ब्लॉग आर्काइव
- ► 2013 (137)
- ► 2012 (183)
- ▼ 2011 (176)
- ► 2010 (176)
- ► 2009 (191)
डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
रविवार, 31 जुलाई 2011
चोरी और सीना जोरी .....ड़ा श्याम गुप्त....
....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
क्या इसे ही कहते हैं ...चोरी और सीना जोरी ....देखिये और पढ़िए खुशवंत सिंह का यह वक्तव्य......असेम्बली कांड में भगत सिंह आदि के विरुद्ध गवाही देकर देश व भारतीयता के विरुद्ध व अंग्रेजों की सहायता करने वाले देश-द्रोही शोभा सिंह (खुशवंत सिंह के पिता ) की ....देश द्रोहिता को सच सिर्फ सच ....के परदे में छिपाकर अपराध से बचकर निकलना ......ऐसे देशद्रोही परिवार को क्यों भारत सरकार इतना प्रश्रय देरही है...क्यों ये पत्रिकाएं महत्त्व देते हैं......ऐसे परिवारों के न जाने कितने लोग आजसेक्यूलरों, पत्रकारों, साहित्यकारों व नेताओं के रूप में छुपे बैठे हैं??????
शनिवार, 30 जुलाई 2011
राज हठ व लोकपाल बिल....
....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
तीन प्रकार की हठ प्रसिद्ध हैं-----राज हठ , त्रिया हठ, हम्मीर हठ ..... कैकेयी , शूर्पणखा व सीता की त्रिया हठ व रावण की राज हठ --त्रेता के युद्ध का कारण बनी ; कंस, दुर्योधन की राज हठ व द्रौपदी की त्रिया हठ महाभारत का -----हम्मीर हठ मूलतया व्यक्तिगत हठ है जिसमें सत्य के आग्रह पर दृढ रहने में व्यक्ति स्वयं को भी न्योछावर करने को तैयार रहता है |
परन्तु यदि सोचा जाय कि यदि इन तीनों हठ में आपस में ही टकराव व सहयोग हो तो क्या हो सकता है .... आज लोकपाल बिल के विषय पर ...केन्द्रीय सरकार की राज हठ धर्मिता सभी को ज्ञात होरही है जिसके समर्थन में 'सोनिया गांधी' की त्रिया हठ भी शामिल है .....अब इस सम्मिलित दो हठों के सम्मुख है ...बावा राम देव व अन्ना हजारे की हमीर हठ .....अब देखें क्या हश्र होता है ...हम्मीर हठ का....लोकपाल बिल का...लोकतंत्र का...भ्रष्टाचार का...भ्रष्टाचारियों का व बेचारी निरीह जनता का जो भ्रष्टाचार से मुक्त होने का सपना सजाये बैठी है.....
तीन प्रकार की हठ प्रसिद्ध हैं-----राज हठ , त्रिया हठ, हम्मीर हठ ..... कैकेयी , शूर्पणखा व सीता की त्रिया हठ व रावण की राज हठ --त्रेता के युद्ध का कारण बनी ; कंस, दुर्योधन की राज हठ व द्रौपदी की त्रिया हठ महाभारत का -----हम्मीर हठ मूलतया व्यक्तिगत हठ है जिसमें सत्य के आग्रह पर दृढ रहने में व्यक्ति स्वयं को भी न्योछावर करने को तैयार रहता है |
परन्तु यदि सोचा जाय कि यदि इन तीनों हठ में आपस में ही टकराव व सहयोग हो तो क्या हो सकता है .... आज लोकपाल बिल के विषय पर ...केन्द्रीय सरकार की राज हठ धर्मिता सभी को ज्ञात होरही है जिसके समर्थन में 'सोनिया गांधी' की त्रिया हठ भी शामिल है .....अब इस सम्मिलित दो हठों के सम्मुख है ...बावा राम देव व अन्ना हजारे की हमीर हठ .....अब देखें क्या हश्र होता है ...हम्मीर हठ का....लोकपाल बिल का...लोकतंत्र का...भ्रष्टाचार का...भ्रष्टाचारियों का व बेचारी निरीह जनता का जो भ्रष्टाचार से मुक्त होने का सपना सजाये बैठी है.....
