ब्लॉग आर्काइव

डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

मेरी फ़ोटो
Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 30 मार्च 2011

वेदों में शब्दों के अर्थार्थ....डा श्याम गुप्त....

                       ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
           प्रायः लोग व तथाकथित विद्वान वेदों के शब्दों का मूल अर्थ न जानते हुए अनर्थ मूलक अर्थ लगाते हुए उनमें वर्णित भावों को समझे बिना बुराई करने का प्रयत्न करते हैं , अभी हाल में यह प्रवृत्ति काफी देखी जारही है | वेद उच्चकोटि का साहित्य है अतः जिस प्रकार दर्शन व वैदिक विज्ञान, गायत्री ज्ञान के अनुसार मानव के पांच शरीर होते हैं( अन्नमय , प्रा्णमय, मनोमय,विग्यान मय व आनन्द मय )  वैसे ही वैदिक शब्दों के प्रायः  पांच अर्थ होते हैं -- यथा---  गौ शब्द का का अर्थ सिर्फ गौ नहीं अपितु....गाय , पृथ्वी, किरणें ,बुद्धि व इन्द्रियां होता है,जो  वैदिक मन्त्रों में प्रयुक्त होता है |  योनि शब्द का अर्थ सदैव स्त्री योनि लगाकर काम -मूलक अर्थ बताये जाते हैं ...योनि का अर्थ--- स्त्री जननांग, सृष्टि  का गर्भस्थल अंतरिक्ष, पृथ्वी का गर्भ स्थल समुद्र ,एवं प्रत्येक वस्तु-भाव का जन्म स्थल  या उत्पत्ति स्थल के रूप में वेदों में प्रयुक्त होता है | कुछ अन्य कुछ बताये जाने वाले  भ्रमात्मक शब्द-भावों के वेद आदि में वर्णित अर्थ इस प्रकार है---
शूद्र --- "शुचं अद्र्वति इति शूद्र |"...गीता   --- जो शोक के पीछे भागे वह शूद्र है |
          "गुणार्थमितिचेत "....मीमांसा(६/१/४८ ) ---अर्थात  योग्यता ही जाति का आधार है , अतः "अवैद्यत्वात भाव कर्मणि स्वात "( मीमांसा ६/१/३७ )--अर्थात विद्या का सामर्थ्य न होने से ही  शूद्र होता है |
तथा .."यदि वां  वेद निर्देशशाद्य शूद्राणाम प्रतीयेत " ..( मी -६/१/३३) ---शूद्र भी योग्यता प्रमाण देकर वैदिक मन्त्रों का अधिकारी हो सकता है |
लिंग -- वैशेषिक ४/१/१ के अनुसार...." तस्य कार्य लिंगम " अर्थात उस (ईश्वर या अन्य किसी ) का कार्य ( जगद रूप या कोइ भी कृत-कार्य )ही उसके  होने का लक्षण (प्रमाण ) है | अतः --लिंग का अर्थ सिर्फ पुरुष लिंग नहीं अपितु चिन्ह,प्रमाण, लक्षण व अनुमान भी है |

शनिवार, 26 मार्च 2011

एक प्रेरक वाक्य---- डा श्याम गुप्त....

                  ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


        कर्म  
      यदि आप चाहते हैं कि---
           मृत्यु  के उपरांत
   शीघ्र ही संसार आपको भूल न जाय----
      तो
  पढने योग्य श्रेष्ठ रचनाओं की सृष्टि करें ...      
        या
       वर्णन-योग्य श्रेष्ठ कर्म करें... 





शुक्रवार, 25 मार्च 2011

-मनन... डा श्याम गुप्त.......

                                                    ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

                        विजानाति-विजानाति-----मनन...

