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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

रविवार, 20 जून 2010

गंगा दशहरा पर.....

गन्गोत्री ग्लशिअर नीचे खिसकता हुआ ----->
स्वर्ग से गंगावतरण का दृश्य ---->

सदा
नीरा माँ गंगा भारतवर्ष की जीवन दायिनी, जन-जीवन है अतः माँ रूप में सर्वत्र पूजी व जानी गयी । यद्यपि आज हमारे अपने ही कृतित्वों से वह क्षीणकाय व प्रदूषित होती जारही है परन्तु फिर भी जन जन की आस्था कम नहीं हुई है । अच्छा होगा यदि हम आस्था के साथ साथ गंगा को प्रदूषण रहित करने में भी योगदान दें । कहीं एसा हो सरस्वती की भांति सिर्फ आस्था ही रह जाय गंगा विलुप्त होजाय
तुलसी दास जी ने -कवितावली’ में गंगा को विष्णुपदी, त्रिपथगामिनी और पापनाशिनी आदि कहा गया है-
जिनको पुनीत वारि धारे सिर पे मुरारि।
त्रिपथगामिनी जसु वेद कहैं गाइ कै।।

गन्गा जी के दर्शन के लिए देवांगनाएँ झगड़ती हैं, देवराज इन्द्र विमान सजाते हैं, ब्रह्मा पूजन की सामग्री जुटाते हैं क्योंकि गंगा दर्शन से समस्त पाप नष्ट होजाते हैं और उसका विष्णु लोक में जाना निश्चित हो जाता है-
देवनदी कहँ जो जन जान किए मनसा कहुँ कोटि उधारे।
देखि चले झगरैं सुरनारि, सुरेस बनाइ विमान सवाँरे।

पूजा को साजु विरंचि रचैं तुलसी जे महातम जानि तिहारे।

ओक की लोक परी हरिलोक विलोकत गंग!तरंग तिहारे।।
(कवितावली-उत्तरकाण्ड 145)

---वास्तव मे सर्वव्यापी परमब्रह्म परमात्मा जो ब्रह्मा, शिव और मुनिजनों का स्वामी है, जो संसार की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय का कारण है, वही गंगा रूप में जल रूप हो गया है-
ब्रह्म जो व्यापक वेद कहैं, गमनाहिं गिरा गुन-ग्यान-गुनी को।
जो करता, भरता, हरता, सुर साहेबु, साहेबु दीन दुखी को।
सोइ भयो द्रव रूप सही, जो है नाथ विरंचि महेस मुनी को।
मानि प्रतीति सदा तुलसी, जगु काहे न सेवत देव धुनी को।।
(कवितावली-उत्तरकाण्ड 146)

और -----
जै जै विष्णु-पदी गंगे।
पतित उघारनि सब जग तारनि नव उज्ज्वल अंगे।
शिव शिर मालति माल सरिस वर तरल तर तरंगे।
‘हरीचन्द’ जन उधरनि पाप-भोग-भंगे।

----गन्गा दशहरा पर गन्गा स्नान करने से दशों प्रकार के कायिक मानसिक वाचिक पाप नष्ट होते हैं इसीलिये इसे गंगा दशहरा कहाजाता है।
- कायिक पाप()-- बिना पूछे किसी की वस्तु लेना , शास्त्र वर्जित हिंसा, पर स्त्री गमन
-वाचिक पाप()--कटु बचन बोलना, झूठ बोलना,परनिंदा वअसत्य परदोषारोपण एवं निष्प्रयोजन बातें
-मनसा पाप ()--दूसरों पर अन्याय करने का विचार, अनिष्ट चिंतन, नास्तिक बुद्धि





3 टिप्‍पणियां:

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

हर गंगे हर हर गंगे.
...सुंदर पोस्ट.

sandhyagupta ने कहा…

कहीं एसा न हो सरस्वती की भांति सिर्फ आस्था ही रह जाय गंगा विलुप्त हो जाय ।

Agar abhi savdhan na hue to shayad yahi ho.sarthak post.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

अच्छी जानकारी...हर-हर गंगे माँ.


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'पाखी की दुनिया' में इस बार 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' !