गुरुवार, 28 जुलाई 2011
बुधवार, 27 जुलाई 2011
दो पल--गीत ..ड़ा श्याम गुप्त ...
.. ..कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
राह में दो पल साथ तुम्हारे बीते उनको ढूढ रहा हूँ |
पल में सारा जीवन जीकर फिर वो जीवन ढूंढ रहा हूँ |
उन दो पल के साथ ने मेरा सारा जीवन बदल दिया था |
नाम पता कुछ पास नहीं पर हर पल तुमको ढूंढ रहा हूँ |
तेरी चपल सुहानी बातें मेरे मन की रीति बन गयीं |
तेरे सुमधुर स्वर की सरगम, जीवन का संगीत बन गयीं |
तुम दो पल जो साथ चल लिए,जीवन की इस कठिन डगर में
मूक साक्षी बनीं जो राहें , उन राहों को ढूंढ रहा हूँ |
पल दो पल में जाने कितनी जीवन-जग की बात होगई |
हम तो, चुप चुप ही बैठे थे, बात बात में बात होगई |
कैसे पहचानूंगा तुमको मुलाक़ात यदि कभी होगई |
तिरछी चितवन और तेरा मुस्काता आनन् ढूंढ रहा हूँ |
मेरे गीतों को सुनकर , तेरा वो वंदन ढूंढ रहा हूँ |
चलते चलते तेरा वो प्यारा अभिनन्दन ढूंढ रहा हूँ |
गुरुवार, 21 जुलाई 2011
श्याम नीति दोहावली........ड़ा श्याम गुप्त
....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
त्रिभुवन गुरु और सर्व गुरु, जो प्रत्यक्ष प्रमाण,
जन्म मरण से मुक्ति, दे ईश्वर करूँ प्रणाम
पूर्ण चन्द्र सदृश्य है, गुरु की कृपा महान ,
मन वांछित फल पाइए,परमानन्द महान
सदाचार स्थापना, शास्त्र अर्थ समझाय,
आप करे सद आचरण, सो आचार्य कहे
जब तक मन स्थिर नहीं, मन नहीं शास्त्र विचार,
गुरु की कृपा न प्राप्त हो, मिले न तत्व विचार
सभी तपस्या पूर्ण हों, यदि संतुष्ट प्रमाण,
मात पिता गुरु का करें, श्याम सदा सम्मान
मनसा वाचा कर्मणा, कार्य करें जो कोय,
मातु पिता गुरु की सदा सुसहमति से होय
शत आचार्य समान है, श्याम' पिता का मान,
नित प्रति वंदन कीजिये,मिले धर्म संज्ञान
माता एक महान है, सहस पिता का मान,
पद बंदन नित कीजिये, माता गुरू महान
शत शत वर्षों में नहीं, संभव निष्कृति मान ,
करते जो संतान हित, मात पिता वलिदान
दिखा गए सन्मार्ग जो, माता पिता महान ,
उचित मार्ग पर हम चलें, सदा मिले सम्मान
विद्या दे और जन्म दे,और संस्कार कराय,
अन्न देय निर्भर करे, पांच पिता कहलायं
राजा, गुरु और मित्र की पत्नी रखिये मान,
पत्नी माता, स्वमाता, पांचो माता मान
सोमवार, 18 जुलाई 2011
मेकाले का स्वप्न अब भी ढल रहा है....हम कब समझेंगे ....ड़ा श्याम गुप्त ...