                 छान्दोग्य उपनिषद में कथन है---
""यदा वै मनुत, अथ विजानाति। नामत्वा विजानाति। मत्वैव विजानाति । मतिस त्येव विजिग्यासितव्येति ।मतिं भगवो विजिग्यासे इति॥""
          ---व्यक्ति जब मनन करता है तभी ( किसी वस्तु-भाव का) ग्यान होता है ; मनन किये विना नहीं जान सकता। अत: मनन को जानने की इच्छा करें कि भगवन, मैं मनन को जानना चाहता हूं ।
      ---किसी वस्तु की वास्तविकता व गहराई जानने हेतु उसमें डुबकी लगाना आवश्यक होता है। मनन क्या है यह भी ठीक प्रकार से जानना चाहिये।
      ----मनन --मानव का विशिष्ट गुण है इसीलिये वह मानव कहलाता है

मंगलवार, 22 मार्च 2011

दो अगीत ...डा श्याम गुप्त.....

                                     ...कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

      जल शक्ति 
आंसू में
अपार जल-शक्ति है;
इसीलिये,
क्रोध को भाप बनाकर 
रूठे को मनाने की
असीम शक्ति है | 

          भावनायें 
भावनाओं की गति चक्रीय है 
वे लौट लौट कर आती हैं,
फिर फिर आपके आस-पास  |
सदभावनाएँ ,
लौट कर आती हैं;
आपको आशाओं का प्रकाश दिखाती हैं |
दुर्भावनाएं भी लौट कर आती हैं ,
आपको हताशा, निराशा और-
आत्मग्लानि की राह पर लेजाती हैं ||

रविवार, 20 मार्च 2011

INTERMISSION......उन्हें अब हिन्दू धर्म की महिमा मान लेनी चाहिये....डा श्याम गुप्त...

                                                            ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
           --खुदा हाफिज़ , ॐ शांति , INTERMISSION......
                  अनवर जमाल साहब को अब हिन्दू धर्म की महिमा को मान लेना चाहिये । वे नेट से इसलिये छुट्टी ले रहे हैं की बच्चे मेथ्स में कम नंबर लाने लगे | वे पांच वक्त के नमाजी हैं, खुदा के इतने पास हैं कि लोगों को खुदा से बात कराने का दावा करते हैं व दावत देते रहते हैं | पर यदि खुदा अपने इतने सच्चे बन्दे के बच्चों को भी गणित में अच्छे नंबर नहीं दिला पाया  या पहले से ही व्यक्ति को चेताया  नहीं तो क्या फ़ायदा | इससे तो अच्छा हिन्दू  वैदिक धर्म है जो सभी को सिर्फ मानव को कर्म करने की आज्ञा देता है चाहे कोइ पूजा अर्चना करे या न करे, ईश्वर को माने या न माने, मन्दिर जाये या नजाये | न किसी का कोइ काम स्वयं करने का वादा/दावा करता है | कर्मण्येवाधिकारास्ते ..... ईशोपनिषद (यजुर्वेद ) का मूल मन्त्र इन  श्लोकों में  देखिये ...
    " अन्धतम प्रविशन्ति ये  अविध्यामुपासते | ततो भूय इव ते तमो य उ विद्याया रताः ||...इषो -९ 
अर्थात वे जो अविद्या ( भौतिकता, व्यवसायिक, व्यवहारिक, सांसारिक ज्ञान )में ही लगे रहते हैं महान अन्धकार में ( मुश्किलों , कठिनाइयों में ) पड़ते हैं ; परन्तु जो सिर्फ विद्या में ( अध्यात्म, धर्म, ज्ञान, ईश्वर , पूजा पाठ, परमार्थ आदि  ) में लगे रहते हैं; सांसारिक कर्म की चिंता नहीं करते, कमाते धमाते नहीं, घर गृहस्थी, बच्चों  की फ़िक्र नहीं करते;  वे और भी अधिक अन्धकार में गिरते हैं, मुश्किलों में पड़ते हैं  | अतः --- 
   "विध्यान्चाविध्यां च यस्तद वेदोभय सह | अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विध्ययामृतम्नुश्ते ||"...इषो -११ 
अर्थात मनुष्य को कर्म( अपना व्यवहारिक, सांसारिक,व्यवसायिक कर्म भाव ) व ज्ञान (ईश्वरीय भाव, दर्शन, अध्यात्म,धर्म, सदाचरण, परमार्थ  आदि ) को साथ साथ जानना, करना  व उपासना चाहिए | ताकि वह कर्म से मृत्यु को ( संसारी -सुख,संमृद्धि -शान्ति-सम्पन्नता,सफलता,   सहित ) पार करके ज्ञान से अमृत (शान्ति, आनंद, परमानंद , मोक्ष ) प्राप्त कर सके |

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

नासिक,पन्चवटी व गोदावरी का राम घाट.....डा श्याम गुप्त ..

