....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
  
             
  
       ‘श्री ! यार, कोई अच्छा पीडियाट्रीशियन डाक्टर बताओ |’  
फोन पर दीपक को अपने एक मित्र   
     श्रीनिवास से बात करते हुए सुनकर मैंने पूछा –‘क्या डाक्टर  
भी अच्छे–बुरे होते हैं? अरे डाक्टर तो डाक्टर होते हैं, मैंने कहा |
         
         तो फिर सब पोपुलर डाक्टर के पास ही क्यों जाना 
चाहते हैं ? दीपक कहने लगा, ‘जब हम पैसा खर्च कर सकते हैं तो 
पोपुलर डाक्टर व बडे हास्पीटल क्यों न जायं |
          
        क्या गारंटी है कि पोपुलर डाक्टर अच्छा ही होगा ? मैंने 
प्रश्न किया |
          
        ‘क्या मतलब, जो अच्छा होगा वही तो पोपुलर होगा; बड़ी 
व पोपुलर संस्थाएं ही तो सेवाओं में अधिक ध्यान देती हैं | 
पोपूलारिटी ही तो अच्छे विशेषज्ञ  होने की निशानी है|’ 
          
        मैंने हंसकर कहा, "डाक्टर कोई जड़ संस्था थोड़े ही है, हर 
एक डाक्टर स्वयं में एक संस्था होता है |" मैं सोचने लगा, क्या 
वास्तव में पोपुलारिटी अच्छे डाक्टर होने की गारंटी  है| बचपन में 
हम किसी भी नज़दीकी डाक्टर जो कालोनी में होता था उसी के 
पास चले जाते थे और ठीक भी होजाते थे| यदि आवश्यक होता तो 
डाक्टर स्वयं ही अस्पताल या अन्य विशेषज्ञ के यहाँ भेज देते थे |  
सभी चिकित्सक समाज, मोहल्ले, नगर के पोपुलर शख्शियत हुआ 
करते थे, जन जीवन से जुड़े |  अच्छे डाक्टर व विशेषज्ञ कभी 
विज्ञापन या पोपूलेरिटी के फेर में नहीं पड़ते थे |  आज भौतिकता 
व महत्वाकांक्षा व धन की महत्ता से उत्पन्न अनास्था व अश्रद्धा के 
युग में विज्ञापन आवश्यक व पॉपुलेरिटी महत्वपूर्ण होगई है | जब 
भगवानों के, मंदिरों के विज्ञापन होने लगे हैं और देवस्थानों के 
प्रसाद भी डाक से मिलने लगे हैं तो  भगवान नंबर दो –चिकित्सक 
भी बचे कैसे रह सकते हैं |
             
        आज विज्ञापन, इंटरनेट पर सन्दर्भ लिखवाकर, राजनैतिक 
संपर्कों का लाभ उठाकर बडे बड़े नर्सिंग होम खोलकर अच्छी अच्छी 
सुविधाएँ टीवी, टेलीफोन, फ्रिज, एसी युक्त शानदार ५ स्टार की 
सुविधाओं वाले रूम्स देकर (जिनका उपचार व चिकित्सा-सुविधाओं-
विशेषताओं से कोई खास लेना-देना  नहीं है) पोप्युलर होजाना एक 
आम बात होगई है | तमाम हेल्थ-साइट्स, वाणिज्य-विपणन 
दृष्टिकोण  उग आये हैं | पूरा धंधा होगया है| कमीशन पर दुनिया 
के किसी भी भाग में, शहर में चिकित्सा करा लीजिये | रोगी 
“उपभोक्ता” और  चिकित्सक व चिकित्सा प्रदायक  ”सेवा दाता” 
होगया है | इलाज़ महंगे से महँगा व सुविधापूर्ण हो......खर्चे की 
चिंता नहीं | प्रत्येक संस्थान में चिकित्सा भत्ता, खर्चा, रीइम्बर्समेंट, 
चिकित्सा बीमा आदि सुविधाएँ व्यक्ति को अधिकाधिक खर्च करने 
व अनावश्यक रूप से बड़े बड़े से अस्पताल, चिकित्सक पर इलाज़ 
कराने को लालायित करती हैं | अब इलाज़ भी स्टेटस-सिम्बल 
होगया है |    
             
        मुझे याद आता है कि मेरे एक चिकित्सक मित्र जो 
सरकारी सेवा में थे, बताया करते थे कि उनके कुछ अन्य साथी 
घरपर अनधिकृत प्राइवेट-प्रेक्टिस किया करते थे और उनपर तमाम 
रोगी जाया भी करते थे, वे पोपुलर भी थे; जबकि उनकी योग्यता 
व अनुभव सामान्य एवं  अस्पताल व आफिस में रोगी के साथ 
व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं होता था|  जब यह बात वे अपने 
चिकित्सा अधीक्षक इंचार्ज ड़ा शर्मा को बताते तो डॉ शर्मा कहा 
करते थे, डॉक्टर ! डोंट वरी, यू आर ए गुड डाक्टर, यूं आर गेटिंग 
योर फुल एंड सफीशिएंट सेलेरी, गेटिंग आल था प्रोमोशन्स इन 
टाइम, योर पेशेंट्स प्रेज यू, दे हेव नो कम्प्लेंट्स | इस दिस नोट 
योर पापूलेरिटी एंड इनकम ?  (डाक्टर चिंता क्या, तुम्हें अच्छी 
पगार मिल रही है, सारे प्रोमोशन होते हैं, रोगी आपकी प्रशंसा ही 
करते हैं, कोई शिकायत नहीं करता, यही आपकी पोपूलेरिटी व 
कमाई हुई पूंजी  है) अच्छे चिकित्सक या विशेषज्ञ न रोगियों के, न 
प्रभावशाली तीमारदारों के कहे पर चलते हैं न समझौता करते हैं, न 
रोगी के व पैसे के पीछे भागते हैं | वे प्राय: तथाकथित पापूलर नहीं 
होते | पोप्यूलेरिटी बहुत से हथकंडों से आती है व बहुत से समझौते 
भी करने पड़ते हैं | “यू वांट टू बी ए पोपुलर डाक्टर और गुड 
डाक्टर”;  आप अच्छे डाक्टर बनाना चाहते हैं या पापूलर डाक्टर |