ब्लॉग आर्काइव
- ► 2013 (137)
- ► 2012 (183)
- ► 2011 (176)
- ▼ 2010 (176)
- ► 2009 (191)
डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
रविवार, 31 जनवरी 2010
सड़क दुर्घटनाओं के विरुद्ध जन जागरण का एक अभियान ...
लखनऊ के एक कवि हैं कृष्णा नन्द राय , आपने घर के चिराग शीर्षक से एक पोस्टर अभियान चलाया है तथा एक कविता भी लिखी है। देखिये उनका कविता की प्रथम पंक्ति सहित पोस्टर यहाँ । वे घर घर व हर स्थान पर ये पोस्टर स्वयं चिपकाते व बाँटते हैं ----आप भी अभियान में एसा ही कुछ कर सकते हैं ।
शनिवार, 30 जनवरी 2010
जीवेम शरद शतं -गीता व आयुर्वेद में वर्णित जीवन शैली श्रेष्ठ ---डा सरोज चूडामणि गोपाल
लखनऊ वि वि के दीक्षांत समारोह में जीवन शैली से जुड़े रोगों के बारे में व्याख्यान देते हुए चिकित्सा कुलपति डा सरोज चूडामणि गोपाल ने कहा कि ७७% मौतों का कारण अनुचित , बेढंगी जीवन शैली है। कुलपति ने यह भी बताया कि आयुर्वेद व गीता में वर्णित खान-पान विधियों का अनुसरण करके आज कल की भाग-दौड़ वाली जीवन की व्याधियों से बच सकते हैं । पढ़ें इस महत्त्व पूर्ण विषय पर एक रिपोर्ट ----ऊपर के चित्र में ।
----आगरा के सरोजिनी नायडू चिकित्सा महाविद्यालय से सर्जरी में स्नातकोत्तर, उत्तर प्रदेश चिकित्सा वि वि की कुलपति डा सरोज चूडामणि गोपाल , भारत की प्रथम महिला सर्जन हैं एवं विश्व प्रसिद्ध बाल रोग विशेषग्य सर्जन हैं ।
मंगलवार, 26 जनवरी 2010
गणतंत्र दिवस पर --कार्य, कारण व प्रभाव गीत --कितने दीपक जल उठते हैं
कितने दीपक जल उठते हैं
(कारण ,कार्य व प्रभाव गीत --इस नवल धारा गीत में - एक कारण या कार्य दिया जाता है व उसके प्रभाव वर्णन किये जाते हैं )
जब गणतंत्र दिवस का पावन,
परम पुनीत पर्व आता है।
हर्षित जन जन गण के मन में,
नवल तिरंगा लहरा उठता।
नव उन्नति नव कर्म भाव युत,
कितने दीपक जल उठते हैं।। १.
लहर लहर लहराए तिरंगा ,
मुक्त गगन में इठलाता है।
मिटे अशिक्षा और गरीबी ,
आस पल्लवित होती मन में।
राष्ट्र प्रेम के विविध भाव युत,
कितने दीपक जल उठते हैं ॥ २.
अहं भाव से ग्रस्त शत्रु जब,
देश पै आँख गड़ाने लगता।
वीरों के नयनों में दीपित,
रक्त खौलने लग जाता है।
जन गण मन में शौर्य भाव के,
कितने दीपक जल उठते हैं॥ ३.
अन्धकार पर प्रकाश की जय,
का दीपावल पर्व सुहाता।
धन समृद्धि सौभाग्य वर्धन को,
गणेश लक्ष्मी पूजन होता।
जग जीवन से तमस मिटाने,
कितने दीपक जल उठते हैं॥ ४.
मन में प्रियतम का मधुरिम स्वर,
नव जीवन मुखरित कर देता।
आस और आकांक्षाओं के ,
नित नव भाव पल्लवित होते।
नेह का घृत, इच्छा-बाती युत,
कितने दीपक जल उठते हैं॥ ५.
दीपशिखा सम छवि प्रेयसि की,
जब नयनों में रच-बस जाती।
मधुर मिलन के स्वप्निल पल की ,
रेखा सी मन में खिंच जाती ।
नयनों में सुन्दर सपनों के,
कितने दीपक जल उठते हैं॥ ६.
जब अज्ञान तिमिर छंट जाता,
ज्ञान की ज्योति निखर उठती है।
नए नए विज्ञान-ज्ञान की,
नित नव राहें दीपित होतीं ।
मन में नव संकल्प भाव के ,
कितने दीपक जल उठते हैं ॥ ७.
(कारण ,कार्य व प्रभाव गीत --इस नवल धारा गीत में - एक कारण या कार्य दिया जाता है व उसके प्रभाव वर्णन किये जाते हैं )
जब गणतंत्र दिवस का पावन,
परम पुनीत पर्व आता है।
हर्षित जन जन गण के मन में,
नवल तिरंगा लहरा उठता।
नव उन्नति नव कर्म भाव युत,
कितने दीपक जल उठते हैं।। १.
लहर लहर लहराए तिरंगा ,
मुक्त गगन में इठलाता है।
मिटे अशिक्षा और गरीबी ,
आस पल्लवित होती मन में।
राष्ट्र प्रेम के विविध भाव युत,
कितने दीपक जल उठते हैं ॥ २.
अहं भाव से ग्रस्त शत्रु जब,
देश पै आँख गड़ाने लगता।
वीरों के नयनों में दीपित,
रक्त खौलने लग जाता है।
जन गण मन में शौर्य भाव के,
कितने दीपक जल उठते हैं॥ ३.
