ब्लॉग आर्काइव

डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

मेरी फ़ोटो
Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
गंगा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
गंगा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 5 मई 2016

कहाँ जाती हैं गंगा में विसर्जित अस्थियाँ ?----डा श्याम गुप्त

             ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ... 

 

                     कहाँ जाती हैं गंगा में विसर्जित अस्थियाँ ?


              एक दिन देवी गंगा श्री हरि से मिलने बैकुण्ठ धाम गई और उन्हें जाकर बोली," प्रभु ! मेरे जल में स्नान करने से सभी के पाप नष्ट हो जाते हैं लेकिन मैं इतने पापों का बोझ कैसे उठाऊंगी? मेरे में जो पाप समाएंगे उन्हें कैसे समाप्त करूंगी?"
             इस पर श्री हरि बोले, "गंगा! जब साधु, संत, वैष्णव आकर आप में स्नान करेंगे तो आप के सभी पाप घुल जाएंगे।"

                        सदानीरा व परमपावन गंगा नदी को प्राणियों के समस्त पापों को दूर करने वाली कहा जाता है | परन्तु वह स्वयं अपवित्र नहीं होती| प्रत्येक हिंदू व उसके परिवार की इच्छा होती है उसकी अस्थियों का विसर्जन गंगा में ही किया जाए | युगों से ये प्रथा चली आ रही है | अस्थियाँ गंगा में विसर्जित होती आरही हैं फिर भी गंगाजल पवित्र एवं पावन है। अब प्रश्न यह उठता है कि यह अस्थियां जाती कहां हैं?

                  गौमुख से गंगासागर तक खोज करने के बाद भी वैज्ञानिक भी आज तक इस प्रश्न का उत्तर इसका उत्तर नहीं खोज पाए | क्योंकि असंख्य मात्रा में अस्थियों का विसर्जन करने के बाद भी गंगाजल पवित्र एवं पावन है।

  सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार-------
 
-----मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए मृत व्यक्ति की अस्थि को गंगा में विसर्जन करना उत्तम माना गया है। ”पारद“ शब्द में -पा = विष्णु...र = रूद्र शिव और ‘द’ = ब्रह्मा के प्रतीक है। यह अस्थियां सीधे श्रीहरि के चरणों में बैकुण्ठ चली जाती हैं। जिस व्यक्ति का अंत समय गंगा के समीप आता है उसे मरणोपरांत मुक्ति मिलती है।
धार्मिक दृष्टि से----- 

-----पारद शिव का प्रतीक है और गंधक शक्ति का प्रतीक है। सभी जीव अंततः शिव और शक्ति में ही विलीन हो जाते है। पारद को भगवान् शिव का स्वरूप माना गया है और ब्रह्माण्ड को जन्म देने वाले उनके वीर्य का प्रतीक भी इसे माना जाता है। धातुओं में अगर पारद को शिव का स्वरूप माना गया है तो ताम्र को माँ पार्वती का स्वरूप। इसलिए गंगा में ताम्र के सिक्के फैकने की प्रथा है | इन दोनों के समन्वय से शिव और शक्ति का सशक्त रूप उभर कर सामने आ जाता है। ठोस पारद के साथ ताम्र को जब उच्च तापमान पर गर्म करते हैं तो ताम्र का रंग स्वर्णमय हो जाता है।

  वैज्ञानिकों के अनुसार-----

--- गंगाजल में पारा (मर्करी) विद्यमान होता है जिससे हड्डियों में उपस्थित कैल्शियम और फोस्फोरस पानी में घुल जाता है। जो जलजन्तुओं के लिए एक पौष्टिक तत्व है। हड्डियों में गंधक (सल्फर) होता है जो पारे के साथ मिलकर पारद का निर्माण करता है जो जल में उपस्थित विभिन्न रासायनिक तत्वों, मूलतः क्लोराइड व ब्रोमाइड, आयोडाइड,कार्बन, मेग्नीशियम, पोटेशियम द्वारा औषधीय गुण उत्पन्न करते हैं। मूलतः यह मरकरी सल्फाइड साल्ट (HgS) का निर्माण करते हैं। जल में उपस्थित वायु द्वारा ऑक्सीकृत होने पर पारद पुनः मुक्त हो जाता है। और अस्थियों के रासायनिक विसर्जन यह क्रम चलता रहता है | हड्डियों में बचा शेष कैल्शियम पानी को स्वच्छ रखने का काम करता है।