....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
पिज्जा हट, केप्यूचिनो -काफी, विदेशी डिशों से सजे -- हाइपर सिटी , फेन-माल... माल संस्कृति का प्रचार..... जस्ट डांस, डांस इंडिया डांस, डांस-डांस , कौन बनेगा करोडपति.......आदि से नग्नता व धन लोलुपता का बाज़ार...... नंगे पन के टी वी सीरियल,....बदन- दिखाती हुईं तारिकाएं...... व नंगे होते हुए हीरो,....... नग्नता से भरपूर फ़िल्में ..... हेरी-पोटर के मूर्खतापूर्ण ..उपन्यास व चल-चित्र ....... महिला-उत्थान का नकली चेहरा....महिलाओं के सभी क्षेत्रों में दिन व रात रात भर कार्य-संस्कृति व ..उसकी आड में वैश्यावृत्ति का फैलता हुआ ख़ूबसूरत धंधा .... ब्रांडेड कमीज़-पेंट व दैनिक उपयोग के सामान की भोगी संस्कृति ..... तरह तरह के कारों के माडलों की भारत में उपलब्धिता...... विदेशी कंपनियों द्वारा स्व-हित में खूब-मोटी मोटी पगार...... फिर महंगे होटलों में खाना रहना, व विदेशी वस्तुओं के उपयोग का प्रलोभन..... आसानी से मिलने वाले क़र्ज़.......सस्ती विदेश यात्रा के आफर.......... चमचमाते हुए हाई-टेक आवासों के विज्ञापन..... महंगी व विदेशी होती शिक्षा .... भारतीय संस्कृति व रीति-रिवाजों को गाली देता भारतीय युवक......भारतीय व -पुरातन सब पिछडा है , पुराण पंथी है, आउट डेटेड है..कहता हुआ विदेशी कल्चर में ढला नव-युवा ....मारधाड वाले अंग्रेज़ी पिक्चरों , वीडियो- गेम्स के पीछे बिगडते हुए बच्चे .... अर्ध नग्नता के कपडे पहने ..तेजी से माल, शापिंग सेंटरों, सड़कों, बाजारों, आफिसों में मोबाइल पर लगातार बात करती लडकियां .......
ये सब उसी निम्नांकित पुराने उद्देश्य -------
की पूर्ति हित- के नवीन हथकंडे हैं...... हम कब समझेंगे...?????????
पिज्जा हट, केप्यूचिनो -काफी, विदेशी डिशों से सजे -- हाइपर सिटी , फेन-माल... माल संस्कृति का प्रचार..... जस्ट डांस, डांस इंडिया डांस, डांस-डांस , कौन बनेगा करोडपति.......आदि से नग्नता व धन लोलुपता का बाज़ार...... नंगे पन के टी वी सीरियल,....बदन- दिखाती हुईं तारिकाएं...... व नंगे होते हुए हीरो,....... नग्नता से भरपूर फ़िल्में ..... हेरी-पोटर के मूर्खतापूर्ण ..उपन्यास व चल-चित्र ....... महिला-उत्थान का नकली चेहरा....महिलाओं के सभी क्षेत्रों में दिन व रात रात भर कार्य-संस्कृति व ..उसकी आड में वैश्यावृत्ति का फैलता हुआ ख़ूबसूरत धंधा .... ब्रांडेड कमीज़-पेंट व दैनिक उपयोग के सामान की भोगी संस्कृति ..... तरह तरह के कारों के माडलों की भारत में उपलब्धिता...... विदेशी कंपनियों द्वारा स्व-हित में खूब-मोटी मोटी पगार...... फिर महंगे होटलों में खाना रहना, व विदेशी वस्तुओं के उपयोग का प्रलोभन..... आसानी से मिलने वाले क़र्ज़.......सस्ती विदेश यात्रा के आफर.......... चमचमाते हुए हाई-टेक आवासों के विज्ञापन..... महंगी व विदेशी होती शिक्षा .... भारतीय संस्कृति व रीति-रिवाजों को गाली देता भारतीय युवक......भारतीय व -पुरातन सब पिछडा है , पुराण पंथी है, आउट डेटेड है..कहता हुआ विदेशी कल्चर में ढला नव-युवा ....मारधाड वाले अंग्रेज़ी पिक्चरों , वीडियो- गेम्स के पीछे बिगडते हुए बच्चे .... अर्ध नग्नता के कपडे पहने ..तेजी से माल, शापिंग सेंटरों, सड़कों, बाजारों, आफिसों में मोबाइल पर लगातार बात करती लडकियां .......
ये सब उसी निम्नांकित पुराने उद्देश्य -------
की पूर्ति हित- के नवीन हथकंडे हैं...... हम कब समझेंगे...?????????
रविवार, 10 जुलाई 2011
बदरिया घिर घिर आये......वर्षा गीत....ड़ा श्याम गुप्त.....