                           क्या आप समझ रहे हैं की आपको  किसी सब्जी मण्डी का चित्र दिखाया जा रहा है ? जी नहीं यह सब्जी मण्डी नहीं अपितु आपकी पवित्र , प्रसिद्द नदी गोदावरी का उद्गम स्थल पर प्रसिद्द तीर्थ स्थल नासिक का रामघाट है , जो विश्व प्रसिद्द स्थल , हिन्दुओं के ही नहीं विश्व के पूज्य , आराध्य, जन जन मन में स्थित भगवान  श्री राम की कर्म स्थली व सीता हरण स्थल--पंचवटी भी कहलाता है | देखिये एक दम घाट पर ही नदी के किनारे आलू-प्याज -मसाले -सब्जी का बाजार लगा हुआ है ,जिसका सारा कूड़ा करकट नदी में ही जाता होगा ।                      

               तीसरे चित्र में नदी में व घाटों पर प्लास्टिक के  गिलास,पोलीथीन थेलियाँ आदि का कूड़ा बह रहा है जिससे नदी का जल काला, दुर्गंधित कीचड युक्त दिखाई देरहा है | यह हाल है मुख्य शहर में स्थित नदी व तीर्थ स्थल का जिसके किनारे अनेक प्राचीन मंदिर आदि उपेक्षित अवस्था में यह देख कर आंसूं    बहा रहे हैं |  क्या स्थानीय प्रशासन , धार्मिक संस्थाएं , नेतागण , सामान्य जन   ( जिन्हें भगवान राम , लक्षमण सीता ने अपने जीवन के अमूल्य समय १४ वर्ष  दे कर अकर्मण्यता से दूर करके प्रगति का पाठ पढ़ाया था और अनाचार , अनाचरण से युक्त राक्षस राज  रावण के शासन का अंत करके स्वशासन का मन्त्र दिया था ) इतने कर्म हीन , अकर्मण्य हो गए हैं कि इन महत्वपूर्ण स्थलों को साफ़-सुथरे नहीं रख सकते | क्या केन्द्रीय सरकार व प्रदेश की सरकार समय रहते चेतेगी ताकि यह पवित्र नदी व स्थलों को विलुप्त होने से बचाया जासके |



 अचानक ही मुझे के जी एम सी-लखनऊ  की निश्चेतना विभाग कीअध्य्क्षा  डा चन्द्रा जी का एक कथन याद आने लगता है---"वे (अमेरिका वाले) अपने एक गड्ढे को भी सजा कर पर्यटन स्थल बना कर रखते हैं जबकि हम अपने सुन्दर तम स्थलों को भी मेन्टेन नहीं कर सकते "

               कुछ दूर पर ही इसी गोदावरी के किनारे  अति सुरम्य स्थल पंचवटी पर पर्णकुटी,  सीता गुफा, लक्ष्मण-रेखा, सीताहरण स्थल , शूर्पणखा नासिका-क्षत स्थल व सर्व प्रथम युद्ध --खर-दूषण युद्ध स्थल   आदि विश्व प्रसिद्द घटनाओं के स्थल हैं जो आज भी सुरम्य हैं एवं देख कर उस काल की सुरम्यता-पावन सुन्दरता, प्राकृतिक रमणीयता  की कल्पना से रोमांचित हुआ जा सकता है | ..ऊपर चित्र ४..पन्चवटी का विहंगम  द्रश्य. व ..राम , सीता, लक्ष्मण के कट आउट सामने पहाडी  पर |.-...चित्र ५ गोदावरी राम-घाट पर मय ( माया) शेली का प्राचीन मन्दिर । यहां औटो रिक्शे से ही सिर्फ़ ३० रु सवारी में सारा स्थल घूमा जा सकता है । मूलतः लोग सीधे-साधे व अन्य अधिकान्श स्थलों कीभांति पैसे की लूट नहीं हैं। प्रसाद भी ५-१० रु में देकर ही संतुष्ट हो जाते हैं। पन्चवटी आकर गोदावरी तट की वित्रष्णा कुछ शान्त हो जाती है ।