अन्धकार पर प्रकाश की जय,
का दीपावल पर्व सुहाता।
धन समृद्धि सौभाग्य वर्धन को,
गणेश लक्ष्मी पूजन होता।
जग जीवन से तमस मिटाने,
कितने दीपक जल उठते हैं॥ ४.
मन में प्रियतम का मधुरिम स्वर,
नव जीवन मुखरित कर देता।
आस और आकांक्षाओं के ,
नित नव भाव पल्लवित होते।
नेह का घृत, इच्छा-बाती युत,
कितने दीपक जल उठते हैं॥ ५.
दीपशिखा सम छवि प्रेयसि की,
जब नयनों में रच-बस जाती।
मधुर मिलन के स्वप्निल पल की ,
रेखा सी मन में खिंच जाती ।
नयनों में सुन्दर सपनों के,
कितने दीपक जल उठते हैं॥ ६.
जब अज्ञान तिमिर छंट जाता,
ज्ञान की ज्योति निखर उठती है।
नए नए विज्ञान-ज्ञान की,
नित नव राहें दीपित होतीं ।
मन में नव संकल्प भाव के ,
कितने दीपक जल उठते हैं ॥ ७.
रविवार, 24 जनवरी 2010
देखिये हकीकत विज्ञान क्षेत्र से असंबंधित ,विज्ञान-विज्ञानं चिल्लाने वाले रिपोर्टरों -ब्लागों की --
---विज्ञान क्षेत्र से अन्यथा जिन्हें विज्ञान की जानकारी नहीं होती उन पत्रकारों , ब्लागों ,लेखकों , रिपोर्टरों की वास्तविकता क्या है , उन जानकारियों की वास्तविकता क्या है, यह आप इस समाचार से जानिये | एसे लोग कुछ का कुछ अर्थ बना देते हैं और भ्रम, आशंका व भय के स्थितिउत्पन्न होती है। जैसी अप अभी हाल में ही कुछ टी वी रिपोर्टों में भेई देख -सुन चुके हैं |वस्तुतः विशेषग्य विषयों पर पूर्ण खोज के पश्चात , सोदाहरण व उसी क्षेत्र के व्यक्तियों को लिखना बताना चाहिए | इसे शास्त्रों की भाषा में -अनाधिकार चेष्टा एवं अनाधिकारी को शास्त्र न पढने लिखने की बात कहा जाता है।
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल--तू गाता चल ऐ यार--ग़ज़ल की ग़ज़ल--
कुछ लोग ग़ज़ल के परिपेक्ष्य में सदा बहर -बहर की ही बात करते रहते हैं , मेरा कथन है -कुछ अपना ही अंदाज़ हो वो न्यारी ग़ज़ल होती है --
""-ग़ज़ल तो बस इक अंदाज़े बयाँ है श्याम,
श्याम तो जो कहदें वो ग़ज़ल होती है ||""
ग़ज़ल की ग़ज़ल
शेर मतले का न हो तो कुंवारी ग़ज़ल होती है |
हो काफिया ही जो नहीं,बेचारी ग़ज़ल होती है।
और भी मतले हों, हुश्ने तारी ग़ज़ल होतीं है ।
हर शेर मतला हो हुश्ने-हजारी ग़ज़ल होती है।
हो रदीफ़ काफिया नहीं नाकारी ग़ज़ल होती है ,
मतला बगैर हो ग़ज़ल वो मारी ग़ज़ल होती है।
मतला भी, मकता भी रदीफ़ काफिया भी हो,
सोच समझ के लिख के सुधारी ग़ज़ल होती है।
हो बहर में सुरताल लय में प्यारी ग़ज़ल होती है।
सब कुछ हो कायदेमें वो संवारी ग़ज़ल होती है।
हर शेर एक भाव हो वो जारी ग़ज़ल होती है,
हर शेर नया अंदाज़ हो वो भारी ग़ज़ल होती है।
मस्ती में कहदें झूम के गुदाज़कारी ग़ज़ल होती है,
उनसे तो जो कुछ भी कहें दिलदारी ग़ज़ल होती है।
जो वार दूर तक करे वो करारी ग़ज़ल होती है ,
छलनी हो दिल आशिक का शिकारी ग़ज़ल होती है।
हो दर्दे दिल की बात मनोहारी ग़ज़ल होती है
मिलने का करें वायदा मुतदारी ग़ज़ल होती है।
तू गाता चल ऐ यार, कोई कायदा न देख,
कुछ अपना ही अंदाज़ हो खुद्दारी ग़ज़ल होती है।
जो उसकी राह में कहो , इकरारी ग़ज़ल होती है,
अंदाज़े बयाँ हो श्याम का वो न्यारी ग़ज़ल होती है॥
""-ग़ज़ल तो बस इक अंदाज़े बयाँ है श्याम,
श्याम तो जो कहदें वो ग़ज़ल होती है ||""
ग़ज़ल की ग़ज़ल
शेर मतले का न हो तो कुंवारी ग़ज़ल होती है |
हो काफिया ही जो नहीं,बेचारी ग़ज़ल होती है।
और भी मतले हों, हुश्ने तारी ग़ज़ल होतीं है ।
हर शेर मतला हो हुश्ने-हजारी ग़ज़ल होती है।
हो रदीफ़ काफिया नहीं नाकारी ग़ज़ल होती है ,
मतला बगैर हो ग़ज़ल वो मारी ग़ज़ल होती है।
मतला भी, मकता भी रदीफ़ काफिया भी हो,
सोच समझ के लिख के सुधारी ग़ज़ल होती है।
हो बहर में सुरताल लय में प्यारी ग़ज़ल होती है।
सब कुछ हो कायदेमें वो संवारी ग़ज़ल होती है।
हर शेर एक भाव हो वो जारी ग़ज़ल होती है,
हर शेर नया अंदाज़ हो वो भारी ग़ज़ल होती है।
मस्ती में कहदें झूम के गुदाज़कारी ग़ज़ल होती है,
उनसे तो जो कुछ भी कहें दिलदारी ग़ज़ल होती है।