....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
आई सावन की बहार,'
बदरिया घिर घिर आये |
गूजें कजरी और मल्हार,
बदरिया घिर घिर आये |
रिमझिम रिमझिम पड़त फुहारें ,
मुरिला पपीहा पीउ पुकारें |
चतुर टिटहरी निशि रस घोले,
चकवा-चकवी चाँद निहारें |
आये सजना नाहिं हमार,
बदरिया घिर घिर आये |
आई सावन की फुहार ,
बदरिया घिर घिर आये ||
घनन घनन घन जिय डरपाए,
झनन झनन झन जल बरसाए |
प्यासी विरहन बिरहा गाये,
पावस तन मन को तरसाए |
दहके पावक बनी बयार ,
बदरिया घिर घिर आये |
गूंजें कजरी और मल्हार,
बदरिया घिर घिर आये ||
पिया गए परदेश न आये,,
बेरी चातक टेर लगाए |
कागा बैठ मुंडेर न बोले,
श्यामा शुभ संदेश न लाये |
री सखि ! कैसे पायल झनके .
घुँघरू छनके, कंगना खनके |
सखि ! कैसे करूँ श्रृंगार ...
बदरिया घिर घिर आये |
आये सजना नाहिं हमार ,
बदरिया घिर घिर आये ||
आई सावन की बहार,'
बदरिया घिर घिर आये |
गूजें कजरी और मल्हार,
बदरिया घिर घिर आये |
रिमझिम रिमझिम पड़त फुहारें ,
मुरिला पपीहा पीउ पुकारें |
चतुर टिटहरी निशि रस घोले,
चकवा-चकवी चाँद निहारें |
आये सजना नाहिं हमार,
बदरिया घिर घिर आये |
आई सावन की फुहार ,
बदरिया घिर घिर आये ||
घनन घनन घन जिय डरपाए,
झनन झनन झन जल बरसाए |
प्यासी विरहन बिरहा गाये,
पावस तन मन को तरसाए |
दहके पावक बनी बयार ,
बदरिया घिर घिर आये |
गूंजें कजरी और मल्हार,
बदरिया घिर घिर आये ||
पिया गए परदेश न आये,,
बेरी चातक टेर लगाए |
कागा बैठ मुंडेर न बोले,
श्यामा शुभ संदेश न लाये |
री सखि ! कैसे पायल झनके .
घुँघरू छनके, कंगना खनके |
सखि ! कैसे करूँ श्रृंगार ...
बदरिया घिर घिर आये |
आये सजना नाहिं हमार ,
बदरिया घिर घिर आये ||
शुक्रवार, 8 जुलाई 2011
कृष्ण लीला --१०--पूतना .......
....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ....
कुटिल आसुरी दुष्ट-भाव मय नारी प्रतिकृति ।
बनी पूतना रूप, घूमती ग्राम नगर नित ।
लीलाधर की लीला, जो पहुंची कान्हा घर ।
लिये रूपसी भाव, वेष वह ममता का धर ।
आंचल रूपी द्वेष-द्वन्द्व का भाव वह जटिल ।
चूस लिया कान्हा ने, सारा भाव वह कुटिल ॥
बुधवार, 6 जुलाई 2011
गुड डॉक्टर या पोपुलर डॉक्टर ... लघु कथा...ड़ा श्याम गुप्त ...
