....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
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लिलिथ व सर्प |
ईस्ट इज़ ईस्ट एंड वेस्ट इज़ वेस्ट, ......सही ही है .....अब देखिये कितना अंतर है विचारों, अभिव्यक्ति, व्यवहार में | जहां पश्चिम में वस्तुओं को
ऋणात्मकता भाव से अधिक देखा जाता है वहीं पूर्व में, भारत में
गुणात्मकता भाव से.....
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एडम्स व ईव व लिलिथ शैतान सर्प रूप में |
उदाहरण के स्वरुप हम एक नारी-देवी पात्र को लेते हैं ....एक
पश्चिमी पात्र है .लिलिथ ..जो एक सर्प के साथ चित्रित की जाती है इसे विद्वान् लोग
भारतीय काली के समकक्ष कहते हैं |
लिलिथ वह है जो शायद सांवली थी, ईव की सौतन, शायद ईव से पहले आदम या एडम की पत्नी, जिसने ईव को, अपने दुष्ट साथी सर्प के द्वारा बहला फुसलाकर ज्ञान का फल खिलाया था एवं ईव को बहला कर आदम को भी खिलवाया था और दोनों को स्वर्ग से निष्कासित करवा दिया |
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कालरात्रि |
लिलिथ पश्चिमी साहित्य में बच्चों को नष्ट करने वाली, खाजाने वाली, महिलाओं को भटकाने वाली, दुष्ट महिला पात्र है , शैतान की कृति ; व
सर्प स्वयं शैतान का रूप | आगे यही अत्यंत भटकाने वाली , कामुक,सौन्दर्य से पुरुषों को लुभाने भट्काने वाली स्त्री ..जिससे ..एसी कुलटा, फ़्लर्ट आदि स्त्रियां..लोलिता ...लोनिटा ...लैला आदि नामधारी हुई जो सदैव निगेटिव भाव में ही मानी जाती है |
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शिव व काली -रौद्र रूप |
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काली व शिव बाल रूप में |
दूसरी और उसका समकक्ष है
भारतीय काली या ललिता, ललिता देवी ....जो सदा गुणात्मक भाव में ही कही, देखी, सुनी व समझी जाती है क्योंकि वह स्त्री-पात्र है और भारत में जो सदैव ही आदरणीय है , कभी भी बुराई में लिप्त नहीं | यद्यपि भारत में अन्य दुष्ट स्त्री पात्र डाकिनी, शाकिनी, डायन , पिशाचिनी आदि वर्णित हैं परन्तु महत्वहीन, वे पुरुषों को, स्त्रियों को सबको परेशान तो कर सकती हैं परन्तु बच्चों को नहीं |
सर्प भी भारतीय भाव में कभी दुष्ट नहीं है...सबसे दुष्ट सर्प कालिय नाग, तक्षक भी आदरणीय हैं, देव रूप हैं ....मानव को भटकाने वाले शैतान नहीं | शेषनाग आदि तो स्वयं देव स्वरुप ही हैं | तक्षक द्वारा स्वयं लकडी बनकर राह में गिर जाने पर, परीक्षित को न मरने देने की निश्चिंतता देने वाले चिकित्सक धन्वन्तरि द्वारा अपना हस्त-दंड बना कर फन रूपी मूठ को पीछे की ओर लगा लेने पर, तक्षक ने उसको पीठ पर डस कर राजा परीक्षित की मृत्यु निश्चित की ताकि ऋषि का श्राप सत्य हो | चिकित्सक धन्वन्तरि द्वारा अपना हस्त-दंड बनाने के कारण ही ...
.चिकित्सा जगत का मूल चिन्ह -'लोगो'- दंड पर लिपटा हुआ सर्प हुआ | जो मानव -कल्याण का प्रतीक है ।
अब
काली को लीजिये | या उसके अन्य विचित्र रूप
कालरात्रि को देखिये | अत्यंत भयंकर रूप होते हुए भी दुष्टों के लिए दलनकारी हैं, स्वयं दुष्ट नहीं | काली तो प्रसिद्द दुष्ट संहारिणी देवी है जिन्हें दुर्गा-पार्वती-आदिमाता -आदिशक्ति का ही प्रतिरूप माना जाता है, आदरणीय | जो कभी भी अच्छे स्त्री-पुरुषों को तंग या नष्ट नहीं करती | जो भयानक क्रोध में होते हुए भी पति शिव( कल्याणकारी ) के शरीर पर पैर पड़ते ही शांत होजाती हैं या शिव के बाल रूप में आकर रोने पर तुरंत शांत होकर माँ समान बन जाती हैं | अर्थार्थ है
स्वयं कष्ट सहकर भी मानव-कल्याण के कार्य । तभी वे देवी हैं ।
ललिता देवी तो सौम्यता की देवी है | आदि-माता सती के ह्रदय से निर्मित, सर्व-पूज्य, सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति, जिनसे लालित्य शब्द बनता है | और
ललिता .....श्री कृष्ण- राधा की सर्व-प्रिय सखी जो प्रेम-भक्ति की प्रतिमूर्ति है, जिसने कभी भी अपने प्रेम को राधा से बांटना नहीं चाहा, कृष्ण को पाना नहीं चाहा | वे आदर्श-प्रेम की सम्पूर्ण-भूता हैं ।
यही है अंतर लिलिथ व ललिता -काली में, पाश्चात्य व भारतीय भावों में |
-----चित्र गूगल साभार .....