---- पारा एक तरल पदार्थ होता है और इसे ठोस रूप में लाने के लिए विभिन्न अन्य धातुओं जैसे कि स्वर्ण, रजत, ताम्र सहित विभिन्न जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है। इसे बहुत उच्च तापमान पर पिघला कर स्वर्ण, रज़त और ताम्र के साथ मिला कर, फिर उन्हें पिघला कर आकार दिया जाता है। जो पारद-शिव लिंग बनाने के काम लाया जाता है | ठोस पारद के साथ ताम्र को जब उच्च तापमान पर गर्म करते हैं तो ताम्र का रंग स्वर्णमय हो जाता है। इससे शिवलिंग को "सुवर्ण रसलिंग" भी कहते हैं|

---- पारा अपनी चमत्कारिक और हीलिंग प्रॉपर्टीज के लिए वैज्ञानिक तौर पर भी मशहूर है। मर्क्यूरोक्रोम हीलिंग के लिए प्रयुक्त एक मुख्य रसायन है |

------ पारद को पाश्चात्य पद्धति में उसके गुणों की वजह से फिलोस्फर्स स्टोन भी कहा जाता है। आयुर्वेद में भी इसके कई उपयोग हैं| उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अस्थमा, डायबिटीज में पारद से बना मणिबंध (ब्रेसलेट ) पहनाया जाता है |



बुधवार, 11 मार्च 2015

गंगा -प्रदूषण पर ...डा श्याम गुप्त....

                                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
 गंगा -प्रदूषण पर ...

सदियों से पुष्प बहे, दीप-दान होते रहे ,
दूषित हुई न कभी नदियों की धारा है |
होते रहे हैं नहान, मुनियों के ज्ञान-ध्यान,
मानव का  सदा रही,  नदिया सहारा है |
बहते रहे शव भी, मेले- कुंभ  होते रहे ,
ग्राम नगर बस्ती के  जीवन की  धारा है |
 श्रद्धा, भक्ति, आस्था के कृत्यों से प्रदूषित गंगा .
छद्म-ज्ञानी, अज्ञानी, अधर्मियों का नारा है | |

नदीवासी जलचर, मीन  कच्छप मकर ,
नदिया सफाई हित, प्रकृति व्यापार  है |
पुष्प घृत  दीप बाती ,शव अस्थि चिता-भस्म,
जल शुद्धि-कारक,जीव-जन्तु आहार है |
मानव का मल-मूत्र, कारखाना-अपशिष्ट,
बने जल-जीवों के विनाश का आधार है |
यही सब कारण हैं, न कि आस्था के वे दीप,
आस्था बिना हुई प्रदूषित गंगधार है |

फैला अज्ञान तमस, लुप्त है विवेक, ज्ञान ,
श्रृद्धा आस्था से किया मानव ने किनारा है |
अपने ही दुष्कृत्यों का, मानव को नहीं भान
अपने कुकृत्यों से ही मानव स्वयं हारा है |
औद्योगिक गन्दगी, हानिकारक रसायन,
नदियों में बहाए जाते, किसी ने विचारा है |
नगरों के मल-मूत्र, बहाए जाते गंगा में,
इनसे  प्रदूषित हुई, गंगा की धारा है ||






.








शनिवार, 11 अक्टूबर 2014

प्रेम चंद सेनी की कविता ....गंगा गान ...डा श्याम गुप्त ....

                                    ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

श्री लंका यात्रा भाग आठ ....बेन्टोटा नदी में ,,,,




                      बेंटोटा गंगा नदी में बोटिंग एवं वाटर स्पोर्ट्स --- 28-12-12  -प्रातः नाश्ते के पश्चात हम लोगों ने इन्दुर्वा से बेन्टोटा नदी के लिए प्रस्थान किया |  नदी जहां समुद्र में मिलती है काफी बड़ा व घना डेल्टा बनाती  है जिसमें बने  मेंग्रोव के घने दलदलीय वनों में होकर बहती है जिनमें घड़ियाल, मगरमच्छ व वाटर-मोंस्टर  नामक जल-जंतु पाए जाते हैं | पहले विशाल नदी एवं मेंग्रोव वनों में बोटिंग की गयी तत्पश्चात निर्विकार -रीना  समुद्र में स्नोर्क्लिंग व स्कूबा डाईबिंग  करना चाहते थे परन्तु मौसम व समुद्र की हलचल उपयुक्त न  होने के कारण वापस लौट आये एवं सभी ने नदी में ही अन्य वाटर-स्पोर्ट्स का आनंद लिया |

डाइनिंग हाल में  मस्ती करते  हुए आराध्य

इन्दुर्वा बीच रिजोर्ट में ब्रेक-फास्ट

बेन्टोटा  -पुल पर श्री लंकन ट्रेन

क्रोकोडायल का शिशु

वाटर -मोंस्टर स्थल पर



 नदी से मस्जिद का दृश्य
नदी में आईलेंड पर मगरमच्छ विश्राम करते हुए व मेंग्रोव के घने वन