....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
‘श्री ! यार, कोई अच्छा पीडियाट्रीशियन डाक्टर बताओ |’
फोन पर दीपक को अपने एक मित्र
श्रीनिवास से बात करते हुए सुनकर मैंने पूछा –‘क्या डाक्टर
भी अच्छे–बुरे होते हैं? अरे डाक्टर तो डाक्टर होते हैं, मैंने कहा |
तो फिर सब पोपुलर डाक्टर के पास ही क्यों जाना
चाहते हैं ? दीपक कहने लगा, ‘जब हम पैसा खर्च कर सकते हैं तो
पोपुलर डाक्टर व बडे हास्पीटल क्यों न जायं |
क्या गारंटी है कि पोपुलर डाक्टर अच्छा ही होगा ? मैंने
प्रश्न किया |
‘क्या मतलब, जो अच्छा होगा वही तो पोपुलर होगा; बड़ी
व पोपुलर संस्थाएं ही तो सेवाओं में अधिक ध्यान देती हैं |
पोपूलारिटी ही तो अच्छे विशेषज्ञ होने की निशानी है|’
मैंने हंसकर कहा, "डाक्टर कोई जड़ संस्था थोड़े ही है, हर
एक डाक्टर स्वयं में एक संस्था होता है |" मैं सोचने लगा, क्या
वास्तव में पोपुलारिटी अच्छे डाक्टर होने की गारंटी है| बचपन में
हम किसी भी नज़दीकी डाक्टर जो कालोनी में होता था उसी के
पास चले जाते थे और ठीक भी होजाते थे| यदि आवश्यक होता तो
डाक्टर स्वयं ही अस्पताल या अन्य विशेषज्ञ के यहाँ भेज देते थे |
सभी चिकित्सक समाज, मोहल्ले, नगर के पोपुलर शख्शियत हुआ
करते थे, जन जीवन से जुड़े | अच्छे डाक्टर व विशेषज्ञ कभी
विज्ञापन या पोपूलेरिटी के फेर में नहीं पड़ते थे | आज भौतिकता
व महत्वाकांक्षा व धन की महत्ता से उत्पन्न अनास्था व अश्रद्धा के
युग में विज्ञापन आवश्यक व पॉपुलेरिटी महत्वपूर्ण होगई है | जब
भगवानों के, मंदिरों के विज्ञापन होने लगे हैं और देवस्थानों के
प्रसाद भी डाक से मिलने लगे हैं तो भगवान नंबर दो –चिकित्सक
भी बचे कैसे रह सकते हैं |
आज विज्ञापन, इंटरनेट पर सन्दर्भ लिखवाकर, राजनैतिक
संपर्कों का लाभ उठाकर बडे बड़े नर्सिंग होम खोलकर अच्छी अच्छी
सुविधाएँ टीवी, टेलीफोन, फ्रिज, एसी युक्त शानदार ५ स्टार की
सुविधाओं वाले रूम्स देकर (जिनका उपचार व चिकित्सा-सुविधाओं-
विशेषताओं से कोई खास लेना-देना नहीं है) पोप्युलर होजाना एक
आम बात होगई है | तमाम हेल्थ-साइट्स, वाणिज्य-विपणन
दृष्टिकोण उग आये हैं | पूरा धंधा होगया है| कमीशन पर दुनिया
के किसी भी भाग में, शहर में चिकित्सा करा लीजिये | रोगी
“उपभोक्ता” और चिकित्सक व चिकित्सा प्रदायक ”सेवा दाता”
होगया है | इलाज़ महंगे से महँगा व सुविधापूर्ण हो......खर्चे की
चिंता नहीं | प्रत्येक संस्थान में चिकित्सा भत्ता, खर्चा, रीइम्बर्समेंट,
चिकित्सा बीमा आदि सुविधाएँ व्यक्ति को अधिकाधिक खर्च करने
व अनावश्यक रूप से बड़े बड़े से अस्पताल, चिकित्सक पर इलाज़
कराने को लालायित करती हैं | अब इलाज़ भी स्टेटस-सिम्बल
होगया है |
मुझे याद आता है कि मेरे एक चिकित्सक मित्र जो
सरकारी सेवा में थे, बताया करते थे कि उनके कुछ अन्य साथी
घरपर अनधिकृत प्राइवेट-प्रेक्टिस किया करते थे और उनपर तमाम
रोगी जाया भी करते थे, वे पोपुलर भी थे; जबकि उनकी योग्यता
व अनुभव सामान्य एवं अस्पताल व आफिस में रोगी के साथ
व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं होता था| जब यह बात वे अपने
चिकित्सा अधीक्षक इंचार्ज ड़ा शर्मा को बताते तो डॉ शर्मा कहा
करते थे, डॉक्टर ! डोंट वरी, यू आर ए गुड डाक्टर, यूं आर गेटिंग
योर फुल एंड सफीशिएंट सेलेरी, गेटिंग आल था प्रोमोशन्स इन
टाइम, योर पेशेंट्स प्रेज यू, दे हेव नो कम्प्लेंट्स | इस दिस नोट
योर पापूलेरिटी एंड इनकम ? (डाक्टर चिंता क्या, तुम्हें अच्छी
पगार मिल रही है, सारे प्रोमोशन होते हैं, रोगी आपकी प्रशंसा ही
करते हैं, कोई शिकायत नहीं करता, यही आपकी पोपूलेरिटी व
कमाई हुई पूंजी है) अच्छे चिकित्सक या विशेषज्ञ न रोगियों के, न
प्रभावशाली तीमारदारों के कहे पर चलते हैं न समझौता करते हैं, न
रोगी के व पैसे के पीछे भागते हैं | वे प्राय: तथाकथित पापूलर नहीं
होते | पोप्यूलेरिटी बहुत से हथकंडों से आती है व बहुत से समझौते
भी करने पड़ते हैं | “यू वांट टू बी ए पोपुलर डाक्टर और गुड
डाक्टर”; आप अच्छे डाक्टर बनाना चाहते हैं या पापूलर डाक्टर |
लेबल:
“उपभोक्ता”,
गुड,
पोपुलर,
विज्ञापन,
सेवा दाता”
मंगलवार, 5 जुलाई 2011
श्याम दोहा एकादश .....डा श्याम गुप्त....