          नासिक के निकट  ही  ८-१० कि मी कीदूरी पर  त्रयम्बकेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिन्ग है । जो भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिन्गों में से एक है ... बायें चित्र ६ ।....वहीं पास में ही हनुमान जी का जन्म स्थल व माता अन्जनी का मायका आन्जनेय ग्राम है --चित्र ७ बायें...।

गुरुवार, 17 मार्च 2011

सखी री आया...डा श्याम गुप्त का गीत....

.                                                                ...कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ....

सखी री ! आया होली का त्योहार ॥

पवन बसन्ती रस रंग घोले ,
फगुनाई सी बयार ...| 
सखी री आया होली का त्यौहार ||

कली कली मुसुकाये, भ्रमर सब -
लुटाने को वेज़ार |
अवगुंठन से झांकें कलियाँ ,
भ्रमर करें गुंजार |
घूंघट पट से झांकें सखियाँ ,
पिया करें मनुहार |           -------सखी री ! आया .....||

रात की रानी वन में गमके -
झूमे मलय बहार |
अंग अंग में रस रंग सरसे-
मधु ऋतु है रस सार |    
प्रीति रीति का पाठ पढ़ाने ,
आयी ऋतु श्रृंगार |
सखी री ! आया होली का त्यौहार ,
सखी री ! आया होली का त्यौहार ||

बुधवार, 16 मार्च 2011

नील कन्ठ महादेव और टपकेश्वर महादेव...

                                              ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
         शिव, भोले, शंकर के नाम से अखिल ब्रह्माण्ड में प्रसिद्द, असंख्य नाम वाले , सृष्टि के आदि-देव , सृष्टि के जनक व लिंग रूप में पूजित देवाधिदेव महादेव के द्वादश ज्योतिर्लिंग तो जग-प्रसिद्ध हैं ही , उनके असंख्य मंदिर भारत व विश्व के कोने कोने में स्थित हैं | इसे ही दो महत्वपूर्ण स्थल  यहाँ वर्णित हैं --नीलकंठ महादेव एवं टपकेश्वर महादेव |               
                                         -----नीचे नीलकंठ महादेव मंदिर मुख्य द्वार  और विष पान  करते हुए शिव का चित्र .......................
            नीलकंठ महादेव --प्रसिद्द तीर्थ , दक्ष प्रजापति के महान यज्ञ स्थल व  सती आत्म-दाह स्थल, भगवान शिव के धाम की प्रथम पौड़ी व द्वार -- हरिद्वार, मुनि की रेती  से लगभग २२ किमी दूर गंगा के ऊपर की ओर दायीं ओर स्थित पर्वत पर स्थित है | यही वह स्थान है जहां समुद्र मंथन के समय निकला   महा-कालकूट विष भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया था और नीलकंठ कहलाये | हरिद्वार, राम झूला या लक्षमण झूला से  टेक्सी द्वारा १ से डेड़ घंटे में वहां पहुंचा जा सकता है | रास्ते में आधे मार्ग तक गंगा की मनोहर धारा व मनोरम पहाडी मार्ग पर साथ साथ चलती है, जो आगे पर्वत से दूर व दूसरी ओर मार्ग बदल कर चली जाती है|  टेक्सी ठीक मंदिर के निकट तक जाती है और मंदिर के लिए सिर्फ कुछ सीडियां उतरनी पड़ती हैं | मंदिर प्राचीन काल की पहाडी कला व चित्रकारी का बनाहुआ है| यद्यपि पोलीथीन का प्रयोग स्ट्रिक्टली वर्जित लिखा हुआ है परन्तु सब कुछ पोलीथीन की थेलियों में मिलता है | सभी तीर्थ स्थलों का लगभग यही हाल है ।आस-पास का पहाडी दृश्य मनोरम है |
             टपकेश्वर महादेव --- देहरादून से लगभग १० कि मी की दूरी पर , टोंस या तमसा नदी के उद्गम स्थल पर यह अति प्राचीन मंदिर स्थित है | चूने की चट्टानों के पहाड़ के नीचे प्रागेतिहासिक काल की अति संकरी गुफाओं में स्थित इस मंदिर में शिव लिंग के ऊपर सदा पानी टपकता रहता है | सारे मंदिर परिसर में भी इन चूने की चट्टानों से जल टपकता रहता है अतः यह टपकेश्वर महादेव कहलाये|  वर्षा व धाराओं का व एकत्रित जल कभी कभी चूने के साथ मिलकर एकदम सफ़ेद दूध की धारा की भाँति भी निकलता है जिसे संभवतः शिव पर दूध चढना भी मान लिया जाता है | लगातार जल टपकने से इस अति-प्राचीन शिवलिंग में जल एकत्रित होने का स्थान भी बन गया है | किम्ब्दंती है कि रात में यहाँ नागराज इस लिंग पर एकत्रित जल व दूध को पीने के लिए आते है |कुछ लोग देखने का भी दावा करते हैं |