नदी में  तैरते हुए वाटर मोंस्टर



विशालकाय बेंटोटा -गंगा नदी में बोटिंग




मेंग्रोव के घने वन में

                                   
मेंग्रोव के घने वन में जाती हुई नावें
वाटर स्पोर्ट-सुषमा जी व आराध्य के साथ
रीना व निर्विकार वाटर स्कूटर पर

आराध्य की जलक्रीडा

सुषमा जी , रीना, निर्विकार व आराध्य वाटर स्कूटर पर
निर्विकार के साथ वाटर स्कूटर पर
                         नदी  व सागर में वाटर स्पोर्ट कराने वाले अधिकांस लोग  श्रीलंका के आदिवासी  वेददा -यक्का क्लान  ( प्राचीन यक्ष-राक्षस-नाग )   के  लोग हैं जो  वहां के मूल निवासी हैं -गहन वन के निवासी -हंटर-गेदरर  मानव --जो आधुनिक समय में  नगर में बस गए हैं एवं कुशल तैराक व समुद्री जोखिम में माहिर हैं |

 वाटर स्पोर्ट  कराने वाले कुशल नाविक


                 

रविवार, 20 जून 2010

गंगा दशहरा पर.....

गन्गोत्री ग्लशिअर नीचे खिसकता हुआ ----->
स्वर्ग से गंगावतरण का दृश्य ---->

सदा
नीरा माँ गंगा भारतवर्ष की जीवन दायिनी, जन-जीवन है अतः माँ रूप में सर्वत्र पूजी व जानी गयी । यद्यपि आज हमारे अपने ही कृतित्वों से वह क्षीणकाय व प्रदूषित होती जारही है परन्तु फिर भी जन जन की आस्था कम नहीं हुई है । अच्छा होगा यदि हम आस्था के साथ साथ गंगा को प्रदूषण रहित करने में भी योगदान दें । कहीं एसा हो सरस्वती की भांति सिर्फ आस्था ही रह जाय गंगा विलुप्त होजाय
तुलसी दास जी ने -कवितावली’ में गंगा को विष्णुपदी, त्रिपथगामिनी और पापनाशिनी आदि कहा गया है-
जिनको पुनीत वारि धारे सिर पे मुरारि।
त्रिपथगामिनी जसु वेद कहैं गाइ कै।।

गन्गा जी के दर्शन के लिए देवांगनाएँ झगड़ती हैं, देवराज इन्द्र विमान सजाते हैं, ब्रह्मा पूजन की सामग्री जुटाते हैं क्योंकि गंगा दर्शन से समस्त पाप नष्ट होजाते हैं और उसका विष्णु लोक में जाना निश्चित हो जाता है-
देवनदी कहँ जो जन जान किए मनसा कहुँ कोटि उधारे।
देखि चले झगरैं सुरनारि, सुरेस बनाइ विमान सवाँरे।

पूजा को साजु विरंचि रचैं तुलसी जे महातम जानि तिहारे।

ओक की लोक परी हरिलोक विलोकत गंग!तरंग तिहारे।।
(कवितावली-उत्तरकाण्ड 145)

---वास्तव मे सर्वव्यापी परमब्रह्म परमात्मा जो ब्रह्मा, शिव और मुनिजनों का स्वामी है, जो संसार की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय का कारण है, वही गंगा रूप में जल रूप हो गया है-
ब्रह्म जो व्यापक वेद कहैं, गमनाहिं गिरा गुन-ग्यान-गुनी को।
जो करता, भरता, हरता, सुर साहेबु, साहेबु दीन दुखी को।
सोइ भयो द्रव रूप सही, जो है नाथ विरंचि महेस मुनी को।
मानि प्रतीति सदा तुलसी, जगु काहे न सेवत देव धुनी को।।
(कवितावली-उत्तरकाण्ड 146)

और -----
जै जै विष्णु-पदी गंगे।
पतित उघारनि सब जग तारनि नव उज्ज्वल अंगे।
शिव शिर मालति माल सरिस वर तरल तर तरंगे।
‘हरीचन्द’ जन उधरनि पाप-भोग-भंगे।

----गन्गा दशहरा पर गन्गा स्नान करने से दशों प्रकार के कायिक मानसिक वाचिक पाप नष्ट होते हैं इसीलिये इसे गंगा दशहरा कहाजाता है।
- कायिक पाप()-- बिना पूछे किसी की वस्तु लेना , शास्त्र वर्जित हिंसा, पर स्त्री गमन
-वाचिक पाप()--कटु बचन बोलना, झूठ बोलना,परनिंदा वअसत्य परदोषारोपण एवं निष्प्रयोजन बातें
-मनसा पाप ()--दूसरों पर अन्याय करने का विचार, अनिष्ट चिंतन, नास्तिक बुद्धि