....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
क्यों घबराये होरही , भ्रष्टाचार की जांच |
भ्रष्टाचारी बन्धु सब, तुझे न आये आंच |1
मेल परस्पर घटि गयो, वाणिज मन हरषाय |
मेल-मिलाप करायं हम, पानी -दूध मिलाय |2
ज्ञान हेतु अब ना पढ़ें , पढ़ें नौकरी हेतु |
लक्ष्य चाकरी होगया, लक्ष्मी बनी है सेतु |3
धन साधन की रेल में,भीड़ खचाखच जाय |
धक्का -मुक्की धन करै, ज्ञान नहीं चढ़ पाय |4
चाहे पद-पूजन करो, या साष्टांग प्रणाम |
काम तभी बन पायगा, चढे चढ़ावा दाम |5
जन तो तंत्र में फंस गया,तंत्र हुआ परतंत्र |
चोर- लुटेरे लूटते, घूमें बने स्वतंत्र | 6
राजनीति की नीति में,कैसा अनुपम खेल |
ऊपर से दल विरोधी, अन्दर अन्दर मेल | 7
ऊपर से दल विरोधी, अन्दर अन्दर मेल | 7
आरक्षण की आड़ में, खुद का रक्षण होय |
नालायक सुत-पौत्र सब, यहि विधि लायक होय | 8
बाढ़ आय सूखा पड़े , हो खूनी संघर्ष |
इक दूजे को दोष दे , नेताजी मन हर्ष | 9
भाँति भाँति के रूप धरि, खड़े मचाएं शोर |
किसको जन अच्छा कहे, किसे कहें हम चोर | १०
नेता वाणी से करें, परहित पर उपकार |
निजी स्वार्थ में होरहा, जन धन का व्यवहार || 11
रविवार, 3 जुलाई 2011
श्याम मधुशाला -----
.