जो वार दूर तक करे वो करारी ग़ज़ल होती है ,
छलनी हो दिल आशिक का शिकारी ग़ज़ल होती है।
हो दर्दे दिल की बात मनोहारी ग़ज़ल होती है
मिलने का करें वायदा मुतदारी ग़ज़ल होती है।
तू गाता चल ऐ यार, कोई कायदा न देख,
कुछ अपना ही अंदाज़ हो खुद्दारी ग़ज़ल होती है।
जो उसकी राह में कहो , इकरारी ग़ज़ल होती है,
अंदाज़े बयाँ हो श्याम का वो न्यारी ग़ज़ल होती है॥
बुधवार, 20 जनवरी 2010
बसंत --डा श्याम गुप्ता --
नव बसंत आये
सखी री ! नव बसंत आये ॥
जन जन में ,
जन जन जन मन में ,
यौवन यौवन छाये ।
सखीरी ! नव बसंत आये ॥
पुलकि पुलकि सब अंग सखी री ,
हियरा उठे उमंग |
आये ऋतुपति पुष्प बाण ले ,
आये ऋतुपति काम बाण ले ,
मनमथ छायो अंग ।
होय कुसुम शर घायल जियरा ,
अंग अंग रस भर लाये |
सखी री नव बसंत आये ॥
तन मन में बिजुरी की थिरकन ,
बाजे ताल मृदंग ।
अंचरा खोले रे भेद जिया के ,
यौवन उठे तरंग ।
गलियां पग पग झांझर बाजे ,
अंग अंग हरषाए ।
काम शास्त्र का पाठ पढ़ाने ,
ऋषि अनंग आये ।
सखी री नव बसंत आये ॥
सखी री ! नव बसंत आये ॥
जन जन में ,
जन जन जन मन में ,
यौवन यौवन छाये ।
सखीरी ! नव बसंत आये ॥
पुलकि पुलकि सब अंग सखी री ,
हियरा उठे उमंग |
आये ऋतुपति पुष्प बाण ले ,
आये ऋतुपति काम बाण ले ,
मनमथ छायो अंग ।
होय कुसुम शर घायल जियरा ,
अंग अंग रस भर लाये |
सखी री नव बसंत आये ॥
तन मन में बिजुरी की थिरकन ,
बाजे ताल मृदंग ।
अंचरा खोले रे भेद जिया के ,
यौवन उठे तरंग ।
गलियां पग पग झांझर बाजे ,
अंग अंग हरषाए ।
काम शास्त्र का पाठ पढ़ाने ,
ऋषि अनंग आये ।
सखी री नव बसंत आये ॥
सोमवार, 18 जनवरी 2010
अगीतोत्सव -२०१० एवं शूर्पणखा काव्य-उपन्यास का लोकार्पण
<---शूर्पणखा , कृति का लोकार्पण करते हुए, श्री रंगनाथ मिश्र सत्य,मुख्य अतिथि श्री राम चन्द्र शुक्ल,डा श्याम गुप्त , बाबा रवि कान्त खरे व श्री नरेश चन्द्र श्रीवास्तव , मध्य में अगीत विषय प्रवर्तन करते हुए डा श्याम गुप्त एवं दायें --> संचालन करते हुए डा सत्य ।
----दिनांक -१८-१-२०१० कों मैथमेटिकल स्टडी सिर्किल , राजाजी पुरम , लखनऊ में अखिल भारतीय अगीत परिषद् एवं सृजन साहित्यिक संस्था के तत्वावधान में प्रति वर्ष की भांति ' अगीतोत्सव २०१०' मनाया गया । यह उत्सव प्रति वर्ष प्रसिद्द साहित्यकार , पूर्व न्यायाधीश श्री राम चन्द्र शुक्ल के जन्म दिवस पर मनाया जाता है। उत्सव में मुख्य अतिथि श्री राम चन्द्र शुक्ला व साहित्यकार डा श्याम गुप्त कों युवा कवियों व साहित्यकारों की संस्था 'सृजन' द्वारा सम्मानित भी किया गया । इस अवसर पर जनपद रायबरेली के वयोवृद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेन्द्र कुमार वर्मा की कृतियां ' बाल -वाटिका' तथा 'काव्य मंजूषा' एवं डा श्याम गुप्त के राम कथा पर आधारित अगीतविधा काव्य -उपन्यास ( खंड काव्य) "शूर्पणखा " का लोकार्पण भी सम्पन्न हुआ ।
समारोह के दूसरे चरण में " काव्य के बढ़ते चरण और अगीत " विषय पर परिचर्चा हुई , जिसका विषय प्रवर्तन डा श्याम गुप्त द्वारा किया गया । तत्पश्चात काव्य गोष्ठी भी सम्पन्न हुई। संचालन अगीत के प्रवर्तक डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने एवं सृजन संस्था के अध्यक्ष डा योगेश गुप्ता ने किया, अंत में श्री धुरेन्द्र स्वरुप बिसारिया द्वारा धन्यवाद दिया गया। ----नीचे वीडियो में श्रीमती सुषमा गुप्ता जी 'शूर्पणखा ' की समीक्षा करती हुईं ।
रविवार, 17 जनवरी 2010
कार्य रत पति-पत्नी और दाम्पत्य जीवन ...डा श्याम गुप्त का आलेख
यदि पति-पत्नी दोनों ही अपने-अपने व्यबसाय या सर्विस में अति व्यस्त रहते हैं तो दाम्पत्य जीवन में एकरसता न आये एवं परिवार पर दुष्प्रभाव न पड़े, इसके लिए दम्पति को निम्न बातें ध्यान रखना चाहिए |
१- परस्पर विश्वास --एक दूसरे के सहकर्मियों पर संदेह व उनके बारे में अभद्र सोच मन में न लायें। सिर्फ सुनी हुई बातों पर विश्वास न करें,किसी विषय पर संदेह हो तो विवाद की बजाय आपसी बातचीत से हल करें ।
