर रवीन्द्र अनुरागी ने सामयिक सत्य
को प्रस्तुत करते हुए कहां ...
’मेरी कविता रस विहीन निष्ठुर भावों की...
जिसके छंद छंद में करूणा है,
असहनीय, भूखे प्यासे इंसानों की “
कविवर रामदेव लाल ’विभोर ने संसाधन बचत पर लक्ष्य करते हुए परामर्श
दिया -
फैशन रख दें ताक पर तजें व्यर्थ का खेल ,
समझ बूझ कर व्यय करें ,बिजली पानी तेल |...वहीं भक्त कवि कौशल किशोर जी ने --
......‘बड़े
दयालू भोले शंकर उनका सुमिरन कर’ से भोलेनाथ की वन्दना की |
आचार्य डा कृष्ण मोहन जी महाराज ने
हुंकार भरते हुए उद्बोधन गीत --
‘हो रक्त वर्ण हुंकारों में, गीली होजाय दुलारों
में, ...से गोष्ठी में जोश उत्पन्न किया | प्रथम
बार आये हुए अतिथि श्रोता एडवोकेट श्री शिवभूषण तिवारी जी ने गोष्ठी अपना
वक्तव्य देते हुए कि कविता के इन कथ्यों पर इन्सान चलें तो घर व समाज को स्वर्ग
बनाया जा सकता है दो पंक्तियाँ प्रस्तुत कीं—
जीवन से जो कुछ पाया,
संतोष किया जीवन में |
स्वागताध्यक्ष
श्रीमती सुषमा गुप्ता जी ने
दो सुन्दर गीत प्रस्तुत करते हुए .कहा..
‘चल रहे थे हम अकेले ,
एक सूनी राह पर |
तुम मिले साथी बने,
हर राह आसां होगई |
डा
रंगनाथ मिश्र सत्य ने राधा-कृष्ण, तुलसी–रत्ना व राम-गिलहरी के प्रेम को
सुनाते हुए कहा....
‘श्रेष्ठ प्रेम राधाजी का राधे-श्याम
कहिये ,
इसलिए राधाजी की साधना को गहिये |
सब कष्ट दूर हों चक्रधारी की कृपा से ,
राधे-राधे, श्याम-श्याम, राधे-श्याम कहिये |
डा रंगनाथ मिश्र सत्य श्री उमेश दुबे का उनके जन्म-दिवस के उपलक्ष पर माल्यार्पण व साहित्य भेंट करते हुए |
रवीन्द्र अनुरागी, बसंत राम दीक्षित एवं डा श्रीकृष्ण अखिलेश |
डा श्याम गुप्त का काव्य पाठ |
डा सत्य काव्य-पाठ करते हुए |
डा कृष्णमोहन महाराजका काव्यपाठ |
सुषमा जी का गीत |
सुषमा जी का गीत ...
जलपान के उपरांत डा श्याम गुप्त द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के उपरांत गोष्ठी का
समापन हुआ |
डा श्याम गुप्त का काव्य पाठ --ज्ञान गंगा की ओर
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