श्याम मधुशाला
शराव पीने से बड़ी मस्ती सी छाती है ,
सारी दुनिया रंगीन नज़र आती है ।
बड़े फख्र से कहते हैं वो ,जो पीता ही नहीं ,
जीना क्या जाने ,जिंदगी वो जीता ही नहीं ।।
पर जब घूँट से पेट में जाकर ,
सुरा रक्त में लहराती ।
तन के रोम-रोम पर जब ,
भरपूर असर है दिखलाती ।
होजाता है मस्त स्वयं में ,
तब मदिरा पीने वाला ।
चढ़ता है उस पर खुमार ,
जब गले में ढलती है हाला।
हमने ऐसे लोग भी देखे ,
कभी न देखी मधुशाला।
सुख से स्वस्थ जिंदगी जीते ,
कहाँ जिए पीने वाला।
क्या जीना पीने वाले का,
जग का है देखा भाला।
जीते जाएँ मर मर कर,
पीते जाएँ भर भर हाला।
घूँट में कडुवाहट भरती है,
सीने में उठती ज्वाला ।
पीने वाला क्यों पीता है,
समझ न सकी स्वयं हाला ।
पहली बार जो पीता है ,तो,
लगती है कडुवी हाला ।
संगी साथी जो हें शराबी ,
कहते स्वाद है मतवाला ।
देशी, ठर्रा और विदेशी,रम-
व्हिस्की, जिन का प्याला।
सुंदर-सुंदर सजी बोतलें ,
ललचाये पीने वाला।
स्वाद की क्षमता घट जाती है ,
मुख में स्वाद नहीं रहता ।
कडुवा हो या तेज कसैला ,
पता नहीं चलने वाला।
बस आदत सी पड़ जाती है ,
नहीं मिले उलझन होती।
बार बार,फ़िर फ़िर पीने को ,
मचले फ़िर पीने वाला।
पीते पीते पेट में अल्सर ,
फेल जिगर को कर डाला।
अंग अंग में रच बस जाए,
बदन खोखला कर डाला।
निर्णय क्षमता खो जाती है,
हाथ पाँव कम्पन करते।
भला ड्राइविंग कैसे होगी,
नस नस में बहती हाला।
दुर्घटना कर बेठे पीकर,
कैसे घर जाए पाला।
पत्नी सदा रही चिल्लाती ,
क्यों घर ले आए हाला।
बच्चे भी जो पीना सीखें ,
सोचो क्या होनेवाला, ।
गली गली में सब पहचानें ,
ये जाता पीने वाला।
जाम पे जाम शराबी पीता ,
साकी डालता जा हाला।
घर के कपड़े बर्तन गिरवी ,
रख आया हिम्मत वाला।
नौकर सेवक मालिक मुंशी ,
नर-नारी हों हम प्याला,
रिश्ते नाते टूट जायं सब,
मर्यादा को धो डाला।
पार्टी में तो बड़ी शान से ,
नांचें पी पी कर हाला ।
पति-पत्नी घर आकर लड़ते,
झगडा करवाती हाला।
झूम झूम कर चला शरावी ,
भरी गले तक है हाला ।
डगमग डगमग चला सड़क पर ,
दिखे न गड्डा या नाला ।
गिरा लड़खडाकर नाली में ,
कीचड ने मुंह भर डाला।
मेरा घर है कहाँ ,पूछता,
बोल न पाये मतवाला।
जेब में पैसे भरे टनाटन ,
तब देता साकी प्याला ।
पास नहीं अब फूटी कौडी ,
कैसे अब पाये हाला।
संगी साथी नहीं पूछते ,
क़र्ज़ नहीं देता लाला।
हाथ पाँव भी साथ न देते ,
हाला ने क्या कर डाला।
लस्सी दूध का सेवन करते ,
खस केसर खुशबू वाला।
भज़न कीर्तन में जो रमते ,
राम नाम की जपते माला।
पुरखे कहते कभी न करना ,
कोई नशा न चखना हाला।
बन मतवाला प्रभु चरणों का,
राम नाम का पीलो प्याला।
मन्दिर-मस्जिद सच्चाई पर,
चलने की हैं राह बताते।
और लड़ खडा कर नाली की ,
राह दिखाती मधुशाला।
मन ही मन हैं सोच रहे अब,
श्याम' क्या हमने कर डाला।
क्यों हमने चखली यह हाला ,
क्यों जा बैठे मधुशाला॥
शुक्रवार, 1 जुलाई 2011
प्राचीन भारत में शल्य चिकित्सा ...डाक्टर्स डे पर विशेष .....( डा श्याम गुप्त )
चित्र-१--प्राचीन भारतीय शल्य-यंत्र .... चित्र-२-शल्यक महर्षि सुश्रुत ..
प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली अपने समय में अपने समयानुसार अति उन्नत अवस्था में थी। भारतीय चिकित्सा के मूलतः तीन अनुशासन थे—
१. 1-काय चिकित्सा( मेडीसिन)—जिसके मुख्य प्रतिपादक रिषि- चरक ,अत्रि, हारीति व अग्निवेश आदि थे।
२.शल्य चिकित्सा-- मुख्य शल्यकथे- धन्वन्तरि, सुश्रुत, औपधेनव, पुषकलावति
३.स्त्री एवम बाल रोग- जिसके मुख्य रिषि कश्यप थे ।
डा ह्रिश्च बर्ग ( जर्मनी) का कथन है—“ The whole plastic surgery in Europe had taken its new flight when these cunning devices of Indian workers became known to us. he transplants of sensible skin flaps is also Indian method.” डा ह्वीलोट का कथन है-“ vaccination was known to a physician’ Dhanvantari”, who flourished before Hippocrates.”