बुधवार, 9 मार्च 2011

आज का प्रेरक वाक्य....डा श्याम गुप्त.....

....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


             भारतवर्ष का धर्म उसके पुत्रों से नहीं , उसकी संस्कारवान कन्याओं से ठहरा हुआ है | यदि भारत की रमणियाँ अपना धर्म छोड़ देतीं तो अब तक भारत नष्ट होगया होता |
                                         ---महर्षि दयानंद सरस्वती .....

मंगलवार, 8 मार्च 2011

डा श्याम गुप्त की कविता ...जब से तुम मेरे गीतों को गाने लगे....

....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
    महिला दिवस पर प्रस्तुति....एक गीत                                   
                                                                                                                                        

जब से तुम मेरे गीतों को गाने लगे,
मेरे मन के सुमन मुस्कुराने लगे |
दिल के दुनिया में इक रोशनी सी हुई,
नित नए भाव मन को सजाने लगे ||

मैं ये चाहूँ कि तुम कोइ कविता लिखो,
भाव बनके मैं उनमें समाता रहूँ |
तुम रचो गीत मैं उनको गाता रहूँ,
तेरा बासंती मन महमहाने लगे  ||   ----मेरे मन के सुमन.....

जब नए रंग की कोई कविता लिखो,
मैं नए रंग उनमें सजाता रहूँ |
सोया सोया सा मन गुनुगुनाने लगे,
अपने मन का कुसुम खिलखिलाने लगे ||  --मेरे मन के....

तुम लिखो कोई कविता नए रंग की,
प्रीति की रीति के कुछ नए ढंग की |
तेरी रचना को पढ़कर रचयिता स्वयं ,
साथ वाणी के वीणा बजाने लगे ||         ---मेरे मन के....

तुम यूंही गीत मेरे जो गाते रहो,
बन के संगीत मन में समाते रहो|
एक सरगम सजे प्रीति-रसधार की ,
लो फिजाओं के स्वर चहचहाने लगे ||  ---मेरे मन की सुमन.....