२-संवाद हीनता न रखें - छोटी -छोटी बातों पर परस्पर मतभेद व झगड़े होने पर तुरंत ही एक दूसरे को पहल करके मनाने का प्रयास करें , प्रेमी-प्रेमिका वत व्यवहार करें । अहं को आड़े न आने दें । अधिक समय तक संवाद हीनता गंभीर मतभेद उत्पन्न कर सकती है।
३-एक दूसरे को जानें, ख्याल रखें व हाथ बटाएं -- एक दूसरे की छोटी छोटी रुचियाँ ,तौर तरीकों को अवश्य याद रखें ,एक दूसरे का पूरा ख्याल रखें , समय मिलते ही उसए कार्य में भी हाथ बटाएं, ताकि एक दूसरे की अनुपस्थिति में दूसरे को साथी की कमी अनुभव हो यथा प्रेम बढ़ता ही रहे।
४-चिंता का कारण जानें -यदि साथी चिंतित प्रतीत हो तो उसकी चिंता का कारण पूछ कर यथा संभव सहायता व मानसिक संबल प्रदान करें।
५-उपहार दें -शास्त्रों का कथन है, --देना -लेना, खाना-खिलाना, गुह्य बातें कहना-सुनना ; ये प्रेम के छः लक्षण हैं।
अतः उपहारों का आदान प्रदान का अवसर निकालते रहना भी। छोटा सा उपहार भी कीमती होता है ,उपहार की कीमत नहीं भावना देखी जाती है | समय समय पर एक दूसरे की मनपसंद डिश घर में बनाएं या बाहर लंच-डिनर पर जाएँ । प्रति दिन कम से कम एक बार चाय , लंच , नाश्ता या डिनर या सोने से पहले विविध विषयों पर वार्तालाप अवश्य करें। इससे संवाद हीनता नहीं रहेगी। परयह एक दूसरे के मन पसंद विषय या रुचियों पर समय निकाल कर बात करते रहें।
६.प्रशंसा करें- समय समय पर एक दूसरे की प्रशंसा अवश्य करें । छोटी-छोटी सफलताओं या कार्यों पर प्रशंसा करें। दिन में एक बार एक दूसरे के रूप गुण की प्रशंसा से कार्य क्षमता व आत्मविश्वास बढ़ता है, ह्रदय प्रसन्न रहने से आपस में प्रेम की वृद्धि होती है।
७। स्पर्श --समय समय पर एक दूसरे को स्पर्श करने का मौक़ा ढूढते रहना चाहिए , इससे प्रेम की भावानुभूति तीब्र होती है।
८.अपने स्वास्थ्य व सौन्दर्य का ध्यान रखें --प्रौढ़ होजाने पर या संतान के दायित्व में प्राय : पति -पत्नी एक दूसरे को कम समय देपाते हैं,इस वज़ह से वे स्वयं की देखरेख व बनने संवरने की आवश्यकता नहीं समझते जो दाम्पत्य जीवन के लिए अत्यंत हानिकारक है। पति-पत्नी दोनों ही एक दूसरे को स्मार्ट देखना चाहते हैं , अतः सलीके से पहनना, ओढ़ना , श्रृंगार व स्वास्थ्य का उचित ध्यान रखना न भूलें।
९- प्रेमी-प्रेमिका बनें --प्राय: दाम्पत्य झगड़ों का कारण एक दूसरे पर अधिकार जताना , आपस की व्यक्तिगत रुचियों को नज़र अंदाज़ करना होता है। सुखी दाम्पत्य के लिए , तानाशाह की तरह' खाना खालो' या 'अभी तक चाय नहीं बनी?' की बजाय प्रेमी प्रेमिका की भांति, ' चलिए खाना खा लेते हैं' तथा ' चलो आज हम चाय पिलाते हैं' कहें तो बहुत सी समस्याएं हल होजातीं हैं । वैसे भी कभी-कभी किचेन में जाकर साथ साथ काम करने से मादक स्पर्श व संवाद के स्थिति व एक दूसरे का काम करने की सुखद अनुभूति के दुर्लभ क्षण प्राप्त होते हैं।
१०- समर्पण भाव --समर्पण व एक दूसरे के प्रति प्रतिवद्धता , दाम्पत्य जीवन की सबसे सुखद अनुभूति है। स्थायित्व के लिए यह भाव अति-महत्व पूर्ण है।
११-निजी स्वतन्त्रता एवं आवश्यक आपसी दूरियां --पति -पत्नी को एक दूसरे की हौबी ,रुचियाँ व इच्छाओं को पूरा करने की पूर्ण स्वतन्त्रता देना चाहिए एवं एक दूसरे के कार्यों में बिना कारण दखल नहीं देना चाहिए । कभी-कभी एक दूसरे से दूरियां भी साथी की अनुपस्थिति से उसकी महत्ता का आभास करातीं हैं। भारत में इसीलिये स्त्रियों को समय समय पर विभिन्न त्योहारों ,पर्वों पर पिता के घर जाने की रीति बनाई गयी है। तीज, सावन,रक्षाबंधन,आदि पर्वों पर प्राय: स्त्रियाँ अकेली पिता के घर, प्रौढा या वृद्धा होने तक भी , रहती हैं । यह आवश्यक व्यक्तिगत दूरी , "पर्सनल स्पेसिंग " ही है। स्पेसिंग का यह अर्थ नहीं कि पति-पत्नी अपने अपने दोस्तों के साथ अकेले घूमते फिरते रहें, या विपरीत लिंगी दोस्तों व सहकर्मियों के साथ देर तक बने रहें.