इन से ज्ञात होती है, भारतीय चिकित्सा शास्त्र के स्वर्णिम काल की गाथा।
रोगी को शल्य-परामर्श के लिये उचित प्रकार से भेजा जाता था। एसे रोगियों से काय –चिकित्सक कहा करते थे—“ अत्र धन्वंतरिनाम अधिकारस्य क्रियाविधि “---अब शल्य चिकित्सक इस रोगी को अपने क्रियाविधि में ले ।
सुश्रुत के समय प्रयोग होने वाली शल्य –क्रिया विधियां------
१. ---आहार्य-- ठोस वस्तुओंको शरीर से निकालना( Extraction-foreign bodies).
२. ---भेद्य – काटकर निकालना ( Excising).
३. ----छेद्य – चीरना ( incising)
४. ---एश्य—शलाका डालना आदि ( Probing )
५. ----लेख्य—स्कार, टेटू आदि बनाना ( Scarifying )
६. ---सिव्य—सिलाई आदि करना (suturing)
७. ---वेध्य—छेदना आदि (puncturing etc)
८. ---विस्रवनिया---जलीय अप-पदार्थों को निकालना( Tapping body fluids)
-------शल्य क्रिया पूर्व कर्म ( प्री-आपरेटिव क्रिया )--- रात्रि को हलका खाना, पेट, मुख, मलद्वार की सफाई ईश-प्रार्थना, सुगन्धित पौधे, बत्तियां –नीम, कपूर. लोबान आदि जलाना ताकि कीटाणु की रोकथाम हो।
---शल्योपरान्त कर्म (पोस्ट आप्रेटिव क्रिया )—रोगी को छोडने से पूर्व ईश-प्रार्थना, पुल्टिस लगाकर घाव को पट्टी करना, प्रतिदिन नियमित रूप से पट्टी बदलना जब तक घाव भर न जाय, अधिक दर्द होने पर गुनुगुने घी में भीगा कपडा घाव पर रखा जाता था।
--- सुश्रुत के समय प्रयुक्त शल्य-क्रिया के यन्त्र व शस्त्र—(Instuments & Equppements)-
कुल १२५ औज़ारों का सुश्रुत ने वर्णन किया है---( देखिये चित्र-१,२,३, )
(अ)—यन्त्र—( अप्लायन्स)—१०५—स्वास्तिक(फ़ोर्सेप्स)-२४ प्रकार; सन्डसीज़( टोन्ग्स)-दो प्रकार; ताल यंत्र ( एकस्ट्रेक्सन फ़ोर्सेप्स)-दो प्रकार; नाडी यन्त्र-( केथेटर आदि)-२० प्रकार; शलाक्य(बूझी आदि)-३० प्रकार ; उपयन्त्र –मरहम पट्टी आदि का सामान;--कुल १०४ यन्त्र; १०५ वां यन्त्र शल्यक का हाथ।
(ब)—शस्त्र-( इन्सट्रूमेन्ट्स)—२०—चित्रानुसार.
इन्स्ट्रूमेन्ट्स सभी परिष्क्रत लोह ( स्टील ) के बने होते थे।, किनारे तेज, धार-युक्त होते थे, वे लकड़ी के बक्से में, अलग-अलग भाग बनाकर सुरक्षित रखे जाते थे ।
अनुशस्त्र—( सब्स्टीच्यूड शस्त्र)—बम्बू, क्रस्टल ग्लास, कोटरी, नेल, हेयर, उन्गली आदि भी घाव खोलने में प्रयुक्त करते थे ।
-- निश्चेतना ( एनास्थीसिया)—बेहोशी के लिये सम्मोहिनी नामक औषधियां व बेहोशी दूर करने के लिए संजीवनी नामक औषधियां प्रयोग की जाती थीं ।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)