शुक्रवार, 4 मार्च 2011

अखिल भारतीय साहियकार दिवस सम्पन्न....डा श्याम गुप्ता

                                  ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
             अखिल भारतीय अगीत परिषद् के संस्थापक , अगीत विधा के जनक डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' के जन्म दिवस पर प्रतिवर्ष एक मार्च  पर मनाया जाने वाला "अखिल भारतीय साहित्यकार दिवस"  -मंगलवार, दिनांक १ मार्च, २०११ को गान्धी- भवन लखनऊ में, अखिल भारतीय अगीत परिषद , लखनऊ, व डा रसाल स्मृति संस्थान  द्वारा आयोजित समारोह में मनाया गया |
              मंचस्थ पदासीन विद्वतजनों में श्री विनोद चंद पांडे 'विनोद' पूर्व अध्यक्ष हिन्दी संस्थान, डा श्रीमती सरला शुक्ल ,पूर्व बिभागाध्यक्ष , हिन्दी विभाग ल वि वि ; श्री रवि कान्त खरे ,बाबाजी अध्यक्ष अ भा वैचा क्रान्ति मंच; श्री गजाधर प्रसाद सिन्हा , श्री रामचंद्र शुक्ल, डा उषा गुप्ता, पूर्व हिन्दी प्रवक्ता लविवि व प्रवासी अमेरिकी साहित्यकार तथा  विधायक श्री सुरेशचन्द्र श्रीवास्तव  थे |
             मंच संचालन डा रंग नाथ मिश्र ने व कुशल प्रवंध डा योगेश गुप्त ने किया| साहित्यकारों व कवियों, द्वारा सत्य जी को जन्म दिवस पर बधाई सन्देश व काव्यमयी  शुभकामनाएं और भेंट दी गयीं |
  <--वायें..डा सत्य को सम्मानित करते हुए  विधायक श्री सुरेशचन्द्र श्रीवास्तव ....दायें ----> मंचस्थ विद्वान् साथ में खड़े हैं डा योगेश गुप्त व पार्थो सेन व श्री देवेश |
डा रसाल स्मृति संस्थान  व अगीत परिषद् व विद्यावती गुप्ता ट्रस्ट  द्वारा विभिन्न साहित्यकारों को पुरस्कार  व सम्मान दिए गए |  डा श्याम गुप्त द्वारा -'डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' एक प्रेरक व चुम्बकीय व्यक्तित्व ' पर  आलेख प्रस्तुत किया गया |
 साहित्यिक वार्ता का विषय -" साहित्यकारों के दायित्व "
पर डा ऊषा गुप्ता, डा उषा सिन्हा ,पूर्व विभागाध्यक्ष हिन्दी विभाग, ल वि वि , श्री रामचंद्र शुक्ल, डा रंग नाथ मिश्र, श्री राम चन्द्र शुक्ल पूर्व न्यायाधीश,श्री विनोद चन्द्र पांडे  व डा श्याम गुप्त, श्री ओम प्रकाश गुप्त मधुर ने अपने व्याख्यान प्रस्तुत किये |    डा सत्य की अध्यक्षता में काव्य-गोष्ठी का  भी आयोजन  किया गया |      

<----बायें  --सम्मानित साहित्यकार  एवं दायें 
डा श्याम गुप्त को सम्मानित करते हुए पूर्व न्यायाधीश साहित्यकार डा राम चन्द्र शुक्ल, डा रंगनाथ मिश्र सत्य व पार्थोसेन  व नीचे दायें  अगीत कवियत्री श्रीमती सुषमा गुप्ता को सम्मान पत्र देते हुए विधायक श्री सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव व डा रंगनाथ मिश्र  सत्य ...

बुधवार, 2 मार्च 2011

महा शिव-रात्रि.....डा श्याम गुप्त....

....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
     
           महा शिव-रात्रि

अन्धकार को चीरकर, ज्ञानालोक  बहांय ।
निर्गुण शिव जब सगुन हों,महारात्रि कहलाय ।

चित का घड़ा  बनाय के, देंय भक्ति-रस डाल।
मन-वृत्ति  के छिद्र सों, जल की धारा ढाल ॥

कम क्रोध से क्षत नहीं, मन अक्षत कहलाय |
चरणों में शिव-शंभु के, निज मन देंय चढाय ||

व्यसनों का अर्पण करें, भोले मुक्ति दिलायं |
भांग -धतूरे रूप में,  शिव पर देंय चढाय  ||

अन्धकार-अज्ञान को, मन से देंय भगाय |
महाकाल आराधना, तब सार्थक हो जाय  ||