१- परस्पर विश्वास --एक दूसरे के सहकर्मियों पर संदेह व उनके बारे में अभद्र सोच मन में न लायें। सिर्फ सुनी हुई बातों पर विश्वास न करें,किसी विषय पर संदेह हो तो विवाद की बजाय आपसी बातचीत से हल करें ।
२-संवाद हीनता न रखें - छोटी -छोटी बातों पर परस्पर मतभेद व झगड़े होने पर तुरंत ही एक दूसरे को पहल करके मनाने का प्रयास करें , प्रेमी-प्रेमिका वत व्यवहार करें । अहं को आड़े न आने दें । अधिक समय तक संवाद हीनता गंभीर मतभेद उत्पन्न कर सकती है।
३-एक दूसरे को जानें, ख्याल रखें व हाथ बटाएं -- एक दूसरे की छोटी छोटी रुचियाँ ,तौर तरीकों को अवश्य याद रखें ,एक दूसरे का पूरा ख्याल रखें , समय मिलते ही उसए कार्य में भी हाथ बटाएं, ताकि एक दूसरे की अनुपस्थिति में दूसरे को साथी की कमी अनुभव हो यथा प्रेम बढ़ता ही रहे।
४-चिंता का कारण जानें -यदि साथी चिंतित प्रतीत हो तो उसकी चिंता का कारण पूछ कर यथा संभव सहायता व मानसिक संबल प्रदान करें।
५-उपहार दें -शास्त्रों का कथन है, --देना -लेना, खाना-खिलाना, गुह्य बातें कहना-सुनना ; ये प्रेम के छः लक्षण हैं।
अतः उपहारों का आदान प्रदान का अवसर निकालते रहना भी। छोटा सा उपहार भी कीमती होता है ,उपहार की कीमत नहीं भावना देखी जाती है | समय समय पर एक दूसरे की मनपसंद डिश घर में बनाएं या बाहर लंच-डिनर पर जाएँ । प्रति दिन कम से कम एक बार चाय , लंच , नाश्ता या डिनर या सोने से पहले विविध विषयों पर वार्तालाप अवश्य करें। इससे संवाद हीनता नहीं रहेगी। परयह एक दूसरे के मन पसंद विषय या रुचियों पर समय निकाल कर बात करते रहें।
६.प्रशंसा करें- समय समय पर एक दूसरे की प्रशंसा अवश्य करें । छोटी-छोटी सफलताओं या कार्यों पर प्रशंसा करें। दिन में एक बार एक दूसरे के रूप गुण की प्रशंसा से कार्य क्षमता व आत्मविश्वास बढ़ता है, ह्रदय प्रसन्न रहने से आपस में प्रेम की वृद्धि होती है।
७। स्पर्श --समय समय पर एक दूसरे को स्पर्श करने का मौक़ा ढूढते रहना चाहिए , इससे प्रेम की भावानुभूति तीब्र होती है।
८.अपने स्वास्थ्य व सौन्दर्य का ध्यान रखें --प्रौढ़ होजाने पर या संतान के दायित्व में प्राय : पति -पत्नी एक दूसरे को कम समय देपाते हैं,इस वज़ह से वे स्वयं की देखरेख व बनने संवरने की आवश्यकता नहीं समझते जो दाम्पत्य जीवन के लिए अत्यंत हानिकारक है। पति-पत्नी दोनों ही एक दूसरे को स्मार्ट देखना चाहते हैं , अतः सलीके से पहनना, ओढ़ना , श्रृंगार व स्वास्थ्य का उचित ध्यान रखना न भूलें।
९- प्रेमी-प्रेमिका बनें --प्राय: दाम्पत्य झगड़ों का कारण एक दूसरे पर अधिकार जताना , आपस की व्यक्तिगत रुचियों को नज़र अंदाज़ करना होता है। सुखी दाम्पत्य के लिए , तानाशाह की तरह' खाना खालो' या 'अभी तक चाय नहीं बनी?' की बजाय प्रेमी प्रेमिका की भांति, ' चलिए खाना खा लेते हैं' तथा ' चलो आज हम चाय पिलाते हैं' कहें तो बहुत सी समस्याएं हल होजातीं हैं । वैसे भी कभी-कभी किचेन में जाकर साथ साथ काम करने से मादक स्पर्श व संवाद के स्थिति व एक दूसरे का काम करने की सुखद अनुभूति के दुर्लभ क्षण प्राप्त होते हैं।
१०- समर्पण भाव --समर्पण व एक दूसरे के प्रति प्रतिवद्धता , दाम्पत्य जीवन की सबसे सुखद अनुभूति है। स्थायित्व के लिए यह भाव अति-महत्व पूर्ण है।
११-निजी स्वतन्त्रता एवं आवश्यक आपसी दूरियां --पति -पत्नी को एक दूसरे की हौबी ,रुचियाँ व इच्छाओं को पूरा करने की पूर्ण स्वतन्त्रता देना चाहिए एवं एक दूसरे के कार्यों में बिना कारण दखल नहीं देना चाहिए । कभी-कभी एक दूसरे से दूरियां भी साथी की अनुपस्थिति से उसकी महत्ता का आभास करातीं हैं। भारत में इसीलिये स्त्रियों को समय समय पर विभिन्न त्योहारों ,पर्वों पर पिता के घर जाने की रीति बनाई गयी है। तीज, सावन,रक्षाबंधन,आदि पर्वों पर प्राय: स्त्रियाँ अकेली पिता के घर, प्रौढा या वृद्धा होने तक भी , रहती हैं । यह आवश्यक व्यक्तिगत दूरी , "पर्सनल स्पेसिंग " ही है। स्पेसिंग का यह अर्थ नहीं कि पति-पत्नी अपने अपने दोस्तों के साथ अकेले घूमते फिरते रहें, या विपरीत लिंगी दोस्तों व सहकर्मियों के साथ देर तक बने रहें.
शनिवार, 16 जनवरी 2010
डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल---
कुछ पल तो रुक के देखले.....
राहों के रंग न जी सके कोइ ज़िंदगी नहीं|
यूहीं चलते जाना दोस्त कोइ ज़िंदगी नहीं |
कुछ पल तो रुक के देख ले क्या क्या है राह में ,
कोल्हू के बैल सी तो कोइ ज़िंदगी नहीं।
चलने का कुछ तो अर्थ हो कोइ मुकाम हो,
चलने के लिए चलना कोइ ज़िंदगी नहीं।
कुछ ख़ूबसूरत से पड़ाव यदि राह में न हों ,
उस राह चलते जाना कोइ ज़िंदगी नहीं ।
ज़िंदा दिली से ज़िंदगी को जीना चाहिए,
तय रोते सफ़र करना कोइ ज़िंदगी नहीं।
इस दौरे भागम भाग में सिज़दे में इश्क के,
कुछ पल झुके तो इससे बढ़कर बंदगी नहीं।
कुछ पल ठहर हर मोड़ पर खुशियाँ तू ढूढ़ ले,
उन पल से बढ़कर 'श्याम कोइ ज़िंदगी नहीं ॥
राहों के रंग न जी सके कोइ ज़िंदगी नहीं|
यूहीं चलते जाना दोस्त कोइ ज़िंदगी नहीं |
कुछ पल तो रुक के देख ले क्या क्या है राह में ,
कोल्हू के बैल सी तो कोइ ज़िंदगी नहीं।
चलने का कुछ तो अर्थ हो कोइ मुकाम हो,
चलने के लिए चलना कोइ ज़िंदगी नहीं।
कुछ ख़ूबसूरत से पड़ाव यदि राह में न हों ,
उस राह चलते जाना कोइ ज़िंदगी नहीं ।
ज़िंदा दिली से ज़िंदगी को जीना चाहिए,
तय रोते सफ़र करना कोइ ज़िंदगी नहीं।
इस दौरे भागम भाग में सिज़दे में इश्क के,
कुछ पल झुके तो इससे बढ़कर बंदगी नहीं।
कुछ पल ठहर हर मोड़ पर खुशियाँ तू ढूढ़ ले,
उन पल से बढ़कर 'श्याम कोइ ज़िंदगी नहीं ॥
गुरुवार, 14 जनवरी 2010
कुम्भ मेला व भारत वासी ----डा श्याम गुप्त की कविता ---
भारतवासी व कुम्भ मेला
आज बहुत दिन बाद आया हूँ ,
बाहर टूर पर।
कुम्भ मेला , प्रयाग घाट,
प्रयाग और मेला ;
भारतीय संस्कृति के अटूट अंग|
कहाँ जारहे हैं ये सब,
कहाँ से आरहे हैं ये सब?
सिर घुटाये,अन्गौंछा डाले, हाथ में दंड
नंगे पाँव , परिव्राज़क की तरह |
एक समुद्र जैसे -
चारों और से उठकर समा जाता है,
सागर में , संगम में , और-
पुनः उसी में से निकलकर
फ़ैल जाता है चारों ओर जैसे-
" एको s हं बहुस्याम ",
एक ही ब्रह्म से सारा संसार निकलता है ,
पुनः उसी में समा जाता है ।
जहां मिला बैठ गए,
जो मिला खाया पीया,
जो मिला पहन लिया ।
घास पर, जमीन पर, रेल की पटरी पर ,
विश्राम करते हुए, या-
सुबह से शाम तक प्लेटफार्म पर,
गाडी का इंतज़ार करते हुए,
बाल, वृद्ध , युवा, महिलाएं;
कोइ जल्दी नहीं ,हडबड़ाहट नहीं,
जब गाडी आयेगी चले जायेंगे ।
धैर्य की, संतोष की साक्षात मूर्ति की तरह,
अपनी स्थिति से संतुष्ट ,
स्थिति प्रग्य, वीत रागी ,
साधू संतों की तरह ,
अपने में मस्त ग्राम्य वासी,
यही है भारत, भारतवासी ।
इसीलिये कहा जाता है,
भारत साधू संतों का देश है,
यहाँ का हर व्यक्ति साधु वेश है ।
यही है वास्तविकता ,
भारतीय जीवन की
संस्कृति की |
एक जन-ज्वार , बिना बुलाये,
देश के कोने कोने से ,
आया, रहा, चलागया,
न कोइ भाषण बाज़ी, न शोर,
न झगड़ा न टंटा ।
जबकि ,
आज का चार अक्षर पढ़ा युवक
चार क्षात्र, स्कूली लडके या नेता एकत्र हुए,
होगया घमासान, तोड़फोड़
शोर शरावा , नारे बाज़ी,
बिखरी मानसिकता,
विकृत संस्कृति,
प्रतिगामी समाज,
यही है तस्वीर आज॥
आज बहुत दिन बाद आया हूँ ,
बाहर टूर पर।
कुम्भ मेला , प्रयाग घाट,
प्रयाग और मेला ;
भारतीय संस्कृति के अटूट अंग|
कहाँ जारहे हैं ये सब,
कहाँ से आरहे हैं ये सब?
सिर घुटाये,अन्गौंछा डाले, हाथ में दंड
नंगे पाँव , परिव्राज़क की तरह |
एक समुद्र जैसे -
चारों और से उठकर समा जाता है,
सागर में , संगम में , और-
पुनः उसी में से निकलकर
फ़ैल जाता है चारों ओर जैसे-
" एको s हं बहुस्याम ",
एक ही ब्रह्म से सारा संसार निकलता है ,
पुनः उसी में समा जाता है ।
जहां मिला बैठ गए,
जो मिला खाया पीया,
जो मिला पहन लिया ।
घास पर, जमीन पर, रेल की पटरी पर ,
विश्राम करते हुए, या-
सुबह से शाम तक प्लेटफार्म पर,
गाडी का इंतज़ार करते हुए,
बाल, वृद्ध , युवा, महिलाएं;
कोइ जल्दी नहीं ,हडबड़ाहट नहीं,
जब गाडी आयेगी चले जायेंगे ।
धैर्य की, संतोष की साक्षात मूर्ति की तरह,
अपनी स्थिति से संतुष्ट ,
स्थिति प्रग्य, वीत रागी ,
साधू संतों की तरह ,
अपने में मस्त ग्राम्य वासी,
यही है भारत, भारतवासी ।
इसीलिये कहा जाता है,
भारत साधू संतों का देश है,
यहाँ का हर व्यक्ति साधु वेश है ।
यही है वास्तविकता ,
भारतीय जीवन की
संस्कृति की |
एक जन-ज्वार , बिना बुलाये,
देश के कोने कोने से ,
आया, रहा, चलागया,
न कोइ भाषण बाज़ी, न शोर,
न झगड़ा न टंटा ।
जबकि ,
आज का चार अक्षर पढ़ा युवक
चार क्षात्र, स्कूली लडके या नेता एकत्र हुए,
होगया घमासान, तोड़फोड़
शोर शरावा , नारे बाज़ी,
बिखरी मानसिकता,
विकृत संस्कृति,
प्रतिगामी समाज,
यही है तस्वीर आज॥
बुधवार, 13 जनवरी 2010
डा श्याम गुप्ता की ग़ज़ल---
ग़ज़ल
लिख दिया दिल पे अपने नाम तुम्हारा यारा |
गुल से भी नाज़ुक है ये दिल हमारा यारा |
आप यूं तोड़कर इसको न जाइयेगा कभी,
अक्स बसता है इसमें तो तुम्हारा यारा |
रुक न पायेंगे कदम अब तो किसी भी दर पे,
झुक के सज़दे में ये दिल तुझे हारा यारा |
तेरे कदमों में अब यार मेरी ज़न्नत है,
खुद से भी कर लिया हमने किनारा यारा |
दिले नादाँ की श्याम' बात न दिल पे लीजै ,
दिल का हर रंग तो तुझ पै ही वारा यारा ||
लिख दिया दिल पे अपने नाम तुम्हारा यारा |
गुल से भी नाज़ुक है ये दिल हमारा यारा |
आप यूं तोड़कर इसको न जाइयेगा कभी,
अक्स बसता है इसमें तो तुम्हारा यारा |
रुक न पायेंगे कदम अब तो किसी भी दर पे,
झुक के सज़दे में ये दिल तुझे हारा यारा |
तेरे कदमों में अब यार मेरी ज़न्नत है,
खुद से भी कर लिया हमने किनारा यारा |
दिले नादाँ की श्याम' बात न दिल पे लीजै ,
दिल का हर रंग तो तुझ पै ही वारा यारा ||
महंगाई क्यों .....
अब सभी महंगाई-महंगाई चिल्ला रहे हैं , एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं | समझिये महंगाई कामूल कारण क्या है---हम और आप--
१.अति सुखाभिलाषीजीवन- छुद्र विचार युक्त जीवन शेली --हम सब को ब्रांडेड कपडे, जूते, खाना पीना चाहिए और विदेशी भी , टी वी, मोबाइल,कार , फ्लैट सब चाहिए चाहे औकात हो या नहो| फिर औकात बढाने के लिए रिश्वत, चोरी, लूट,बेईमानी--महंगाई -छुद्र विचारों का चक्र |
२.सांसकृतिक प्रदूषण --विदेशी सोच, विदेशी विचार,विदेशी वस्तुएं -कला, तस्वीरें ,सिनेमा , खुला आसमान --नक़ल व महंगे जीवन की ललक से उत्पन्न वही दुश्चक्र।
३। अति-मनोरंजन युक्त जीवन--शास्त्रों का विचार है कि मनोरंजन को कभी धंधा व प्रोफेशन नहीं बनाना चाहिए ,इससे , समय नष्ट होकर , उचित व उत्तम विचारों के लिए समाय नहीं मिल पाता | युवाओं व स्त्रियों के शोषण को बढ़ावा मिलता है|और फिर वही चक्र की आवृत्ति ।ये व्यर्थ के रीअलिटी शो, निरर्थक सीरियल , हंसी मज़ाक के ऊटपटांग फूहड़ कथन चौबीसों घंटे टीवी शो में करोड़ों रु । बर्बाद होने के लिए कहाँ से आते हैं , आप की ही जेब से। ये सब न हो तो महंगाई क्यों आये।
४.शिक्षा जगत में भ्रष्ट लोग व आचरण ---अनावश्यक जानकारियों का संग्रह , अनावश्यक खोजें ,वैज्ञानिक जानकारियाँ जिनका जन सामान्य से सम्बन्ध नहीं के प्रचार-प्रसार से भ्रम-व भय उत्पन्न होकर भरष्ट आचरण को बढ़ावा मिलता है |उत्तम विचार संग्रह पीछे छूट जाते हैं।व मूल प्राथमिक सिक्षा में कटौती होती है ।
५.राजनैतिकइच्छा- दृढ़ता की कमी--जमाखोरी-जनता व व्यापारियों सभी की , अधिकारों का ज्ञान व प्राप्ति की चाहत व कर्तव्यों की उपेक्षा |
६। भ्रष्ट आचरण -- ही ऊपर के सभी ५ कारणों का कारण है जो स्वयं अति- सुखाभिलाषा व महंगी जीवन शेली से उत्पन्न व उसे को उत्पन्न करने का कारक है।
-----बस एक ही उपाय है--- सादा जीवन उच्च विचार, स्वदेशी आचार व्यबहार | हम सुधरेंगे , जग सुधरेगा ,
१.अति सुखाभिलाषीजीवन- छुद्र विचार युक्त जीवन शेली --हम सब को ब्रांडेड कपडे, जूते, खाना पीना चाहिए और विदेशी भी , टी वी, मोबाइल,कार , फ्लैट सब चाहिए चाहे औकात हो या नहो| फिर औकात बढाने के लिए रिश्वत, चोरी, लूट,बेईमानी--महंगाई -छुद्र विचारों का चक्र |
२.सांसकृतिक प्रदूषण --विदेशी सोच, विदेशी विचार,विदेशी वस्तुएं -कला, तस्वीरें ,सिनेमा , खुला आसमान --नक़ल व महंगे जीवन की ललक से उत्पन्न वही दुश्चक्र।
३। अति-मनोरंजन युक्त जीवन--शास्त्रों का विचार है कि मनोरंजन को कभी धंधा व प्रोफेशन नहीं बनाना चाहिए ,इससे , समय नष्ट होकर , उचित व उत्तम विचारों के लिए समाय नहीं मिल पाता | युवाओं व स्त्रियों के शोषण को बढ़ावा मिलता है|और फिर वही चक्र की आवृत्ति ।ये व्यर्थ के रीअलिटी शो, निरर्थक सीरियल , हंसी मज़ाक के ऊटपटांग फूहड़ कथन चौबीसों घंटे टीवी शो में करोड़ों रु । बर्बाद होने के लिए कहाँ से आते हैं , आप की ही जेब से। ये सब न हो तो महंगाई क्यों आये।
४.शिक्षा जगत में भ्रष्ट लोग व आचरण ---अनावश्यक जानकारियों का संग्रह , अनावश्यक खोजें ,वैज्ञानिक जानकारियाँ जिनका जन सामान्य से सम्बन्ध नहीं के प्रचार-प्रसार से भ्रम-व भय उत्पन्न होकर भरष्ट आचरण को बढ़ावा मिलता है |उत्तम विचार संग्रह पीछे छूट जाते हैं।व मूल प्राथमिक सिक्षा में कटौती होती है ।
५.राजनैतिकइच्छा- दृढ़ता की कमी--जमाखोरी-जनता व व्यापारियों सभी की , अधिकारों का ज्ञान व प्राप्ति की चाहत व कर्तव्यों की उपेक्षा |
६। भ्रष्ट आचरण -- ही ऊपर के सभी ५ कारणों का कारण है जो स्वयं अति- सुखाभिलाषा व महंगी जीवन शेली से उत्पन्न व उसे को उत्पन्न करने का कारक है।
-----बस एक ही उपाय है--- सादा जीवन उच्च विचार, स्वदेशी आचार व्यबहार | हम सुधरेंगे , जग सुधरेगा ,
सदस्यता लें
संदेश (Atom)